कोटा :मेडिकल प्रवेश परीक्षा नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (NEET UG) के जरिए ही देश की एमबीबीएस सीटों पर एडमिशन मिलता है. समान अंकों पर टाई-ब्रेकिंग क्राइटेरिया के जरिए रैंक का निर्धारण किया जाता है. नेशनल टेस्टिंग एजेंसी समान अंकों पर रैंक निर्धारण करने के लिए टाई ब्रेकिंग क्राइटेरिया का उपयोग करती है. इस बार फिर टाई ब्रेकिंग क्राइटेरिया में बदलाव किया गया है. इसके तहत एक्सपर्ट कमेटी की गाइडेंस में रेंडम प्रोसेस के जरिए ऑल इंडिया रैंक दी जाने की बात कही गई है.
समान अंक पर भी नहीं मिलता कॉलेज :एजुकेशन एक्सपर्टदेव शर्मा ने बताया किएमबीबीएस सीटों पर एडमिशन की मारामारी रहती है. एक ही अंक पर सैंकड़ों की संख्या में रैंक आती है. कई बार समान अंक हजारों विद्यार्थियों तक के आ जाते हैं. समान रैंक होने के बावजूद भी कई कैंडिडेट्स को एडमिशन नहीं मिल पाता है. दूसरी तरफ समान अंक होने पर भी दूसरे कॉलेज में कैंडिडेट्स को एडमिशन लेना पड़ता है. ऐसा एम्स जैसे बड़े संस्थान में भी होता है. कैंडिडेट्स को समान अंक होने के बावजूद एम्स की जगह दूसरे संस्थान में प्रवेश लेना पड़ता है. एम्स में 7500 रुपए के आसपास में पूरी एमबीबीएस हो जाती है, जबकि अन्य संस्थाओं में लाखों रुपए फीस होती है. ऐसे में समान अंक पर अलग रैंक होने के चलते कॉलेज में एडमिशन नहीं मिलने या निकला कॉलेज मिलने पर कई कैंडिडेट न्यायिक प्रक्रिया अपना लेते हैं.
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टाई ब्रेकिंग क्राइटेरिया से विवाद भी हुए :नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने ट्राई ब्रेकिंग क्राइटेरिया में लगभग हर साल बदलाव किया है. नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने साल 2024 में टाई बेकिंग क्राइटेरिया में कंप्यूटर से लॉटरी निकलने का नियम डाला था, लेकिन लगातार इस टाई ब्रेकिंग क्राइटेरिया की आलोचना हुई, जिसके बाद नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने एक्सपर्ट की सलाह के चलते 2024 में ही इसमें फिर बदलाव कर दिया था. इसका रिवाइज्ड इंफॉर्मेशन ब्रोशर जारी किया गया था, जबकि ऑल इंडिया रैंक समान अंक आने पर नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने पहले जारी किए गए अपने दोनों फार्मूले का उपयोग नहीं करते हुए 2023 के फार्मूले को लगा दिया है.