उत्तरकाशी: सिलक्यारा सुरंग हादसे में जीपीआर (ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार) सर्वे सही होता, तो सुरंग के अंदर फंसे 41 श्रमिक 11 वें दिन ही बाहर आ जाते. ऑगर मशीन के आगे बार-बार सरियां और लोहे की बाधाएं आने पर 11वें दिन बीते 22 नवंबर को जीपीआर सर्वे कराया गया. इस सर्वे में बताया गया कि 5 मीटर तक मलबे में लोहे का कोई अवरोध नहीं है. जिस पर ऑगर मशीन से ड्रिलिंग शुरु की गई और एक मीटर के बाद ही ऑगर (बरमा) के आगे सरियां और लोहे के पाइप आ गए. जिनमें उलझकर ऑगर पाइप में ही फंस गया, जिसे बाहर काटकर बाहर निकालने में तीन दिन का समय लगा.
सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों के रेस्क्यू ऑपरेशन को 17 वें दिन सफलता मिली थी, लेकिन जीपीआर सर्वे सही ढंग से किया गया होता तो यह 11वें दिन ही सफल हो जाता. दरअसल, जब दिल्ली से मंगवाई गई अमेरिकी ऑगर मशीन के सामने बार-बार मलबे में दबे लोहे के अवरोध आए, तो मलबे का जीपीआर सर्वे कराया गया. ऑगर मशीन को ऑपरेट कर रही ट्रंचलेस कंपनी के ऑपरेटरों ने 51 मीटर से आगे ड्रिलिंग के लिए ऑगर को मलबे में डाल दिया, लेकिन यह एक मीटर बाद ही सरियां और लोहे के पाइप मशीन में उलझकर फंस गया. जिसे बाहर निकालने का प्रयास किया गया, तो वह टूट गया. जिससे इसे काटकर बाहर निकालने के लिए हैदराबाद से लेजर कटर और चंडीगढ़ से प्लाज्मा कटर मंगवाना पड़ा. जिसमें तीन दिन का समय लगा. बाद में दिल्ली से पहुंचे रैट माइनर्स दल ने मैन्युअल ड्रिलिंग कर ऑपरेशन को सफल बनाया.
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अमेरिकी ऑगर मशीन के ऑपरेटर शंभू मिश्रा ने बताया कि जीपीआर सर्वे सही ढंग से किया गया होता तो यह रेस्क्यू ऑपरेशन तीन दिन पहले ही खत्म हो जाता. गलत सर्वे से ऑगर मशीन को भी नुकसान पहुंचा. उन्होंने कहा कि एक साल पहले उत्तरकाशी में द्रौपदी का डंडा-द्वितीय चोटी में हिमस्खलन हुआ था. जिसकी चपेट में आने से 27 पर्वतारोहियों की मौत हो गई थी. वहीं दो लापता हो गए थे. इस दौरान भी बैंगलुरु से जीपीआर मंगवाकर सर्वे किया गया, लेकिन यह भी फेल रहा था.
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