नालंदाः कैसा लगेगा जब किसी मंदिर में जाएं और प्रसाद के रूप में लंगोट मिले. जी हां, ऐसा मंदिर बिहार में है. इस मंदिर में भगवान को प्रसाद के रूप में लंगोट चढ़ाया जाता है. बिहार ही नहीं, बल्कि राज्यों से आकर भी इस मंदिर में लंगोट चढ़ाते हैं. बिहार के नालंदा जिले में बिहारशरीफ के पंचाने नदी किनारे स्थित बाबा मणिराम अखाड़ा मंदिर है, जो अपने आप में अनोखा है. जानकार बताते हैं कि भारत में ऐसा मंदिर कहीं और देखने को नहीं मिलेगा.
इस परंपरा के पीछे की वजह क्या है? बता दें कि लंगोट ब्रह्मचर्य का प्रतीक है. खासकर पहलवानों को कुश्ती के दौरान पहनना होता है. बाबा मणिराम भी पहलवान थे जिन्होंने अखारा के माध्यम से सनातन धर्म का प्रचार प्रसार किया था. बाबा ने एक कुश्ती के लिए अखारा का भी निर्माण कराया था. बाबा मणिराम अखाड़ा न्यास समिति के उपाध्यक्ष अमरकांत भारती बताते हैं कि अखारा परिसर में ही बाबा ने समाधि ली थी. 1952 से यहां बाबा को लंगोट चढ़ने की परंपरा की शुरुआत हुई.
"पटना में उत्पाद निरीक्षक कपिलदेव प्रसाद के प्रयास से 6 जुलाई 1952 में बाबा के समाधि स्थल पर लंगोट मेले की शुरुआत हुई थी. इसके पहले रामनवमी के मौके पर श्रद्धालु बाबा की समाधि पर पूजा-अर्चना करने आते थे. तब से हर वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा के दिन से सात दिवसीय मेला यहां लगता है. कपिलदेव बाबू को पांच पुत्रियां थी. बाबा की कृपा से उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई थी. बाबा की कृपा इतनी कि उनके दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता. सच्चे मन से मांगी गई मुराद जरूर पूरी होती है."- अमरकांत भारती, उपाध्यक्ष, बाबा मणिराम अखाड़ा न्यास समिति
क्या मान्यता है बाबा मणिराम को लेकर? अमरकांत भारती ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि यहां की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नि:संतान महिलाओं को संतान सुख की प्राप्ति होती है. बाबा मणिराम का नालंदा में 1248 ई आगमान हुआ था. 1300 ई. में भक्तों को शांति व स्वास्थ्य का संदेश देकर बाबा ने समाधि ले ली थी. जानकार बताते हैं कि बाबा अयोध्या से चलकर यहां आएं थे. मान्यता है कि इस मंदिर में आकर कोई सच्चे मन से मन्नतें मांगता है तो जरूर पूरी होती है. मन्नत पूरी होने के बाद भक्त बाबा को लंगोट चढ़ाते हैं.
सनातन धर्म का बने प्रचारकः अमरकांत भारती ने बताया कि बाबा ने शहर के दक्षिणी छोर पर पंचाने नदी के पिस्ता घाट को अपना पूजा स्थल बनाया था. वर्तमान में यही स्थल ‘अखाड़ा पर’ के नाम से प्रसिद्ध है. ज्ञान की प्राप्ति और क्षेत्र की शांति के लिए बाबा घनघोर जंगल में रहकर मां भगवती की पूजा-अर्चना करते थे. साथ ही लोगों को कुश्ती भी सिखाते थे. इसी के ज़रिए सनातन धर्म का प्रचार प्रसार भी करते थे.