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کھلے آسمان کے نیچے بچوں کا مستقبل

ضلچ سہارنپورمیں محکمہ بہبود کے کل 7 اسکول ہیں۔ محمدپور کے اسکول کی حالت خستہ ہو چکی ہے۔ بچے کھلے آسمان کے نیچے پڑھنے پر مجبور ہیں۔ بارش ہونے کے بعد سانپ آنے کے خطرات بہت ہوتے ہیں۔

کھلے آسمان کے نیچے بچوں کا مستقبل
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Published : Oct 14, 2019, 12:12 PM IST

ریاست اترپردیش کے ضلع سہارنپور کو ایک علمی شہر کہا جاتا ہے۔ معروف تعلیمی ادارہ دارالعلوم دیوبند سہارنپور کی پہچان ہے۔ جہاں سے ہر برس ہزاروں طالب علم فراغت پاتے ہیں۔
لیکن سہارنپور کے محمدپور گاؤں میں ایک ایسا اسکول بھی ہے جہاں بچوں کو پڑھنے کے لیے نہ چھت میسر ہے نہ اساتذہ۔

کھلے آسمان کے نیچے بچوں کا مستقبل

محمدپور میں محکمہ بہبود کے ذریعہ چلائے جارہے بھیم راؤ امبیڈکر میموریل اکیڈمی اسکول کی بنیاد 1950 میں رکھی گئی تھی، 70 برس قبل کسی فلاحی تنظیم نے اس اسکول کی عمارت بنوائی تھی، لیکن اب وہ بالکل خستہ ہو چکی ہے۔ اس کی دیواریں اور چھتیں کب گر جائیں کچھ کہا نہیں جا سکتا۔

محکمہ بہبود نے پڑھائی اور دیگر سہولیات کا ذمہ لیا تھا، اسکول میں فی الحال ایک استاد کی بحالی ہوئی ہے، وہیں کسان شیوچرن کاشتکاری کے ساتھ ساتھ بغیر کسی اجرت کے بچوں کو پڑھا رہے ہیں۔

بتایا جارہا ہے کہ گذشتہ 10 برسوں سے اسکول کی عمارت خستہ ہے۔ جس کے بعد بچوں کو پاس کے ایک مندر کے شیڈ میں منتقل کردیا گیا ہے، وہیں ان کی برائے نام پڑھائی ہوتی ہے۔

گرمی، سردی اور برسات کے موسم میں یہ بچے کھلے آسمان کے نیچے پڑھنے پر مجبور ہیں، برسات میں کب کوئی سانپ، بچھو کسی جھاڑی سے نکل کر آجائے کچھ کہا نہیں جا سکتا۔ انھیں ہمیشہ جان کا خطرہ بنا ہوتا ہے۔

اصول کے مطابق اگر 80 طلبا کی تعداد ہوتی ہے تو ایک سرکاری اسکول کھولا جا سکتا ہے، لیکن موجودہ صورت حال سے لگتا ہے کہ حکومت اور ضلع انتظامیہ محکمہ بہبود کے ہی اسکول کے بھروسے ہے، کسی بڑے حادثے کا انتظار کر رہا ہے۔

اسکول عمارت کی خستہ حالی کی شکایت متعدد مرتبہ انتظامیہ کے اعلیٰ افسران سے کی گئی، لیکن کسی نے اب تک کچھ نہیں کیا یہاں تک کہ مقامی لوگوں نے رکن اسمبلی، رکن پارلیمان، اور وزراء تک بات پہنچائی لیکن وہاں بھی نا امیدی ہاتھ لگی۔ کھلے آسمان میں یہ بچے آخر کب تک اپنے مستقبل کے لیے جد و جہد کرتے رہیں گے۔

ریاست اترپردیش کے ضلع سہارنپور کو ایک علمی شہر کہا جاتا ہے۔ معروف تعلیمی ادارہ دارالعلوم دیوبند سہارنپور کی پہچان ہے۔ جہاں سے ہر برس ہزاروں طالب علم فراغت پاتے ہیں۔
لیکن سہارنپور کے محمدپور گاؤں میں ایک ایسا اسکول بھی ہے جہاں بچوں کو پڑھنے کے لیے نہ چھت میسر ہے نہ اساتذہ۔

