ETV Bharat / state

कुछ इस तरह इको टूरिस्म ने बदली 22 गांवों की तस्वीर, देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट - uttarakashi news

हम बात कर रहे हैं उत्तरकाशी जनपद के मोरी विकासखंड के गोविंद वन्यजीव पशु विहार क्षेत्र के उन 22 गांवों की जहां लोगों ने आज अपने जीने का जरिया ही बदल डाला. इन लोगों ने सदियों से चले आ रहे पुस्तैनी व्यवसाय भेड़ पालन और कृषि को भी पीछे छोड़ दिया और देश-दुनिया के घुमंतु, साहसिक पर्यटकों और प्रकृति प्रेमियों को अपने घरों में ठहराकर खुद के द्वारा विकसित ट्रैकिंग रुटों पर लोगों को ट्रेकिंग करवा रहे हैं. जिससे वे अपने दम पर अच्छी-खासी आमदनी अर्जित कर रहे हैं.

इको टूरिज्म से रोजगार.
author img

By

Published : Nov 13, 2019, 3:02 PM IST

Updated : Nov 13, 2019, 3:47 PM IST

पुरोला: कौन कहता है कि आसमां में सुराग नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो. इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया है मोरी के हरकीदून घाटी के लोगों ने. जो बिना किसी सरकारी मदद के विषम परिस्थितियों में, सुदूर कन्दराओं की खूबसूरती को देश-दुनिया के सामने ला रहे हैं. यही नहीं इन लोगों नें अपने लिए रोजगार के नए द्वार भी खोल दिये हैं. पेश है एक स्पेशल रिपोर्ट.

पढें- 19 साल बाद भी नहीं सुधरे पौड़ी के हालात, मूलभूत सुविधाओं को भी तरस रहे लोग

आज हालात ये हैं कि, दौर बदलने के साथ ही इन लोगों ने अपना हुनर भी बदल दिया है. सदियों से चला आ रहा भेड़ पालन और कृषि का पुस्तैनी व्यवसाय छोड़ इन लोगों नें इको टूरिजम को अपने जीने का जरिया बना लिया है. जी हां हम बात कर रहे हैं उत्तरकाशी जनपद के 22 गांवों के लोगों की, जिन्होंने आज अपने जीने का जरिया ही बदल दिया है. यहां के लोग देश-दुनिया के घुमंतु, साहसिक पर्यटकों और प्रकृति प्रेमियों को अपने घरों में ठहराकर अच्छी-खासी आमदनी अर्जित कर रहे हैं. साथ ही खुद के द्वारा विकसित ट्रैकिंग रुटों पर लोगों को ट्रेकिंग करवाने का काम भी कर रहे हैं.

पढ़ें- छात्राओं के पैर धोने वाले शिक्षक का नाम इंडिया बुक ऑफ़ रिकार्ड में हुआ दर्ज

स्थानीय लोगों का मानना है कि दस साल पहले साल भर में सिर्फ, गर्मियों के मौसम में ही टूरिस्ट आते थे, जिनकी संख्या महज 500 से हजार के बीच होती थी, लेकिन आज देश-विदेश के पर्यटक बारह महीने यहां घूमने और ट्रेकिंग करने पहुंचते हैं. इस घाटी में केदारकांठा, भड़ासु पास, मलदोडू ताल, सरुताल, पूसटारा बुग्याल, देवकेयरा, भराडसर, बाली पास, झमधार गेलेसियर, ब्लैक पीक, सहित दर्जनों ट्रेक रुटों को स्थानीय भेड़पालको नें व्यवसाय के लिए खड़ा कर दिया है और अपने पारम्परिक घरों को बिना सरकारी मदद के होम स्टे बना डाला.

इको टूरिज्म से रोजगार.

लोगों का कहना है कि अगर सरकार दूर संचार और एटीएम, सड़क की सुविधा को बेहतर करे तो पर्यटकों की संख्या में इजाफा होगा. आज इन ट्रैक रुटों पर प्रति वर्ष 30 से 40 हजार साहसिक देसी- विदेशी पर्यटकों की संख्या होती है. इतना ही नहीं इन गांवों की बेटियों ने महिला पर्यटकों की सुविधा के लिए महिला ट्रैकरों की भी फौज तैयार कर दी है, जिससे वे अपने आप को सुरक्षित महसूस कर पर्यटन का आनंद ले सके.

पुरोला: कौन कहता है कि आसमां में सुराग नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो. इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया है मोरी के हरकीदून घाटी के लोगों ने. जो बिना किसी सरकारी मदद के विषम परिस्थितियों में, सुदूर कन्दराओं की खूबसूरती को देश-दुनिया के सामने ला रहे हैं. यही नहीं इन लोगों नें अपने लिए रोजगार के नए द्वार भी खोल दिये हैं. पेश है एक स्पेशल रिपोर्ट.

पढें- 19 साल बाद भी नहीं सुधरे पौड़ी के हालात, मूलभूत सुविधाओं को भी तरस रहे लोग

आज हालात ये हैं कि, दौर बदलने के साथ ही इन लोगों ने अपना हुनर भी बदल दिया है. सदियों से चला आ रहा भेड़ पालन और कृषि का पुस्तैनी व्यवसाय छोड़ इन लोगों नें इको टूरिजम को अपने जीने का जरिया बना लिया है. जी हां हम बात कर रहे हैं उत्तरकाशी जनपद के 22 गांवों के लोगों की, जिन्होंने आज अपने जीने का जरिया ही बदल दिया है. यहां के लोग देश-दुनिया के घुमंतु, साहसिक पर्यटकों और प्रकृति प्रेमियों को अपने घरों में ठहराकर अच्छी-खासी आमदनी अर्जित कर रहे हैं. साथ ही खुद के द्वारा विकसित ट्रैकिंग रुटों पर लोगों को ट्रेकिंग करवाने का काम भी कर रहे हैं.

