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भारत-तिब्बत व्यापार की गवाह इन हेरिटेज सीढ़ियों को संरक्षण की दरकार

उत्तरकाशी जिले में जाड़ गंगा घाटी में स्थित सीढ़ीनुमा यह मार्ग दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में शुमार है. जो आज संरक्षण के अभाव में अस्तित्व खोता जा रहा है.

gartang gali of Uttarkashi
उत्तरकाशी का गड़तांग गली
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Published : Oct 2, 2020, 6:36 PM IST

Updated : Oct 3, 2020, 3:22 PM IST

उत्तरकाशी: समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर भारत-चीन सीमा पर स्थित गड़तांग गली की हेरिटेज सीढ़ियां अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं. 17वीं शताब्दी में पेशावर के पठानों ने समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी में हिमालय की खड़ी पहाड़ी को काटकर दुनिया का सबसे खतरनाक रास्ता तैयार किया था. करीब 150 मीटर लंबा लकड़ी से तैयार यह सीढ़ीनुमा गड़तांग गली भारत-तिब्बत व्यापार का साक्षी रहा है. उत्तरकाशी जिले में जाड़ गंगा घाटी में स्थित सीढ़ीनुमा यह मार्ग दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में शुमार है.

1962 से पूर्व भारत-तिब्बत के व्यापारी याक, घोड़ा-खच्चर एवं भेड़-बकरियों पर सामान लादकर इसी रास्ते से आते-जाते थे. 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान गड़तांग गली सेना को अंतरराष्ट्रीय सीमा तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी. लेकिन, पिछले 45 वर्षों से गड़तांग गली का उपयोग और रखरखाव न होने के कारण इसका अस्तित्व मिटता जा रहा है.

gartang gali of Uttarkashi
गड़तांग गली की क्षतिग्रस्त सीढ़ियां.

उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी चीन सीमा से लगी है. सीमा पर भारत की सुमला, मंडी, नीला पानी, त्रिपानी, पीडीए और जादूंग अंतिम चौकियां हैं. 17वीं शताब्दी में जाड़ समुदाय के एक सेठ ने व्यापारियों की मांग पर पेशावर के पठानों की मदद से गड़तांग गली से एक सुगम मार्ग बनवाया था.

सामरिक दृष्टि से संवेदनशील होने के कारण इस क्षेत्र को इनर लाइन क्षेत्र घोषित किया गया है. साल 2015 में जिला होटल एसोसिएशन और अन्य संस्थाओं के प्रयास से सरकार ने इसे पर्यटकों के लिए खोला. उसके बाद इस पर बजट खर्च होते रहे. लेकिन, स्थिति जस की तस बनी हुई है. इस रास्ते की ऐतिहासिक सीढ़ियां कब टूटकर नीचे गिर जाए, किसी को पता नहीं. इन सबके बीच जिला प्रशासन और इन ऐतिहासिक सीढ़ियों के मरम्मत के लिए बजट दिए जाने की बात भी कर रहा है.

भारत-तिब्बत व्यापार की गवाह गड़तांग गली.

साल 1962 के भारत-चीन युद्ध से पहले व्यापारी इस रास्ते से ऊन, चमड़े से बने वस्त्र व नमक लेकर बाड़ाहाट पहुंचते थे. युद्ध के बाद इस मार्ग पर आवाजाही बंद हो गई, लेकिन सेना का आना-जाना जारी रहा. करीब दस वर्ष बाद 1975 में सेना ने भी इस रास्ते का इस्तेमाल बंद कर दिया है.

ये भी पढ़ें: पेशावर के पठानों के लिए बनाई गई गड़तांग गली की सीढ़ियां बदहाल, ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षण की दरकार

नेलांग घाटी जाने के लिए इजाजत

1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद बने हालात के मद्देनजर भारत सरकार ने उत्तरकाशी के इनर लाइन क्षेत्र में पर्यटकों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया था. तभी से नेलांग घाटी एवं जाडुंग गांव को खाली करवा कर वहां अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया था.

