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Jharkhand Election 2024: परिवारवाद की परीक्षा! पत्नी, बहू, बेटा, भाई को आगे कर पॉलिटिकल रेस में शामिल हैं कई दिग्गज

विधानसभा चुनाव में कई दिग्गज नेता परिवारवाद का सहारा ले रहे हैं.

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ईटीवी भारत ग्राफिक्स इमेज (ईटीवी भारत)

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Nov 3, 2024, 10:35 AM IST

रांची :झारखंड में इस बार के विधानसभा चुनाव में कई दिग्गज नेता परिवारवाद का सहारा ले रहे हैं. इसमें ऐसे 9 नए प्रत्याशी हैं जो अपने परिवार के सदस्यों की बदौलत चुनाव में उतरे हैं, जिनमें भाजपा के 5, झामुमो के 2, राजद के 1 और कांग्रेस के 1 प्रत्याशी शामिल हैं। यह परंपरा पहले से ही चली आ रही है, लेकिन इस बार इसकी संख्या बढ़ी है.

पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की बहू पहली बार चुनावी रेस में

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास और वर्तमान में ओडिशा के राज्यपाल की बहू पूर्णिमा दास साहू जमशेदपुर पूर्वी सीट से पहली बार चुनाव मैदान में उतर रही हैं। भाजपा ने उन्हें प्रत्याशी बनाया है, जो आश्चर्यकारी है। रघुवर दास इस सीट से लगातार चुनाव जीतते रहे है, लेकिन 2019 में सरयू राय ने बतौर निर्दलिय उन्हें हराया था जब वो मुख्यमंत्री थे. पूर्णिमा का मुकाबला कांग्रेस के डॉक्टर अजय कुमार से होगा, जो झारखंड कांग्रेस के अध्यक्ष और जमशेदपुर के पूर्व एसपी रह चुके हैं। पूर्णिमा ने कहा है कि वह अपने ससुर की विरासत को आगे बढ़ाएंगी

नेताओं के बयान (ईटीवी भारत)

चंपाई सोरेन की बदौलत बाबूलाल सोरेन हैं मैदान में

परिवारवाद की लिस्ट में दूसरा बड़ा नाम है बाबूलाल सोरेन का है. इनको अपने पिता चंपाई सोरेन की बदौलत घाटशिला से भाजपा का टिकट मिला है, क्योंकि चंपाई सोरेन कभी झामुमो के सबसे विश्वसनीय नेताओं में से एक थे. 31 जनवरी को हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद चंपाई सोरेन को सीएम बनाया गया था. लेकिन जेल से बाहर आते ही हेमंत सोरेन ने चंपाई सोरेन से मुख्यमंत्री की गद्दी वापस ले ली और उन्हे मंत्री बना दिया गया. चंपाई सोरेन नें इसे अपना अपमान बताकर भाजपा का दामन थाम लिया. भाजपा नें इनाम के तौर पर उनके बेटे बाबूलाल सोरेन को प्रत्याशी बनाया.

चंपाई सोरेन खुद सरायकेला सीट से भाजपा के प्रत्याशी हैं. भाजपा को उम्मीद है कि चंपई सोरेन की बदौलत उसे कोल्हान की खोई राजनीतिक जमीन हासिल करने में मदद मिलेगी. बाबूलाल सोरेन का मुकाबला घाटशिला के वर्तमान झामुमो विधायक और मंत्री रामदास सोरेन से है.

पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा की परीक्षा

परिवारवाद की लिस्ट में झारखंड के पुर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता अर्जुन मुंडा का नाम भी शामील है. इस बार उनकी पत्नी मीरा मुंडा कोल्हान के पोटका सीट से प्रत्याशी हैं. इस सीट पर भाजपा की मेनका सरदार का दबदबा रहा है. लेकिन 2019 का चुनाव झामुमो के संजीव सरदार से हार गई थी. मीरा मुंडा को टिकट मिलने के बाद मेनका सरदार आहत थी और पार्टी छोड़ने की भी खबर फैली थी लेकिन काफी मश्क्कत के बाद मामले को सुलझ लिया गया. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान मीरा मुंडा कह चुकी हैं कि बेशक उन्हें पहली बार टिकट मिला है लेकिन वह भाजपा के लिए लंबे समय से काम करती आ रही हैं. मीरा का सामना जेएमएम प्रत्याशी और वर्तमान विधायक संजीव सरदार से है.

पूर्व मंत्री आलमगीर आलम की पत्नी निशत पर जिम्मेदारी

पाकुड़ के चुनावी मैदान में पहली बार निशत आलम उतरी हैं. झारखंड के कद्दावर कांग्रेस नेता आलमगीर आलम की पत्नी हैं. फिलहाल मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आलमगीर आलम जेल में बंद हैं. ईडी की छापेमारी के दौरान उनके करीबी के घर से 37 करोड़ से ज्यादा रुपए बरामद हुए थे. वह झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष और मंत्री रह चुके हैं. निशत आलम हाउसवाइफ रही हैं. उनका सामना एनडीए के घटक दल आजसू प्रत्याशी अजहर इस्लाम से है जो पहली बार चुनाव मैदान में हैं. दूसरी तरफ पाकुड़ के पूर्व विधायक और वर्तमान में सपा प्रत्याशी अकील अख्तर ने यहां के मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है.