کھلے آسمان کے نیچے بچوں کا مستقبل

محمدپور میں محکمہ بہبود کے ذریعہ چلائے جارہے بھیم راؤ امبیڈکر میموریل اکیڈمی اسکول کی بنیاد 1950 میں رکھی گئی تھی، 70 برس قبل کسی فلاحی تنظیم نے اس اسکول کی عمارت بنوائی تھی، لیکن اب وہ بالکل خستہ ہو چکی ہے۔ اس کی دیواریں اور چھتیں کب گر جائیں کچھ کہا نہیں جا سکتا۔

محکمہ بہبود نے پڑھائی اور دیگر سہولیات کا ذمہ لیا تھا، اسکول میں فی الحال ایک استاد کی بحالی ہوئی ہے، وہیں کسان شیوچرن کاشتکاری کے ساتھ ساتھ بغیر کسی اجرت کے بچوں کو پڑھا رہے ہیں۔

بتایا جارہا ہے کہ گذشتہ 10 برسوں سے اسکول کی عمارت خستہ ہے۔ جس کے بعد بچوں کو پاس کے ایک مندر کے شیڈ میں منتقل کردیا گیا ہے، وہیں ان کی برائے نام پڑھائی ہوتی ہے۔

گرمی، سردی اور برسات کے موسم میں یہ بچے کھلے آسمان کے نیچے پڑھنے پر مجبور ہیں، برسات میں کب کوئی سانپ، بچھو کسی جھاڑی سے نکل کر آجائے کچھ کہا نہیں جا سکتا۔ انھیں ہمیشہ جان کا خطرہ بنا ہوتا ہے۔

اصول کے مطابق اگر 80 طلبا کی تعداد ہوتی ہے تو ایک سرکاری اسکول کھولا جا سکتا ہے، لیکن موجودہ صورت حال سے لگتا ہے کہ حکومت اور ضلع انتظامیہ محکمہ بہبود کے ہی اسکول کے بھروسے ہے، کسی بڑے حادثے کا انتظار کر رہا ہے۔

اسکول عمارت کی خستہ حالی کی شکایت متعدد مرتبہ انتظامیہ کے اعلیٰ افسران سے کی گئی، لیکن کسی نے اب تک کچھ نہیں کیا یہاں تک کہ مقامی لوگوں نے رکن اسمبلی، رکن پارلیمان، اور وزراء تک بات پہنچائی لیکن وہاں بھی نا امیدی ہاتھ لگی۔ کھلے آسمان میں یہ بچے آخر کب تک اپنے مستقبل کے لیے جد و جہد کرتے رہیں گے۔

Intro:यह स्टोरी प्राइमरी स्कूलों की खस्ताहाल लो लेकर चलाई जा रही मुहिम के लिए है।

सहारनपुर : एक ओर जहां केंद्र की मोदी सरकार साक्षरता मिशन अभियान चलाकर "पढ़ेगा इंडिया, बढ़ेगा इंडिया" की मुहिम छेड़े हुए है वहीं सहारनपुर के सैद मोहमदपुर ग़ांव में खुले आसमान के नीचे पढ़ रहे प्राइमरी स्कूल के बच्चे केंद्र और राज्य सरकार के दावो की पोल खोल रहे है। गर्मी सर्दी के मौसम में ही नही बरसात के समय मे भी ये मासूम बच्चे मंदिर प्रांगण में पढ़ाई करने को मजबूर है। समाज कल्याण विभाग की ओर से संचालित स्कूल भवन न सिर्फ पूरी तरह से जर्जर हो चुका है बल्कि छते और दीवार भी गिरने लगी है। आलम यह है कि स्कूल परिसर में घास फूंस और कबाड़ उग आया है। ऐसा नही की इस जर्जर स्कूल की हालत के बारे में समाज कल्याण विभाग और जिला प्रशासन को नही है। जानकारी होते हुए भी अनजान बने कुम्भकर्णी नींद सोया हुआ है। जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर जंगलों के बीच बसे ग़ांव मोहमदपुर में पहुंच कर छात्रों और ग्रामीणों से बात की तो चोकाने वाली बातें सामने आई है। इस स्कूल में 90 बच्चो को पढ़ाने के लिए महज एक ही अध्यापक की तैनाती की गई है। इसके अलावा ग़ांव का एक किसान युवक ने अपनी खेती बाड़ी के काम से फ्री होकर इन मासूम बच्चों को पढ़ा रहा है। खुले आसमान के नीचे पढ़ाई कर रहे बच्चो ने ईटीवी को बताया कि बरसात के दिनों में जंगल से निकल कर सांप, बिछु, आदि जीव मंदिर प्रांगण में आ जाते है जिनसे अक्सर इन छात्र छात्राओ में ही नही अभिभावकों को बच्चो की चिंता सताती रहती है। ग्रामीण कई बार अधिकारियों को पत्र लिखकर स्कूल भवन बनाने की मांग कर चुके है लेकिन हर बार उन्हें केवल कोरे आश्वासन के अलावा कुछ नही मिलता है।


