देहरादून (उत्तराखंड): देश में ऐसे कम उदाहरण होंगे, जहां परिवार का हर सदस्य हिंदी साहित्य की सेवा में जुटा हो. हिंदी लेखन को अपनी दुनिया और मातृ भाषा से लोगों को जोड़ना अपना कर्तव्य मानने वाला शर्मा परिवार कुछ इसी तरह के सेवाभाव में लगा है. वरिष्ठ लेखक और कवि अतुल शर्मा वर्षों से हिंदी साहित्य की तमाम विधाओं में लिख रहे हैं. उनकी दोनों बहनें भी कंधे से कंधा मिलाकर हिंदी साहित्य को ताकत देने का काम कर रही हैं. हिंदी साहित्य इस परिवार की परवरिश से जुड़ा होने के नाते ये इसके लिए जिम्मेदारी भी है और इनका शौक भी.
जन कवि अतुल शर्मा का हिंदी प्रेम: हिंदी देश की मात्र राष्ट्रभाषा ही नहीं है, बल्कि ये भारत का गौरव भी है और भारतीय संस्कृति की आत्मा भी. राष्ट्र की इसी शान को ताकत देने का काम हिंदी साहित्य के वो शूरवीर कर रहे हैं, जिनकी कलम से देश को जोड़ने वाले इस सूत्र को पिरोया जा रहा है. देहरादून निवासी शर्मा परिवार भी वर्षों से हिंदी की सेवा कर रहा है. हिंदी के प्रति अपनी जिम्मेदारी और सेवा का ये भाव शर्मा परिवार को अपने बड़ों से मिला है. यूं तो एक वरिष्ठ कवि और लेखक के रूप में अतुल शर्मा हर दिल अजीज रहे हैं, लेकिन इस मामले में उनकी दोनों बहनें भी हिंदी साहित्य के लिए अपने योगदान को निभाती रही हैं.
अतुल शर्मा की बहनें भी हिंदी साहित्य को समर्पित: लेखक और कवि अतुल शर्मा, उनकी बहनें रंजना शर्मा और रेखा शर्मा देहरादून के वाणी विहार में रहते हैं. परिवार के यह तीनों ही सदस्य दिन निकलने से लेकर शाम ढलने तक हिंदी साहित्य को ही जीते हैं. हालांकि हिंदी साहित्य इस परिवार को विरासत में मिला है. पिता श्रीराम शर्मा प्रेम न केवल स्वतंत्रता सेनानी थे बल्कि एक राष्ट्रीय धारा के प्रमुख कवि भी थे. यही वजह थी कि तमाम बड़े साहित्यकारों और कवियों का उनके घर आना-जाना रहता था. वरिष्ठ कवि अतुल शर्मा कहते हैं कि इस दौरान तमाम बड़े कवियों को सुनने का मौका भी उन्हें मिलता रहा. परिवार में पिता साहित्य से जुड़े रहे, तो माता भी लोकगीतों के जरिए इस क्षेत्र में उनकी रुचि को बढ़ाने का काम करती रहीं. बचपन से ही साहित्य को देखा समझा और महसूस किया. नतीजा यह था कि परिवार के हर सदस्य में हिंदी साहित्य को लेकर प्रगाढ़ रुचि बनी रही. अतुल शर्मा के साथ उनकी बहनें भी साहित्य को लेकर एक अलग सोच को विकसित कर रहीं.
अतुल शर्मा की पहली कविता 1971 में प्रकाशित हुई: वरिष्ठ कवि अतुल शर्मा कहते हैं कि इन्हीं तमाम विचारों के साथ 1971 में पहली बार उनकी पहली कविता प्रकाशित हुई. अतुल शर्मा की रुचि आत्मकथाओं और उन घटनाओं पर रही, जो उन्होंने खुद रची और महसूस की. उनकी पहली कविता भी ऐसी ही एक घटना पर आधारित थी. विरही नदी पर झील बनने के बाद इसके अचानक टूट जाने से हुई भीषण दुर्घटना को उन्होंने अपनी कविता में उतारा और इस घटना को हमेशा के लिए जीवित कर दिया.
अतुल शर्मा के पिता थे स्वतंत्रता सेनानी: पिता स्वतंत्रता सेनानी थे. लिहाजा अतुल शर्मा और उनकी बहनों का संघर्ष को चुनना लाजमी ही था. हिंदी साहित्य की सेवा को करते हुए उन्होंने हमेशा जन सरोकारों को सर्वोपरि रखा. नदी बचाओ आंदोलन, पर्यावरण संरक्षण और चिपको आंदोलन से लेकर उत्तराखंड राज्य आंदोलन तक में भी सक्रिय भूमिका निभाते हुए अपने गीतों और लेखन के जरिए आंदोलन को आवाज देने की कोशिश की. हिंदी साहित्य के जरिए सभी को जोड़ने का प्रयास हुआ. आंदोलन के दौरान ऐसे तमाम गीत लोगों की जुबान पर चढ़ गए, जिन्होंने ऐसे महत्वपूर्ण संघर्षों को लक्ष्य तक पहुंचाया.