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'इलेक्टोरल बांड देश का सबसे बड़ा घोटाला, जांच SIT से हो' प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में लगाई याचिका - Prashant Bhushan on Electoral bonds - PRASHANT BHUSHAN ON ELECTORAL BONDS

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा है "इलेक्टोरल बांड देश का सबसे बड़ा घोटाला है. इसकी जांच स्वतंत्र संस्था से कराने के लिए एसआईटी (SIT) गठित करना आवश्यक है. इस बारे में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है."

Electoral bonds biggest scam of india Prashant Bhushan
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता प्रशांत भूषण

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Apr 27, 2024, 3:51 PM IST

इलेक्टोरल बांड देश का सबसे बड़ा घोटाला

भोपाल।हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक करार दिया है. कोर्ट ने कहा कि "यह योजना नागरिकों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है." अब इस मामले में SIT गठित करने की मांग के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की की गई है. सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण ने भोपाल में कहा "चुनावी बांड का जो डाटा सार्वजनिक किया गया, उससे संकेत मिलता है कि इलेक्टोरल बांड के माध्यम से बड़े पैमाने पर लेन-देन कंपनियों और राजनीतक दलों के बीच किया गया. डेटा से पता चलता है कि जिन कंपनियों को बड़ी परियोजनाएं मिलीं, उन्होंने इन्हें प्राप्त करने के सत्तारूढ़ दलों को बांड के माध्यम से बड़ी रकम दान की."

शैल कंपनियों ने व्यापक स्तर पर मनी लॉन्ड्रिंग की

प्रशांत भूषण ने कहा "इलेक्टोरल बांड का डेटा बताता है कि राजनीतिक दलों को करोड़ों रुपये दान करने वाली शैल कंपनियों ने व्यापक स्तर पर मनी लॉन्ड्रिंग किया है. इसमें ईडी, CBI और IT विभाग जैसी एजेंसियां शामिल हैं. चुनावी बांड घोटाला देश का सबसे बड़ा घोटाला है. जिसकी जांच स्वतंत्र संस्था द्वारा करने की आवश्यकता है."गौरतलब है कि 15 फरवरी 2024 को एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार दिया और चुनावी बॉन्ड की आगे की बिक्री पर रोक लगा दी.

सुप्रीम कोर्ट ने कानूनों में किए संशोधनों को भी रद्द किया

प्रशांत भूषण ने बताया"सुप्रीम कोर्ट ने माना कि चुनावी बॉन्ड संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत मतदाता के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड लाने के लिए विभिन्न कानूनों में किए गए संशोधनों को भी रद्द कर दिया. दानकर्ता को पूर्ण गुमनामी में रहने की अनुमति देने के लिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, कंपनी अधिनियम और आयकर अधिनियम में बदलाव किए गए."

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आरबीआई व चुनाव आयोग ने भी खतरे से आगाह किया

प्रशांत भूषण का कहना है कि कंपनी अधिनियम में संशोधन ने उस खंड को भी हटा दिया, जो कंपनियों को पिछले तीन वित्तीय वर्ष में औसतन पूर्ण लाभ का केवल 7.5% दान करने की अनुमति देता था. आरबीआई (RBI) और चुनाव आयोग सहित विभिन्न प्राधिकरणों ने इस योजना के खतरों को उजागर करते हुए कहा कि इससे पारदर्शिता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, सिस्टम में मनी लॉन्ड्रिंग और काले धन में वृद्धि होगी और शैल कंपनियों के माध्यम से फंडिंग को भी बढ़ावा मिलेगा.

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