Body:VO - प्राइवेट स्कूलो की मनमानी और महंगी फीस ने अभिभावकों की नींद उड़ाए है वही ग्रामीण आंचल में चल रहे समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित प्राइमरी स्कूल की हालत खस्ताहाल बनी हुई है। प्राथमिक विद्यालयों की जर्जर हालत को देखते हुए ईटीवी भारत ने शिक्षा के स्तर को उठाने के लिए एक मुहिम छेड़ दी है। ईटीवी की मुहिम को स्थानीय सांसद और विधायकों का समर्थन भी मिलना शुरू हो गया है। बसपा से स्थानीय सांसद फजलुर्रहमान ने सिर्फ जर्जर स्कूल भवन की निंदा की है बल्कि स्कूल में भवन निर्माण और अन्य सुविधाएं देने का वादा भी किया है। वही कांग्रेस से बेहट विधानसभा क्षेत्र से विधायक नरेश सैनी ने भी ईटीवी की इस मुहिम का समर्थन करते हुए खस्ताहाल स्कूलो की आवाज को विधानसभा में उठाने के साथ अपनी निधि से संभव मदद करने का आश्वासन दिया है।

आपको बता दें कि सहारनपुर जिला मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर तहसील बेहट इलाके के घाड़ क्षेत्र में बसे ग़ांव सैद मोहमदपुर में कई दशक पहले एक सोसाइटी ने गरीब बच्चो की पढ़ाई के लिए स्कूल का निर्माण कराया था। समाज कल्याण विभाग ने स्कूल में पाठन और अन्य सुविधाओं की जिम्मेदारी उठाई थी। वैसे तो जिले भर में समाज कल्याण विभाग द्वारा 7 स्कूल है लेकिन मोहमदपुर के इस स्कूल की हालत खस्ताहाल हो चुकी है। जैसे जैसे समय बीतता गया समिति के सभी सदस्यो का निधन हो गया। जिससे समिति पूरी तरह से समाप्त हो गई। जिसके बाद पिछले करीब 10 सालों से स्कूल भवन जर्जर हालत में पड़ा हुआ है। भवन की छत , दीवारें, फर्स सब टूट कर खंडहर हो चुका है। स्कूल परिसर में साफ सफाई की बजाय घास फूंस उग आया है। हालात ये हो गए है कि कबाड़ के चलते बच्चे तो क्या बड़े बुजुर्ग भी स्कूल भवन में जाने से डरने लगे है। जिसके चलते ग्रामीणों ने सभी स्कूली बच्चों को ग़ांव के मंदिर में शिफ्ट कर दिया है। जहां ये मासूम छात्र छात्राएं तपाती धूप हो या ठिठुरती सर्दी, या फिर बरसात का मौसम सभी खुले आसमान के निचे पढ़ाई करने को मजबूर हैं।

