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20 माह के मासूम को मदद की आस, इलाज के लिए साढ़े 17 करोड़ के इंजेक्शन की दरकार

Hridayansh needs help, अलवर के हृदयांश को अगर चार माह के भीतर साढ़े 17 करोड़ का इंजेक्शन नहीं लगा तो उसकी मौत हो सकती है, क्योंकि उसे स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी नामक बीमार है. परिजनों की आर्थिक स्थिति भी ऐसी नहीं है कि वो अपने बच्चे का इलाज करा सके. यही वजह है कि अब वो सरकार और स्वयंसेवी सगठनों से मदद की आस लगाए बैठे हैं.

Hridayansh needs help
Hridayansh needs help

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 19, 2024, 8:34 PM IST

जेके लोन अस्पताल के रेयर डिजीज सेंटर के प्रमुख डॉ. प्रियांशु माथुर

जयपुर/अलवर.जिले के कठूमर क्षेत्र के मसारी गांव में एक 20 माह का बच्चा जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रहा है. उसे स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी नामक बीमार है. जयपुर के निजी अस्पताल में इलाज के दौरान परिजनों की इसकी जानकारी हुई. उसके बाद से ही पूरा परिवार सदमे में है, क्योंकि इस बीमारी के इलाज के लिए जिस इंजेक्शन को देने की जरूरत है, उसकी कीमत साढ़े 17 करोड़ है. परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, लिहाजा बच्चे के मां-बाप सरकार से मदद की आस लगाए बैठे हैं. साथ ही मासूम की सलामती के लिए परिजन महामृत्युंजय मंत्र का जाप व हवन करा रहे हैं. वहीं, चिकित्सकों का कहना है कि अगर चार महीने में बच्चे को इंजेक्शन नहीं दिया गया तो धीरे-धीरे उसके फेफड़ों के साथ ही पूरे शरीर में इन्फेक्शन फैल जाएगा.

इलाज के लिए चाहिए 17 करोड़ का इंजेक्शन :स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी से पीड़ित मासूम हृदयांश शर्मा के पिता नरेश शर्मा राजस्थान पुलिस में सब इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत हैं. वो और उनके परिजन हृदयांश को जनेटिक बीमारी का पता लगने के बाद से ही परेशान हैं. परिजनों ने बताया कि 20 महीने का होने के बाद भी जब हृदयांश चल नहीं पाया तो उसके माता-पिता ने उसे जयपुर, दिल्ली समेत अन्य जगहों के चिकित्सकों को दिखाया. इस बीच जांच में अनुवांशिक बीमारी का पता चला, लेकिन परिवार की हालात ऐसी नहीं है कि वो आगे बच्चे का इलाज करा सके. वहीं, बताया गया कि बच्चे को लगने वाले इंजेक्शन की कीमत करीब साढ़े 17 करोड़ है. ऐसे में अब पूरा परिवार सरकार के साथ ही स्वयंसेवी संगठनों से मदद की आस लगाए बैठा है.

सरकार और स्वयंसेवी सगठनों से मदद की आस

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दवा के साथ दुआ के भरोसे परिजन :हृदयांश की जिंदगी के लिए परिजन हर कोशिश कर रहे हैं. दवा की तलाश के साथ-साथ दुआओं का दौर भी शुरू हो गया है. परिवार वाले घर पर पंडितों से महामृत्युंजय मंत्र का जाप व हवन करवा रहे हैं. मासूम हृदयांश की 6 साल की बहन अपने भाई के ठीक होने के लिए भगवान से प्रार्थना कर रही है तो मां के आंखों की आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं.

राजस्थान में जेनेटिक रिसर्च सेंटर की जरूरत :जयपुर के शिशु रोग विशेषज्ञ व जेके लोन अस्पताल के रेयर डिजीज सेंटर के प्रमुख डॉ. प्रियांशु माथुर ने कहा कि हृदयांश स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी नामक बीमारी से ग्रसित है. इस तरह की बीमारी का शिकार बच्चे अक्सर कमजोरी के कारण हो जाते हैं. यह कमजोरी पैरों से शुरू होते हुए रीड की हड्डी तक जा पहुंचती है. इसके बाद इस तरह के मरीज को अन्य नसों में भी समस्याएं होने लगती है और फिर धीरे-धीरे सांस की तकलीफ शुरू होती और आगे चलकर निमोनिया की शिकायत हो जाती है और यही आगे चलकर बच्चे की मौत की वजह बनती है.

इस तरह की बीमारियां जेनेटिकल होती हैं. फिलहाल राजस्थान में इसकी जांच की सुविधा नहीं है, बल्कि हमारे देश में भी चुनिंदा सेंटर्स पर ही जेनेटिक बीमारियों से जुड़ी जांच की जाती है. ऐसे में यदि गर्भकाल में 15 से 18 हफ्ते के बाद यूट्रस के वाटर के जरिए टेस्टिंग कराए तो बच्चों के इस बीमारी से संक्रमित होने का पता लग सकता है.

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