रांचीः साइबर क्राइम का घातक हथकंडा, जिसने लोगों के मन में दहशत भर दी है. इसके साथ ही पुलिस के लिए भी एक बड़ी चुनौती है. ये एक ऐसा हथकंडा है जिसमें पीड़ित घंटों या फिर कई दिनों तक साइबर अपराधियों के चंगुल में फंसा रहता है और अपनी पूरी कमाई सौंपकर भी वो एक घातक ट्रॉमा का शिकार हो जाता है. इसी का नाम है, डिजिटल अरेस्ट (Digital Arrest).
झारखंड में डिजिटल अरेस्ट जैसे मामलों को विदेशी साइबर क्रिमिनल्स के द्वारा अंजाम दिया जा रहा है. डिजिटल अरेस्ट करने के लिए सामने चेहरा तो भारतीय का होता है लेकिन पर्दे के पीछे वियतनाम-लोआस जैसे देशों के साइबर क्रिमिनल्स शामिल रहते हैं. ये एक नया खुलासा रिसर्च में सामने आया है.
क्या है पूरी कहानी
झारखंड में डिजिटल अरेस्ट के जरिए करोड़ों रुपए की ठगी की जा चुकी है. जनवरी 2025 की सबसे बड़ी ठगी भी सामने आ चुकी है जिसमें डिजिटल अरेस्ट करके एक रिटायर्ड अधिकारी से 2 करोड़ 27 लाख रुपए ठग लिए गए. लेकिन डिजिटल अरेस्ट को लेकर चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं. सीआईडी के साइबर क्राइम ब्रांच का रिसर्च यह बता रहा है कि जितनी भी बड़ी ठगी की वारदातों को अंजाम दिया जा रहा है, खासकर डिजिटल अरेस्ट से जुड़े मामलों में विदेशी साइबर अपराधियों के नेटवर्क का हाथ है.
वियतनाम, कंबोडिया, थाईलैंड और लाओस जैसे देश शामिल
झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता ने बताया कि बड़ी ठगी की वारदातों को विदेशी साइबर अपराधी अंजाम दे रहे हैं. खासकर डिजिटल अरेस्ट के मामले विदेशी साइबर अपराधियों के द्वारा ज्यादा अंजाम दिया जा रहा है. यह सभी जानते हैं कि डिजिटल अरेस्ट करने के लिए पुलिस, वकील के साथ-साथ केंद्रीय एजेंसियों के फेक फोटो का प्रयोग किया जाता है. डिजिटल अरेस्ट करने के लिए फोटो के साथ-साथ आवाज भी भारतीय की होती है. लेकिन परदे के पीछे वियतनाम, कंबोडिया, थाईलैंड और लाओस जैसे देशों के अपराधी शामिल रहते हैं.
झारखंड पुलिस के डीजीपी अनुराग गुप्ता के अनुसार विदेश से अगर भारतीय नंबर द्वारा ठगी के किए कॉल जाते हैं. ऐसे में लोगों को लगता है कि फोन उनके देश से आ रहा है. इसी चक्कर में भारतीय नागरिक साइबर अपराधियों के झांसे में आ जाते हैं और अपने खातों से पैसे लुटवा बैठते हैं.
रिटायर्ड और नौकरी पेशा वालों को किया जा रहा टारगेट
झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता के अनुसार, डिजिटल अरेस्ट के शिकार सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे लोग हो रहे हैं, ये काफी हैरानी की बात है. डिजिटल अरेस्ट साइबर अपराधियों का एक नया हथियार है. साइबर अपराधी सीबीआई, ईडी, एनआईए और पुलिस के नाम पर इतना दहशत भर देते हैं कि ठगी का शिकार होने वाला व्यक्ति किसी से मदद भी नहीं मांग पाता है. डिजिटल अरेस्ट के मामले सबसे ज्यादा रिटायर्ड अधिकारियों और नौकरी पेशा के साथ सामने आ रहे हैं. झारखंड में अब तक एक पूर्व आईएएस, प्रोफेसर, आधा दर्जन रिटायर्ड अधिकारी के साथ-साथ कई डॉक्टर और बिजनेसमैन इसका शिकार बन चुके हैं.