ईटीवी भारत की टीम ने ग़ांव मोहमदपुर पहुंच कर स्कूल में पढ़ रहे मासूम छात्र छात्राओं की इन तस्वीरो को अपने कैमरे में कैद किया तो बच्चो का दर्द उभर जुबान पर आ गया। यहां ये स्कूली बच्चे खुले आसमान के नीचे मंदिर प्रांगण में पढ़ रहे है। ग़ांव के बाहर शिव मंदिर है जहां ये बच्चे एक बड़े पेड़ की टहनो के नीचे बैठकर पांचवी तक की पढ़ाई कर रहे है। हालांकि ग्रामीणों ने चंदे के पैसे इक्कट्ठे करके एक तीन सेट भी बनवाया हुआ है लेकिन बच्चो की संख्या ज्यादा होने के चलते टीन सेट छोटा पड़ रहा है। बच्चो ने इटीवी को बताया कि बरसात के दिनों में मंदिर के बराबर में खेतो से सांप , बिछु जैसे जहरीले जीव भी आ जाते है। जिनसे हमेशा उन्हें जान का खतरा भी सताता रहता है। बच्चो की माने तो उन्हें इस स्तर की किताबें तो मिल गई है लेकिन स्कूल ड्रेस, जूते, बस्ते अभी तक भी नही मिले है।

ग्रामीणों ने ईटीवी से बातचीत में बताया कि यह स्कूल पांचवी कक्षा तक चल रहा है। जो समाज कल्याण विभाग के अन्तर्गत आता है। कई सालों से स्कूल भवन पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हुआ पड़ा है। ग़ांव के सेकड़ो बच्चे मंदिर प्रांगण में पढ़ाई कर देश का भविष्य बनने का सपना संजोह रहे है। चिलचिलाती धूप, गर्मी, बारिश ही नही कड़ाके की ठंड की भी मार झेल रहे है। चोकाने वाली बात तो ये भी है कि बड़ी संख्या में बच्चो को पढ़ाने के लिए महज एक ही अध्यापक की तैनाती की गई है। स्कूल में केवल एक ही अध्यापक है जो बहुत कम स्कूल आते है। जबकि ग़ांव के एक किसान शिवकुमार खेतीबाड़ी का काम निपटा कर इन बच्चों का भविष्य सवारने में लगे हुए है। खोखले सिस्टम और झूठे दावो के बीच स्कूल में पढ़ने वाले मासूम बच्चो के भविष्य ही नही स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। शिवचरण का कहना है वे खेतीबाड़ी करते है और स्कूल में अकेले अध्यापक है खाली समय में वे स्कूल आकर इन बच्चो को पढ़ाने में अध्यापक की मदद करते है। यह सब वे स्वेच्छा से निशुल्क कर रहे है।

जानकारों के मुताबिक ग़ांव मोहमदपुर में समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित प्राथमिक पाठशाला एवं भीम राव अम्बेडकर मेमोरियल एकेडमी के नाम से स्कूल की स्थापना 1950 में की गई थी। 70 साल पहले ही एक समिति द्वारा स्कूल की बिल्डिंग का निर्माण कराया गया था। स्कूल भवन काफी पुराना होने कारण टूटने लगा। जिसकी शिकायत अधिकारियों को की गई लेकिन किसी ने कोई सुनवाई नही की। ग्रामीणों ने अधिकारियों के साथ मंत्रीयो, सांसद-विधायको से स्कूल की मरम्मत कराने की मांग की लेकिन वहां भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी। धीरे धीरे स्कूल भवन खंडहर में तब्दील हो गया। ईटीवी भारत ने मुहिम के जरिये जगलो के बीच बसे ग़ांव में पहुंच कर बेबश बच्चे और मजबूर अभिभावकों के इस दर्द को साझा किया लेकिन आज तक किसी जनप्रतिनिधि ने इन ग्रामीणों और मासूम छात्रों की सुध लेने नही पहुंचा।

