पटना: बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं, और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने संयुक्त अभियान की शुरुआत कर दिया है. एनडीए के पांचों दल एक साथ काम कर रहे हैं, लेकिन इन सब के बीच एनडीए के दो घटक दलों के बीच वर्चस्व की लड़ाई सामने आ रही है. खासतौर पर दलित सियासत में जीतन राम मांझी और चिराग पासवान की ताकत का मुकाबला देखने को मिल रहा है.
जीतन राम मांझी की डिनर डिप्लोमेसी : पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने हाल ही में अपनी ताकत का प्रदर्शन किया. मांझी ने डिनर डिप्लोमेसी का सहारा लिया और राज्यपाल, मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को अपने आवास पर बुलाया. इस अवसर पर एनडीए के तमाम बड़े नेता पहुंचे, लेकिन चिराग पासवान इस डिनर से दूर रहे. एक बार फिर यह दिखा कि चिराग पासवान और जीतन राम मांझी एक साथ एक मंच पर नहीं आए हैं.
सोशल मीडिया पर वार और राजनीति में बढ़ती खींचतान : सोशल मीडिया पर भी चिराग और मांझी के बीच बयानबाजी देखी गई. सत्य नामक एक व्यक्ति ने सोशल मीडिया पर जीतन राम मांझी और नीतीश कुमार की तारीफ की, जिसके बाद चिराग पासवान पर सवाल उठाए गए. इस पर जीतन राम मांझी ने ट्वीट किया कि “कुछ नहीं करने से बेहतर है मर जाना”. हालांकि, बाद में उन्होंने इसे हटा लिया. इस विवाद ने राजनीति में नए मोड़ ला दिए, और दोनों नेताओं के बीच वर्चस्व की लड़ाई और तीव्र हो गई है.
जीतन राम मांझी की 40 सीटों पर नजर: जीतन राम मांझी और चिराग पासवान के बीच लंबे समय से राजनीतिक टकराव जारी है, जो विधानसभा चुनाव के दौरान और अधिक तेज हो सकता है. जीतन राम मांझी ने एनडीए से विधानसभा की 40 सीटों पर दावा किया है. उनका कहना है कि वह अपनी ताकत दिखाकर चुनावी मैदान में उतरेंगे और अपनी स्थिति मजबूत करेंगे.
नीतीश कुमार और जीतन राम मांझी की गर्मजोशी : हालांकि, नीतीश कुमार के साथ जीतन राम मांझी का संबंध काफी मजबूत रहा है. दोनों नेता जब डिनर डिप्लोमेसी के दौरान मिले तो गर्मजोशी से मिले. संकेत साफ थे कि नीतीश कुमार चिराग पासवान के मुकाबले जीतन राम मांझी को अधिक तवज्जो दे सकते हैं. मांझी के पक्ष में नीतीश कुमार खड़े हो सकते हैं, जो एनडीए के अंदर उनकी स्थिति को मजबूत कर सकता है.
दलित सियासत के दो धुरी नेता: बिहार की सियासत में जीतन राम मांझी और चिराग पासवान दोनों बड़े दलित नेता हैं. जहां चिराग पासवान खुद को दलितों का बड़ा नेता मानते हैं, वहीं जीतन राम मांझी ने खुद को दलितों के हित में मजबूत खड़ा नेता माना है. वह एनडीए के प्रति अपनी लॉयल्टी दिखाते रहे हैं और इसके माध्यम से अपनी राजनीतिक ताकत को और बढ़ाना चाहते हैं.