पढ़ें- छात्राओं के पैर धोने वाले शिक्षक का नाम इंडिया बुक ऑफ़ रिकार्ड में हुआ दर्ज

स्थानीय लोगों का मानना है कि दस साल पहले साल भर में सिर्फ, गर्मियों के मौसम में ही टूरिस्ट आते थे, जिनकी संख्या महज 500 से हजार के बीच होती थी, लेकिन आज देश-विदेश के पर्यटक बारह महीने यहां घूमने और ट्रेकिंग करने पहुंचते हैं. इस घाटी में केदारकांठा, भड़ासु पास, मलदोडू ताल, सरुताल, पूसटारा बुग्याल, देवकेयरा, भराडसर, बाली पास, झमधार गेलेसियर, ब्लैक पीक, सहित दर्जनों ट्रेक रुटों को स्थानीय भेड़पालको नें व्यवसाय के लिए खड़ा कर दिया है और अपने पारम्परिक घरों को बिना सरकारी मदद के होम स्टे बना डाला.

इको टूरिज्म से रोजगार.

लोगों का कहना है कि अगर सरकार दूर संचार और एटीएम, सड़क की सुविधा को बेहतर करे तो पर्यटकों की संख्या में इजाफा होगा. आज इन ट्रैक रुटों पर प्रति वर्ष 30 से 40 हजार साहसिक देसी- विदेशी पर्यटकों की संख्या होती है. इतना ही नहीं इन गांवों की बेटियों ने महिला पर्यटकों की सुविधा के लिए महिला ट्रैकरों की भी फौज तैयार कर दी है, जिससे वे अपने आप को सुरक्षित महसूस कर पर्यटन का आनंद ले सके.

Intro:स्पेशल रिपोर्ट -
स्थान-पुरोला
एंकर-कौन कहता है कि आसमा पर सुराग नहीं होता, एक पत्थर तो तवियत से उछालो यारों।कुछ ऐसा कर दिखाया मोरी के हरकीदून घाटी के लोगो ने।बिना किसी सरकारी मदद के विषम परिस्थितियों में, सुदूर कन्दराओं की खूबसूरती को देश दुनिया के सामने लाकर इन लोगों नें अपने लिए रोजगार के नए द्वार खोल दिये आज हालात ये हैं कि,दौर बदलने के साथ ही इन लोगों नें अपना हुनर भी बदल दिया, सदियों से चला आ रहा भेड़ पालन और कृषि का पुस्तैनी व्यवसाय छोड़ इन लोगों नें इको टूरिजम को अपना जीने का जरिया बना डाला पेश है एक स्पेशल रिपोर्ट ।




Body:वीओ१-उत्तरकाशी जनपद के मोरी विकासखंड में गोविंद वन्य जीव पशु विहार छेत्र के 22 गांवों के लोगों ने आज अपना जीने का जरिया ही बदल डाला,सदियों से चले आ रहे पुस्तैनी व्यवसाय भेड़ पालन और कृषि को भी पीछे छोड़ देश दुनिया के घुमंतु,साहसिक पर्यटकों और प्रकृति प्रेमियों को अपने घरों में ठहराकर खुद के द्वारा विकसित ट्रैकिंग रुटों पर लोगों को ट्रेकिंग करवा रहे हैं। जिससे वे अपने दम पर अच्छे खाशी आमदनी अर्जित कर रहे हैं स्थानीय लोगों का मानना है कि दस साल पहले साल भर में सिर्फ, गर्मियों के मौसम में ही टूरिस्ट आते थे जिनकी संख्या महज 500 से हजार के बीच होती थी , लेकिन आज देश विदेश के पर्यटक बारह महीने यहाँ घूमने व ट्रेकिंग करने पहुंचते हैं । इस घाटी में केदारकांठा,भड़ासु पास,मलदोडू ताल,सरुताल,पूसटारा बुग्याल,देवकेयरा, भराडसर,बाली पास, झमधार गेलेसियर,ब्लैक पीक, सहित दर्जनों ट्रेक रुटों को स्थानिय भेड़पालको नें आज इसे व्यवसाय के आकार में लाकर खड़ा कर दिया है।और अपने पारम्परिक घरों को बिना सरकारी मदद के होम स्टे बना डाला लोगों का कहना है कि यदि सरकार दूर संचार व एटीएम,सड़क की सुविधा को बेहतर कर दे तो पर्यटकों की संख्या में इजाफा होगा। आज इन ट्रैक रुटों पर प्रति वर्ष 30 से 40 हज़ार साहसिक देसी- विदेशी पर्यटकों की संख्या होती है।इतना ही नहीं इन गांवों की बेटियों ने महिला पर्यटकों की सुविधा के लिए महिला ट्रैकरों की भी फ़ौज तैयार कर दी है जिससे वे अपने आप को सुरक्षित महसूस कर पर्यटन का आनंद ले सके
बाईट-भगत रावत
बाईट-रीना रावत
बाईट-
बाईट


Conclusion:वीओ-रोजगार की तलाश में पलायन होते गावों के लिए नाजिर हैं इस घाटी के लोगों का जज्बा, जिन्होंने सदियों से चले आ रहे अपने पुस्तैनी भेड़पालको के गलियारों को देश विदेश के सामनें इको टूरिस्म के रूप में विकसित कर रोजगार के द्वार खोल घर को ही रोजगार के रूप में विकसित कर दिया ।
Last Updated : Nov 13, 2019, 3:47 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.