रांची:हेमंत सोरेन राज्य के 13वें मुख्यमंत्री बन गये हैं. ऐसा पहली बार हुआ है जब सीएम के साथ किसी दूसरे विधायक को मंत्री पद की शपथ नहीं दिलायी गयी. 4 जुलाई से पहले सत्ताधारी दल के नेता खुलकर कह रहे थे कि भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के दिन यानी 7 जुलाई को सीएम समेत मंत्रियों का शपथ ग्रहण होगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. आखिर क्यों?
दरअसल, यह फैसला एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा है. हेमंत सोरेन ऐसा नहीं करते तो आने वाले दिनों में उनके सामने कई चुनौतियां खड़ी हो सकती थी. क्योंकि राजनीतिक हालात अब बदल चुके हैं. इसके पीछे की कई वजहें हैं. विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती फ्लोर टेस्ट पास करने की है. वह जानते हैं कि फ्लोर टेस्ट से पहले मंत्रियों का नाम घोषित करने पर किस तरह की परिस्थितियां सामने आ सकती हैं. इसे समझने के लिए 2019 के विधानसभा चुनाव परिणाम और वर्तमान में सदन के भीतर की दलगत स्थिति को समझना होगा.
2019 में विस चुनाव के बाद की दलगत स्थिति
दरअसल, सीएम पद की शपथ लेने के बाद 8 जुलाई को हेमंत सोरेन को विधानसभा में बहुमत साबित करना है. दिसंबर 2019 में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद की परिस्थिति कुछ और थी. तब महागठबंधन के तहत झामुमो के 30, कांग्रेस के 16 और राजद के एक विधायक की जीत हुई थी. इस लिहाज से महागठबंधन के पास बहुमत के 41 विधायकों की तुलना में 47 विधायक थे. भाकपा माले के समर्थन से विधायकों की कुल संख्या 48 थी.
उस वक्त एनसीपी के कमलेश सिंह ने भी हेमंत सरकार को समर्थन देने की घोषणा की थी. लिहाजा, सरकार के समर्थन में कुल 49 विधायक थे. तब जेवीएम के तीन विधायकों का भी सरकार को समर्थन था. इस लिहाज से सरकार के पक्ष में कुल 52 विधायक थे. इसी दौरान जेवीएम में टूट की वजह से प्रदीप यादव और बंधु तिर्की के कांग्रेस में जाने पर सरकार को कुल 51 विधायकों का समर्थन था. इसलिए उनको सरकार बनाने और चलाने में किसी तरह की दिक्कत नहीं हुई.
उसी दौर में मधुपुर, बेरमो, मांडर, डुमरी और रामगढ़ सीट के लिए अगल-अलग वजहों से उपचुनाव हुए. इसमें कांग्रेस को सिर्फ रामगढ़ सीट गंवानी पड़ी शेष जगहों पर सत्ताधारी दल कब्जा जमाने में कामयाब रहे. लेकिन हेमंत के जेल जाने के बाद झारखंड की राजनीतिक तस्वीर बदलने लगी. कई विधायकों में मंत्री बनने की चाहत हिलोरे मार रही थी. तत्कालीन चंपाई सरकार पर दबाव बढ़ रहा था.
इस दौरान आलमगीर आलम के जेल जाने के बाद खाली सीट पर कांग्रेस कोटे से इरफान अंसारी के नाम और झामुमो कोटे से बैद्यनाथ राम की जोरशोर से चर्चा होने लगी. परफॉर्मेंस के हवाले से मंत्री बादल पत्रलेख का भी पत्ता कटने की बात हुई. उनकी जगह दीपिका पांडेय सिंह और प्रदीप यादव का नाम सामने आया. लेकिन इसी बीच हेमंत सोरेन को नियमित जमानत मिलने पर राजनीतिक का ऊंट अलग करवट ले बैठा. चंपाई आउट हो गये. अब हेमंत के हाथ में सत्ता की कमान है. दूसरी बार सीएम बनने पर चार साल और एक माह तक सत्ता चलाने के दौरान वह अच्छी तरह जान चुके हैं कि कौन-कौन भीतरघात कर सकता है. इसलिए वह फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रहे हैं.
सदन के भीतर दलगत स्थिति