देहरादून: भारत-चीन सीमा को जोड़ने वाली सड़क उत्तराखंड के चमोली, पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी में स्थित हैं. यह वह जनपद हैं, जहां से सीधे तौर पर चीन से जुड़ा जा सकता है. यही कारण है कि उत्तराखंड के इन तीनों मुख्य मार्गों पर भारत सरकार लगातार जोर दे रही है, ताकि चीन सीमा तक अपनी पकड़ और अधिक मजबूत बनाई जाए.
चमोली जिले में इसका काम तेजी से चल रहा था, लेकिन अब पिथौरागढ़ में भी यह काम अंतिम दौर में आ गया है. पिथौरागढ़ के मिलम मार्ग का काम साल 2018 में शुरू हुआ था, जिसको साल 2024 में पूरा होना है. उम्मीद यही जताई जा रही है कि अगले दो महीने में बाकी बची सड़क का निर्माण भी बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन कर लेगी. इस मार्ग के बनने के बाद न केवल सेना को फायदा होगा, बल्कि चीन पर पैनी नजर रखी जा सकेगी.
तेजी से चल रहा है सड़क का निर्माण:पिथौरागढ़ में यह मार्ग मुनस्यारी के धापा बैंड से मिलम को जोड़ता है. मुनस्यारी से इस जगह की दूरी यानी चीन सीमा की दूरी लगभग 65 किलोमीटर की है. साल 2018 में भारत सरकार की योजना थी कि लद्दाख, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की उन सभी सड़कों को तेजी से बनाया जाए जो बॉर्डर को कनेक्ट करती हैं. पिथौरागढ़ सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण जिला है. हालांकि उत्तराखंड की तमाम ऊपरी सीमाएं चीन और नेपाल देशों से लगती हैं. लिहाजा हमेशा सेना का मूवमेंट इस जगह पर रहता है. 7 साल में बनकर तैयार हो रही इस सड़क के बनने के बाद उम्मीद यही जताई जा रही है कि सड़क एवं परिवहन मंत्रालय के साथ साथ रक्षा मंत्री भी इस सड़क को देखने आ सकते हैं. फिलहाल बताया जा रहा है कि लगभग 50% सड़क का काम पूरा हो गया है. बाकी का काम आने वाले 2 महीनों में पूरा कर लिया जाएगा.
बस चंद कदम दूर है चीन:खड़े पहाड़ और चट्टानों के बीच काम कर रहे बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन के कर्मचारियों ने दिन-रात एक करके सड़क का निर्माण पूरा किया है. बेहद कठिन परिस्थितियों में काम कर रहे यह सभी कर्मचारी इस बात से खुश हैं कि उनकी मेहनत अब कुछ समय बाद पूरी सफल होने वाली है. धापा की ओर से सड़क का कार्य एबीसीआई कंपनी कर रही है. मिलम की तरफ से इसका काम बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन कर रही है. बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन तेजी से पहाड़ों की कटिंग और मशीनों को ऊपर तक ले जाने का जिम्मा खुद अपने कंधों पर उठाए हुए है.
बताया जा रहा है कि मिलम दिशा की तरफ से मात्र 50 मीटर पहाड़ी के काटने का काम रह गया है. सड़क बनने के बाद सबसे पहले बीआरओ के बड़े वाहन इस पर काम करेंगे. जब कटिंग पूरी तरह से दोनों तरफ की हो जाएगी, तभी सेना की गाड़ियों के मूवमेंट को यहां से इजाजत दी जाएगी. इस सड़क के बनने के बाद न केवल सेना को फायदा होगा, बल्कि आसपास के एक दर्जन से ज्यादा गांवों को भी इसका फायदा मिलने जा रहा है. इस सड़क के बनने से मिलम, बिल्जू, गंघरा, सुमतु, टोला, मर्तोली, रिलकोट जैसे गांव सीधे सड़क से जुड़ जाएंगे.
