आगराःअयोध्या और काशी के बाद अब आगरा की जामा मस्जिद की सीढ़ियों का जीपीआर सर्वे (Ground Penetrating Radar) करने को लेकर कोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया गया है. योगेश्वर श्री कृष्ण जन्म स्थान सेवा ट्रस्ट ने कोर्ट में वाद दायर कर मांग की है कि जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे की हकीकत सामने लाने के लिए जीपीआर सर्वे कराया जाए. इस केस और श्री कृष्ण भगवान विराजमान बनाम उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वफ्फ बोर्ड केस की सुनवाई अब 29 मार्च को होगी. इसके साथ ही जामा मस्जिद के दूसरे मामले में भी सुनवाई होगी.
2023 में दायर हुई थी याचिकाःबता दें कि, सन 2023 में योगेश्वर श्री कृष्ण जन्म स्थान सेवा ट्रस्ट की ओर से आगरा कोर्ट में वाद दाखिल किया गया था. जिसमें आगरा की जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे मथुरा के श्रीकृष्ण देव मंदिर के विग्रह दबे होने की बात कही गई. वादी पक्ष के अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने बताया कि उनके पास कई अहम साक्ष्य हैं. जिसके आधार पर तय है कि भगवान कृष्ण देव मंदिर के विग्रह आगरा की जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबे हैं. इसलिए जामा मस्जिद की सीढ़ियों का जीपीआर सर्वे कराने के लिये कोर्ट में आग्रह किया है.
इतिहास की किताबों में सबूतों का अंबारःअधिवक्ता अजय प्रताप ने बताया कि सन 1669-70 ई. में मुगल शासक औरंगजेब के आदेश पर मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर के प्रभु श्रीकृष्ण व साथ में अन्य विग्रह आगरा की जामा मस्जिद (बेगम साहिब) की मस्जिद की सीढियों के नीचे दबाया था. जिससे नमाज़ी मस्जिद की सीढियों पर चढते-उतरते पैरों से कुचलकर सनातन धर्म और सनातन धर्मावलंबियों को अपमानित कर सकें. जामा मस्जिद (बेगम साहिब) की मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे प्रभु श्रीकृष्ण के विग्रहों को दबाये जाने का उल्लेख औरंगजेब के शासनकाल में लिखी पुस्तक 'मासिर-ए-आलमगीरी' के पाठ-13 में मिलता है.
एएमयू की थीसिस में हैं सबूतःअधिवक्ता राजेश कुलश्रेष्ठ ने बताया कि जामा मस्जिद को लेकर तीसरा साक्ष्य अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के शोध छात्र सलीम अंसारी की मास्टर ऑफ फिलोसोफी की थीसिस है. जो सन 2015 ई. में प्रोफेसर मोहम्मद अफजल खान की देखरेख में पूरी की गई है. इस थीसिस का शीर्षक 'Studying Mughal Architecture Under Shah Jahan: Mosques of Agra' इस शोध में सलीम अंसारी ने जहांआरा को बेगम साहिब बताया है.
क्या होता है GPR सर्वेःअधिवक्ता राजेश कुलश्रेष्ठ ने बताया कि राम जन्मभूमि और काशी ज्ञानवापी मस्जिद के विवाद में भी जीपीआर तकनीक का प्रयोग हुआ. इसमें बिना जमीन की खुदाई किए ही 10 मीटर गहराई तक धातु व अन्य संरचनाओं के बारे में जानकारी मिलती है. इस सर्वे में पुरातात्विक इतिहास जानने के लिए जमीन का खनन नहीं करना पड़ता है. सर्वे में विशेषज्ञों के मुताबिक उस परिसर के अंदर जमीन में दबी वस्तुओं का सटीक पता लगाने की यह अचूक तकनीक है.