कैसे करते हैं टारगेट
साइबर अपराधी डिजिटल अरेस्ट करने के लिए पूरी प्लानिंग के साथ काम करते हैं. जिस व्यक्ति से उन्हें ठगी करना है उसका वह पूरा प्रोफाइल तैयार करते हैं. साइबर अपराधी यह जानते हैं कि किसी बड़े बिजनेसमैन, डॉक्टर और रिटायर्ड अधिकारियों को इलीगल ट्रांजेक्शन और मनी लाउंड्रिंग जैसे मामले में डराया जा सकता है. इसके लिए सबसे पहले साइबर अपराधी विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के बड़े अधिकारियों की तस्वीर और एजेंसी का लोगो जुगाड़ करते हैं. उसके बाद अपने शिकार को फोन करके यह बताते हैं कि उनके खाते और मोबाइल सिम का प्रयोग इलीगल ट्रांजैक्शन और मनी लाउंड्रिंग के लिए किया गया है.
साइबर अपराधी अपने शिकार को यह भी बताते हैं कि उनके खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी हो चुका है. उनके पास (साइबर अपराधियों) अपने शिकार के नाम का फर्जी गिरफ्तारी वारंट भी हो था, जिसे वे व्हाट्सएप पर फिर ईमेल आईडी पर भेज देते हैं. साइबर अपराधियों की धमकी से डरा हुआ व्यक्ति जब इस मामले से अपने आपको निर्दोष बताते हुए मदद के भीख मांगता है. इसके बाद साइबर अपराधी उन्हें अलग-अलग एकाउंट नंबर देकर लाखों रुपए की डिमांड करते हैं. सुरक्षा एजेंसियों के नाम के वारंट को देखकर लोग पैसे ट्रांसफर कर देते हैं.
करोड़ों का घोटाला बोल मांगते हैं पैसा
साइबर क्राइम ब्रांच के अनुसार साइबर अपराधी किसी बड़े घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाकर ऐसे व्यक्ति को फोन करते हैं जो अधिकारी हो या अधिकारी रह चुका हो. सुरक्षा एजेंसियों के अधिकारी बनकर साइबर अपराधी फेक अरेस्ट वारंट भेजते हैं. वह अपने शिकार को यह विश्वास दिला देते हैं कि एजेंसी किसी भी वक्त उन्हें गिरफ्तार कर सकती है. एक तरह से साइबर अपराधी अपने शिकार को हिप्टोनाइज कर देते हैं. उसके बाद साइबर अपराधी अपने शिकार को यह बताते हैं कि जितने रुपए का घोटाला किया गया है उसका एक तिहाई अगर वह तुरंत एकाउंट में जमा कर देंगे तो इस घोटाले में उन्हें राहत दिलाई जा सकती है. सुरक्षा एजेंसी से बचने के लिए कोई लाखो तो कई लोगों ने करोड़ों रुपए साइबर अपराधियों के खातों में डाल दिये.
घंटों या कई दिनों तक घर पर बना लेते हैं बंधक
साइबर अपराधियों की इस नई तकनीक को सीआईडी की साइबर क्राइम ब्रांच के द्वारा डिजिटल अरेस्ट का नाम दिया गया है. सबसे खतरनाक बात तो यह है कि रांची के एक व्यक्ति को साइबर अपराधियों ने 12 दिनों तक उसके घर में ही डिजिटल अरेस्ट करके रखा हुआ था. जब उस व्यक्ति ने पुलिस अधिकारियों और वकील से बात करके मामले की जानकारी ली तब उन्हें यह पता चला कि उनके साथ ठगी को अंजाम दिया गया है. रांची में दर्ज हुए कई मामलों में ठगी के शिकार हुए लोगों ने बताया है कि साइबर अपराधियों ने उन्हें घंटे तक फोन में ही उलझाए रखा फोन काटने पर वे पूरे परिवार को गिरफ्तार कर लेने की धमकी देने लगते है.
सावधानी ही एक मात्र है बचाव