जर्जर स्कूल में पढ़ाई कर चुकी एक युवती ने बताया कि यदि उनके ग़ांव में अच्छा स्कूल बन जाये तो उनके ग़ांव के बच्चे भी डॉक्टर इंजीनियर शिक्षक बन सकते है। वही अभिभावकों ने बताया कि खुले आसमान के नीचे मंदिर प्रांगण में बच्चो को पढ़ाना उनकी मजबूरी है। क्योंकि ग़ांव में दूसरा कोई स्कूल नही है जबकि संख्या के आधार पर ग़ांव में बेशिक शिक्षा विभाग की ओर से एक स्कूल आ सकता है। नियानुसार 80 बच्चो की संख्या हो तो ग़ांव में सरकारी स्कूल खोला जा सकता है लेकिन सहारनपुर का प्रशासन केवल समाज कल्याण द्वारा संचालित बिना भवन के चल रहे स्कूल के भरोसे किसी बड़े हादसे कां इन्तजार कर रहा है। क्योंकि खुले में पढ़ रहे बच्चो को सांप और जहरीले जीवो का खतरा सता रहा है।


बाईट - अरविंद ( छात्र )
बाईट - रजत ( छात्र )
बाईट - शिवचरण ( निशुल्क पढ़ाने वाले ग्रामीण )
बाईट - विकेश ( ग्रामीण युवती )
बाईट - रामधन ( अभिभावक )
बाईट - श्यामो देवी ( अभिभावक )



Conclusion:FVO - ईटीवी भारत की टीम ने ग़ांव मोहमदपुर के इन छात्रों और अभिभावको के बीच पहुंची तो उन्हें एक उम्मीद नजर आई और ईटीवी पर बेबाक़ी से स्कूल भवन बनाने की मांग की। इस दौरान स्कूल में तैनात अध्यापक नदारद रहे है जब इस बाबत पूछा तो पता चला कि उनके घर मे कोई जनहानि हो गई जिसकी वजह से वे नही आ सके। समाज कल्याण अधिकारी ने कैमरे पर नही बोलने की की शर्त पर बताया कि समाज कल्याण द्वारा चलाये जा रहे स्कूलो के भवन की जिम्मेदारी वहां की समिति की होती है जबकि अध्यापन कार्य एवं पाठन समाग्री समाज कल्याण विभाग उपलब्ध कराता है। लेकिन पिछले एक दशक से ग़ांव मोहमदपुर स्कूल की समिति के लोगो का निधन होने से समिति समाप्त हो चुकी है। जिसके कारण स्कूल भवन की ओर किसी ने ध्यान नही दिया। क्योंकि स्कूल की जगह ओर भवन का रखरखाव समिति को करना होता है। फिलहाल स्कूल का यह स्कूल भवन पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका है।

वही जब ईटीवी भारत ने क्षेत्रीय विधायक नरेश सैनी से इस बाबत बात की तो उन्होंने न सिर्फ ईटीवी की इस मुहिम की सराहना की बल्कि ऐसे स्कूलो के मुद्दों को विधानसभा में उठाने का आश्वासन दिया है। बेहट क्षेत्र से कांग्रेस विधायक नरेश सैनी ने कहा कि हमारी विधानसभा क्षेत्र में कई स्कूल ऐसे है जो समाज कल्याण विभाग द्वारा चलाये जा रहे है। उनकी दयनीय स्तिथि ग्रामीण बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने का काम कर रही है। ऐसे स्कूलो के मामलों को वे विधानसभा सेशन में भी उठाएंगे। साथ ही विधायक निधि से भी भवन कार्य कराने का वादा किया है। उधर बसपा से सांसद हाजी फजलुर्रहमान ने ईटीवी से बातचीत मे सांसद निधि से खंडहर बने स्कूल के भवन निर्माण कराने का आश्वासन दिया है। उन्होंने बताया ईटीवी भारत की मुहिम का समर्थन करते हुए कहा कि सांसद स्तर से जो भी उनसे बनेगा उसके लिए वो करेंगे। स्कूल भवन बनवाने के लिए अधिकारियों से बात की जाएगी। किसी भी सूरत में खुले आसमान के नीचे पढ़ रहे बच्चो के सिर पर छत बनवाने का कार्य प्राथमिकता से किया जाएगा।

बाईट - नरेश सैनी ( स्थानीय विधायक )
बाईट - हाजी फजलुर्रहमान ( स्थानीय सांसद बसपा )


रोशन लाल सैनी
सहारनपुर
9121293042
9759945153
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