पुरोला: कौन कहता है कि आसमां में सुराग नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो. इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया है मोरी के हरकीदून घाटी के लोगों ने. जो बिना किसी सरकारी मदद के विषम परिस्थितियों में, सुदूर कन्दराओं की खूबसूरती को देश-दुनिया के सामने ला रहे हैं. यही नहीं इन लोगों नें अपने लिए रोजगार के नए द्वार भी खोल दिये हैं. पेश है एक स्पेशल रिपोर्ट.
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आज हालात ये हैं कि, दौर बदलने के साथ ही इन लोगों ने अपना हुनर भी बदल दिया है. सदियों से चला आ रहा भेड़ पालन और कृषि का पुस्तैनी व्यवसाय छोड़ इन लोगों नें इको टूरिजम को अपने जीने का जरिया बना लिया है. जी हां हम बात कर रहे हैं उत्तरकाशी जनपद के 22 गांवों के लोगों की, जिन्होंने आज अपने जीने का जरिया ही बदल दिया है. यहां के लोग देश-दुनिया के घुमंतु, साहसिक पर्यटकों और प्रकृति प्रेमियों को अपने घरों में ठहराकर अच्छी-खासी आमदनी अर्जित कर रहे हैं. साथ ही खुद के द्वारा विकसित ट्रैकिंग रुटों पर लोगों को ट्रेकिंग करवाने का काम भी कर रहे हैं.
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स्थानीय लोगों का मानना है कि दस साल पहले साल भर में सिर्फ, गर्मियों के मौसम में ही टूरिस्ट आते थे, जिनकी संख्या महज 500 से हजार के बीच होती थी, लेकिन आज देश-विदेश के पर्यटक बारह महीने यहां घूमने और ट्रेकिंग करने पहुंचते हैं. इस घाटी में केदारकांठा, भड़ासु पास, मलदोडू ताल, सरुताल, पूसटारा बुग्याल, देवकेयरा, भराडसर, बाली पास, झमधार गेलेसियर, ब्लैक पीक, सहित दर्जनों ट्रेक रुटों को स्थानीय भेड़पालको नें व्यवसाय के लिए खड़ा कर दिया है और अपने पारम्परिक घरों को बिना सरकारी मदद के होम स्टे बना डाला.
लोगों का कहना है कि अगर सरकार दूर संचार और एटीएम, सड़क की सुविधा को बेहतर करे तो पर्यटकों की संख्या में इजाफा होगा. आज इन ट्रैक रुटों पर प्रति वर्ष 30 से 40 हजार साहसिक देसी- विदेशी पर्यटकों की संख्या होती है. इतना ही नहीं इन गांवों की बेटियों ने महिला पर्यटकों की सुविधा के लिए महिला ट्रैकरों की भी फौज तैयार कर दी है, जिससे वे अपने आप को सुरक्षित महसूस कर पर्यटन का आनंद ले सके.