कांकेर : प्रकृति की गोद में बसा बस्तर पिछले कई दशकों से नक्सलवाद का दंश झेल रहा है. बस्तर अपने अंदर प्रकृति की सुंदरता को समेटे है,लेकिन बस्तर की सुंदरता में नक्सलवाद एक बदनुमा दाग की तरह है.आज भी बस्तर के कई इलाकों में नक्सलवाद के निशान दिखते हैं.ईटीवी भारत की टीम बस्तर में उस जगह पर पहुंची, जहां पर प्रदेश के इतिहास की पहली नक्सली मुठभेड़ हुई थी. भले ही पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से नक्सलवाद की शुरुआत हुई हो,लेकिन इससे सबसे ज्यादा नुकसान छत्तीसगढ़ को हुआ है. आदिवासी बाहुल्य बस्तर संभाग के सभी जिले नक्सलवाद का आतंक बरसों से झेलते आ रहे हैं. इस दौरान बहुत से जवानों ने शहादत दी. कई बेगुनाह आदिवासियों के खून से बस्तर की धरती लाल हुई.
नक्सलियों ने बना ली थी राजधानी :बस्तर में नक्सलवाद की शुरुआत कहां से हुई ये जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम उत्तर बस्तर कांकेर जिले के अंतिम छोर पर बसे गांव ताड़वयली पहुंची. ये वो गांव है, जहां से महाराष्ट्र की सीमा शुरु होती है. कहा जाता है कि इसी इलाके से बस्तर क्षेत्र में नक्सलियों ने प्रवेश किया था. 90 के दशक के आसपास इस इलाके में नक्सलियों के कदम पड़े. इसी इलाके से इनकी सक्रियता की खबरें निकलकर सामने आने लगी. घने जंगल और छत्तीसगढ़-महाराष्ट्र की सीमा लगे होने के कारण नक्सली,अबूझमाड़ तक पहुंच कर इसे मजबूत किला बनाने लगे. जिसे नक्सलियों की राजधानी के नाम से भी जाना जाता है.
पहले नक्सली एनकाउंटर का गवाह है गांव :नक्सली जंगलों में डेरा डालकर नक्सल घटनाओं को अंजाम देने लगे. पुलिस तक नक्सलियों की खबरें निकल कर सामने आने लगी. इस दौरान छत्तीसगढ़ के इतिहास में पहली बार नक्सली और पुलिस के बीच मुठभेड़ छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के अंतिम छोर पर बसे गांव ताड़वयली में हुई, जहां से महाराष्ट्र की सीमा शुरु होती है. यहीं नदी के पास नक्सली डेरा डालकर खाना पका रहे थे. पुख्ता इनपुट मिलने के बाद पुलिस के जवान पहुंचे और दोनों के बीच भीषण मुठभेड़ हुई. जिसमें एक बड़ा नक्सली लीडर गणपति मारा गया. बाकी नक्सली मौके से भागने में कामयाब रहे. यह नक्सलियों के छत्तीसगढ़ के इलाके में प्रवेश करने के बाद पहली मुठभेड़ थी.
बड़ा नक्सली लीडर हुआ था ढेर :नक्सली लीडर गणपति के मारे जाने के बाद नक्सलियों ने दोनों राज्यों की सीमा के बीच में उसका स्मारक भी तैयार किया. जिसे जवानों ने तोड़ दिया. जिसके अवशेष आज भी उसी स्थान पर पड़े हुए हैं. ग्रामीणों से जब हमने बात की तो उन्होंने दबी जुबान में इस बात को स्वीकार किया कि इस इलाके में ही पहली मुठभेड़ हुई थी. लेकिन एक ग्रामीण ने इससे जुड़ी बातें साझा की.
1984-1985 के आसपास इस इलाके में नक्सली महाराष्ट्र की ओर से तोडगट्टा के पास से छत्तीसगढ़ की सीमा में दाखिल हुए थे.उससे पहले नक्सलियों के बारे में नहीं सुना था.लेकिन जब गणपति मारा गया तो नक्सली के बारे में जानकारी जिनके साथ मुठभेड़ हुई थी. जवानों ने ही मारे गए नक्सली के स्मारक को ध्वस्त किया है- आरक्षक
रिटायर्ड पुलिस अधिकारी आरपी सिंह ने बताया कि उस घटना के वक्त पखांजूर थाना और बांदे चौकी हुआ करता था. ताड़वयली गांव बांदे चौकी के अंतर्गत आता था. यह घटना इनकी पोस्टिंग के पहले हुई थी. जो आज भी थाना के रिकार्ड में दर्ज है. इस इलाके में नक्सलियों से जुड़ी खबरें आए दिन आते रहती थी. उस दौरान आने-जाने के लिए सड़कें सहित अन्य सुविधाओं से गांव और आसपास का इलाका महरूम था.