मंत्री सत्यानंद भोक्ता की बहू से राजद को उम्मीद

परिवारवाद का फायदा उठाने वालों की लिस्ट में अगला नाम है रश्मि प्रकाश का है. चतरा से राजद की प्रत्याशी हैं. 2019 में उनके ससुर सत्यानंद भोक्ता ने इस सीट को जीत कर झारखंड में राजद का खाता खोला था. उन्हें हेमंत कैबिनेट में मंत्री भी बनाया गया. लेकिन इसी बीच उनकी किस्मत बदल गई. भोक्ता जाति को अनुसूचित जाति की कैटेगरी से हटाकर अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिल गया. इसलिए सत्यानंद भोक्ता का अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व चतरा सीट से चुनाव लड़ना नामुमकिन था. लिहाजा, पासवान जाति से आने वाली उनकी बहू रश्मि प्रकाश को राजद नें टिकट दिया. वह जोर शोर से चुनाव अभियान में जुटी हैं. उनका सामना एनडीए की तरफ से लोजपा आर के प्रत्याशी और पूर्व विधायक जनार्दन पासवान से है.

सांसद ढुल्लू के भाई शत्रुघ्न पर कमल खिलाने का जिम्मा

इस लिस्ट में अगला नाम है शत्रुघ्न महतो उर्फ शरद का है. बाघमारा के पूर्व विधायक और धनबाद के वर्तमान सांसद ढुल्लू महतो के बड़े भाई हैं. ढुल्लू महतो के विधायक प्रतिनिधि भी रहे चुके हैं. भाजपा ने उन्हें बाघमारा से प्रत्याशी बनाया है. उनके खिलाफ कई आपराधिक मामले भी दर्ज हैं. शत्रुघ्न महतो कोयला क्षेत्र में दिहाड़ी मजदूरों के बीच काफी लोकप्रिय माने जाते है.

सांसद नलिन के पुत्र आलोक से झामुमो को उम्मीद

अगला नाम है आलोक सोरेन का है जिन्हें झामुमो ने शिकारीपाड़ा से प्रत्याशी बनाया है. उनके पिता नलिन सोरेन इस सीट से लगातार सात बार विधायक बनने का रिकॉर्ड बना चुके हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में झामुमो की टिकट पर दुमका का चुनाव जीतने के बाद अब संसद पहुंच चुके हैं. आलोक सोरेन ने कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली है. झामुमो केंद्रीय समिति के सदस्य भी हैं. क्षेत्र में उनकी अच्छी पकड़ है क्योंकि वह लंबे समय से अपने पिता के साथ राजनीति में सक्रिय रहे हैं. उनका सामना भाजपा प्रत्याशी पारितोष सोरेन से है जो पूर्व में दो बार जेवीएम और एक बार भाजपा की टिकट पर चुनाव हार चुके हैं.

सांसद जोबा मांझी के पुत्र जगत से झामुमो को उम्मीद

जोबा मांझी के पुत्र जगत मांझी मनोहरपुर से झामुमो के प्रत्याशी हैं. जोबा मांझी हेमंत कैबिनेट में महिला बाल विकास मंत्री रह चुकी हैं और 2024 लोकसभा चुनाव में चाईबासा सीट जीत चुकी हैं. जगत अपनी मां के साथ झामुमो कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय रहे हैं. उनका मुकाबला एनडिए के घटक दल आजसू के दिनेश चंद्र बोयपाई से है.

विधायक इंद्रजीत की पत्नी तारा देवी पर भाजपा को भरोसा

पॉलिटिकल लिगेसी को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी सिंदरी से भाजपा के विधायक इंद्रजीत महतो की पत्नी तारा देवी को भी मिला है. तारा देवी जिला परिषद के सदस्य भी रह चुके हैं. उनके पति इंद्रजीत महतो 2019 का चुनाव जीतने के कुछ माह बाद से ही गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं. लिहाजा उनका सारा कामकाज तारा देवी ही देख रही हैं. तारा देवी का सामना भाकपा माले के प्रत्याशी चंद्र देव उर्फ बबलू महतो से है। इनको भी पहली बार टिकट मिला है। इनके पिता आनंद महतो तीन बार सिंदरी से विधायक रहे हैं. आनंद महतो मार्क्सवादी समन्वय समिति के बड़े नेता हैं. कुछ माह पूर्व मासस का भाकपा माले में विलय हो चुका है.

इस लिस्ट में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन का भी नाम है. फर्क बस इतना है कि उन्होंने हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद सरफराज अहमद द्वारा गांडेय सीट खाली करने के बाद हुए उपचुनाव को जीत कर विधानसभा पहुंच चुकी हैं और दूसरी बार फिर गांडेय से ही मैदान में उतरी हैं.

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