यहां के गांवों में रहने वाले लोगों को एक निश्चित प्रक्रिया पूरी करने के बाद साल में एक ही बार अपने देवी-देवताओं को पूजने की इजाजत दी जाती रही है. इसके बाद भारत के आम लोगों को भी नेलांग घाटी तक जाने की इजाजत गृह मंत्रालय भारत सरकार ने 2015 में दे दी थी, हालांकि विदेशियों पर प्रतिबंध बरकरार है.

उत्तरकाशी: समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर भारत-चीन सीमा पर स्थित गड़तांग गली की हेरिटेज सीढ़ियां अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं. 17वीं शताब्दी में पेशावर के पठानों ने समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी में हिमालय की खड़ी पहाड़ी को काटकर दुनिया का सबसे खतरनाक रास्ता तैयार किया था. करीब 150 मीटर लंबा लकड़ी से तैयार यह सीढ़ीनुमा गड़तांग गली भारत-तिब्बत व्यापार का साक्षी रहा है. उत्तरकाशी जिले में जाड़ गंगा घाटी में स्थित सीढ़ीनुमा यह मार्ग दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में शुमार है.

1962 से पूर्व भारत-तिब्बत के व्यापारी याक, घोड़ा-खच्चर एवं भेड़-बकरियों पर सामान लादकर इसी रास्ते से आते-जाते थे. 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान गड़तांग गली सेना को अंतरराष्ट्रीय सीमा तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी. लेकिन, पिछले 45 वर्षों से गड़तांग गली का उपयोग और रखरखाव न होने के कारण इसका अस्तित्व मिटता जा रहा है.

gartang gali of Uttarkashi
गड़तांग गली की क्षतिग्रस्त सीढ़ियां.

उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी चीन सीमा से लगी है. सीमा पर भारत की सुमला, मंडी, नीला पानी, त्रिपानी, पीडीए और जादूंग अंतिम चौकियां हैं. 17वीं शताब्दी में जाड़ समुदाय के एक सेठ ने व्यापारियों की मांग पर पेशावर के पठानों की मदद से गड़तांग गली से एक सुगम मार्ग बनवाया था.

सामरिक दृष्टि से संवेदनशील होने के कारण इस क्षेत्र को इनर लाइन क्षेत्र घोषित किया गया है. साल 2015 में जिला होटल एसोसिएशन और अन्य संस्थाओं के प्रयास से सरकार ने इसे पर्यटकों के लिए खोला. उसके बाद इस पर बजट खर्च होते रहे. लेकिन, स्थिति जस की तस बनी हुई है. इस रास्ते की ऐतिहासिक सीढ़ियां कब टूटकर नीचे गिर जाए, किसी को पता नहीं. इन सबके बीच जिला प्रशासन और इन ऐतिहासिक सीढ़ियों के मरम्मत के लिए बजट दिए जाने की बात भी कर रहा है.

भारत-तिब्बत व्यापार की गवाह गड़तांग गली.

साल 1962 के भारत-चीन युद्ध से पहले व्यापारी इस रास्ते से ऊन, चमड़े से बने वस्त्र व नमक लेकर बाड़ाहाट पहुंचते थे. युद्ध के बाद इस मार्ग पर आवाजाही बंद हो गई, लेकिन सेना का आना-जाना जारी रहा. करीब दस वर्ष बाद 1975 में सेना ने भी इस रास्ते का इस्तेमाल बंद कर दिया है.

ये भी पढ़ें: पेशावर के पठानों के लिए बनाई गई गड़तांग गली की सीढ़ियां बदहाल, ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षण की दरकार

नेलांग घाटी जाने के लिए इजाजत

1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद बने हालात के मद्देनजर भारत सरकार ने उत्तरकाशी के इनर लाइन क्षेत्र में पर्यटकों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया था. तभी से नेलांग घाटी एवं जाडुंग गांव को खाली करवा कर वहां अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया था.

यहां के गांवों में रहने वाले लोगों को एक निश्चित प्रक्रिया पूरी करने के बाद साल में एक ही बार अपने देवी-देवताओं को पूजने की इजाजत दी जाती रही है. इसके बाद भारत के आम लोगों को भी नेलांग घाटी तक जाने की इजाजत गृह मंत्रालय भारत सरकार ने 2015 में दे दी थी, हालांकि विदेशियों पर प्रतिबंध बरकरार है.

Last Updated : Oct 3, 2020, 3:22 PM IST
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