रांचीः असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने 'हो' भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग से जुड़ी तस्वीर सोशल मीडिया पर साझा कर झारखंड की राजनीति को गरमा दिया है. उन्होंने लिखा है कि झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और असम में रहने वाले आदिवासी 'हो' समाज के परिवारजनों की कई वर्षों से मांग थी कि 'हो' भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए.
इसको लेकर उनकी पहल पर 'हो' समाज युवा महासभा और अखिल भारतीय हो भाषा एक्शन कमेटी के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात हुई है. गृह मंत्री ने प्रतिनिधिमंडल को विश्वास दिलाया है कि भारत सरकार उनकी मांग पर विचार करेगी. खास बात यह है कि सीएम हिमंता के इस पोस्ट से कुछ घंटे पहले ही पूर्व सीएम चंपाई सोरेन ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को 'हो' भाषा के बाबत लिखे पत्र को सोशल मीडिया पर साझा किया था.
इधर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने भी हो भाषा को संवैधानिक मान्यता देने की मांग करते हुए कहा है कि भारतीय जनता पार्टी का मानना है कि क्षेत्रीय और मातृभाषा में लोगों को शिक्षा दी जाए, यहां तक कि इंजीनियरिंग और मेडिकल की भी पढ़ाई मातृभाषा में हो. उन्होंने कहा कि हो भाषा को लेकर पुरानी मांग रही है. केंद्रीय गृहमंत्री ने आश्वासन दिया है, उम्मीद करते हैं कि सकारात्मक परिणाम इसका आएगा.
झारखंड में 2011 में ही हो को दूसरी राजभाषा के रूप में मान्यता दी गई है. आठवीं अनुसूची में इसे शामिल करने के लिए राज्य सरकार के द्वारा 2003 में ही केंद्र सरकार से सिफारिश की जा चुकी है, मगर अब तक इसे संवैधानिक दर्जा नहीं मिला है. गौरतलब है कि हो भाषा को झारखंड सहित पूरे देश भर में 50 लाख से अधिक लोग बोलते हैं, अकेले झारखंड में ही 20 लाख से अधिक लोगों के द्वारा इसे बोली जाती है. उसके बाद ओडिशा में सर्वाधिक यह भाषा बोली जाती है. ऐसे में इनकी मांग संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने को लेकर लंबे समय से चल रही है. आपको बता दें कि बीते 14 सितंबर को दिल्ली के जंतर- मंतर पर भी इस मांग को लेकर धरना प्रदर्शन किया गया था.
झामुमो ने चिट्ठी साझा कर कसा तंज
खास बात यह है कि 'हो' भाषा को लेकर राजनीति शुरु होते रही है. झामुमो ने 21 अगस्त 2020 को सीएम हेमंत द्वारा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को लिखी गई चिट्ठी को साझा करते हुए लिखा है कि केंद्र सरकार की नींद कब खुलेगी. मुख्यमंत्री ने हो, मुंडारी, कुड़ुख भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार को चार साल पहले ही पत्र लिखा था. सरना आदिवासी धर्म कोड की मांग पर भी केंद्र सरकार का रवैया सुस्त रहा है.
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