जीरो तापमान में कर रहे हैं शुरू से काम:सड़क को बनाने के लिए खास बात यह है कि एजेंसी और बीआरओ के कर्मयोगियों ने जीरो डिग्री तापमान में भी काम किया है. जिस वक्त इस पूरे इलाके में बर्फबारी और बेहद ठंडा मौसम था, उस वक्त भी इस सड़क के निर्माण का काम रुका नहीं. यह पूरा का पूरा क्षेत्र बर्फ से ढका रहता है. इतना ही नहीं इस इलाके में उत्तराखंड के बड़े ग्लेशियरों में से एक मिलम ग्लेशियर भी मौजूद है. यह इलाका समुद्र तल से लगभग 2,265 मीटर की ऊंचाई पर है. सड़क का निर्माण 3,400 मीटर तक किया जा रहा है. इस सड़क के बनने से सेना को चीन सीमा तक पहुंचने में बेहद कम समय लगेगा. बताया जाता है कि जिस जगह चीन सीमा तक पहुंचने के लिए सेना को चॉपर या लगभग 11 घंटे का समय लगता था, अब वही समय घट कर मात्र दो घंटे हो जाएगा. सेना के ट्रक रसद और अन्य सामग्री आसानी से इसके माध्यम से चेक पोस्ट तक पहुंचा सकेंगे.
ग्रामीणों को भी मिलेगा ये फायदा: मुनस्यारी के तहसीलदार चंद्र प्रकाश कहते हैं कि जिस रफ्तार से इस सड़क का निर्माण चल रहा है, वह देखकर यह लगता है कि आने वाले एक से दो महीने या हो सकता है कि जुलाई के शुरुआती 15 दिनों में ही इसका काम पूरा कर लिया जाए. इस मोटर मार्ग के बढ़ने से न केवल सेना को बल्कि स्थानीय ग्रामीणों को भी बेहद फायदा मिलने वाला है. इस सड़क के आसपास जितने भी गांव हैं, वह सभी माइग्रेशन वाले गांव हैं. यानी बर्फबारी होने के बाद तमाम गांवों के लोग बममुश्किल नीचे उतरकर आते हैं. लेकिन सड़क बनने के बाद हो सकता है कि उनके पास बहुत अधिक विकल्प हो जाएं. इतना ही नहीं सेना की आवाजाही भी अब बेहद सुगम तरीके से हो सकेगी.
सीएम धामी ने भी पीएम से की इन परियोजना के लिए बात:मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रधानमंत्री से हुई मुलाकात के दौरान भी सड़क निर्माण का जिक्र किया है. सीएम धामी ने उत्तराखंड की रेल और विद्युत परियोजनाओं के साथ-साथ पीएम से ज्योलिकांग वेदांग और मिलम लिपुथल को जोड़ने वाली 30 किलोमीटर की टनल के निर्माण के लिए भी वित्तीय सहायता मांगी है. इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने यह भी अपील की है कि उत्तराखंड की सीमाओं को जोड़ने वाले ऊपरी इलाकों में जितनी भी सड़कों का या मैदानी इलाकों में हाईवे का निर्माण किया जा रहा है, उनकी क्षतिपूर्ति के लिए वृक्षारोपण हो सके, उसके लिए भूमि की व्यवस्था भी की जाए. राज्य सरकार ने यह क्षतिपूर्ति का आग्रह भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इसलिए भी किया है, क्योंकि वन संरक्षण एवं संवर्धन नियम गाइडलाइन 2023 के अनुसार ये काम केवल गैर वन भूमि पर ही किया जा सकता है. भारत सरकार लगातार उत्तराखंड के पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी में बन रही तमाम सड़कों की मॉनिटरिंग कर रही है. राज्य सरकार के साथ-साथ रक्षा और गृह मंत्रालय के अधिकारी भी इस काम को बड़ी बारीकी से देख रहे हैं.
अब ये टास्क है चुनौती:आपको बता दें कि इससे पहले बीआरओ ने ही साल 2019 में बेहद कठिन काम करके लिपुलेख तक सड़क का निर्माण कर लिया था. इसके बाद ही आदि कैलाश यात्रा को तेजी से लाभ मिला था. लोग वहां अपनी गाड़ियों से जाने लगे थे. ये मार्ग भी चीन सीमा से जुड़ जाने के बाद सेना को काफी फायदा मिल रहा है. इसके साथ ही 4 साल पहले बीआरओ, आईटीबीपी और अन्य एजेंसी मिलम से जोशीमठ की पहाड़ियों का सर्वे कर चुकी हैं. ये सर्वे 20 दिनों तक पैदल चल कर किया गया था. इस मार्ग के बनने से भी गढ़वाल और कुमाऊं को हर तरीके से फायदा मिलेगा और सेना की आवाजाही भी दोनों जोन में आसानी से हो सकेगी, साथ ही साथ पर्यटन को भी गति मिलेगी.
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