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सिलक्यारा टनल हादसे के ऑगर मशीन ऑपरेटर ने खोले राज, कहा-जीपीआर सर्वे सही होता तो जल्द बाहर आ जाते श्रमिक

Uttarkashi Silkyara Tunnel सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को 11 वें दिन ही बाहर निकाल लिया जाता, अगर जीपीआर सर्वे सही कराया जाता. ये बात अमेरिकी ऑगर मशीन के ऑपरेटर शंभू मिश्रा ने कही है. पढ़ें पूरी खबर..

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Dec 1, 2023, 9:34 PM IST

उत्तरकाशी: सिलक्यारा सुरंग हादसे में जीपीआर (ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार) सर्वे सही होता, तो सुरंग के अंदर फंसे 41 श्रमिक 11 वें दिन ही बाहर आ जाते. ऑगर मशीन के आगे बार-बार सरियां और लोहे की बाधाएं आने पर 11वें दिन बीते 22 नवंबर को जीपीआर सर्वे कराया गया. इस सर्वे में बताया गया कि 5 मीटर तक मलबे में लोहे का कोई अवरोध नहीं है. जिस पर ऑगर मशीन से ड्रिलिंग शुरु की गई और एक मीटर के बाद ही ऑगर (बरमा) के आगे सरियां और लोहे के पाइप आ गए. जिनमें उलझकर ऑगर पाइप में ही फंस गया, जिसे बाहर काटकर बाहर निकालने में तीन दिन का समय लगा.

सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों के रेस्क्यू ऑपरेशन को 17 वें दिन सफलता मिली थी, लेकिन जीपीआर सर्वे सही ढंग से किया गया होता तो यह 11वें दिन ही सफल हो जाता. दरअसल, जब दिल्ली से मंगवाई गई अमेरिकी ऑगर मशीन के सामने बार-बार मलबे में दबे लोहे के अवरोध आए, तो मलबे का जीपीआर सर्वे कराया गया. ऑगर मशीन को ऑपरेट कर रही ट्रंचलेस कंपनी के ऑपरेटरों ने 51 मीटर से आगे ड्रिलिंग के लिए ऑगर को मलबे में डाल दिया, लेकिन यह एक मीटर बाद ही सरियां और लोहे के पाइप मशीन में उलझकर फंस गया. जिसे बाहर निकालने का प्रयास किया गया, तो वह टूट गया. जिससे इसे काटकर बाहर निकालने के लिए हैदराबाद से लेजर कटर और चंडीगढ़ से प्लाज्मा कटर मंगवाना पड़ा. जिसमें तीन दिन का समय लगा. बाद में दिल्ली से पहुंचे रैट माइनर्स दल ने मैन्युअल ड्रिलिंग कर ऑपरेशन को सफल बनाया.
ये भी पढ़ें: इंटरनेशनल टनल एक्सपर्ट अर्नोल्ड डिक्स पहुंचे सिलक्यारा, सुरंग के टॉप से होगी ड्रिलिंग, रेस्क्यू जल्द पूरा होने की उम्मीद जताई

अमेरिकी ऑगर मशीन के ऑपरेटर शंभू मिश्रा ने बताया कि जीपीआर सर्वे सही ढंग से किया गया होता तो यह रेस्क्यू ऑपरेशन तीन दिन पहले ही खत्म हो जाता. गलत सर्वे से ऑगर मशीन को भी नुकसान पहुंचा. उन्होंने कहा कि एक साल पहले उत्तरकाशी में द्रौपदी का डंडा-द्वितीय चोटी में हिमस्खलन हुआ था. जिसकी चपेट में आने से 27 पर्वतारोहियों की मौत हो गई थी. वहीं दो लापता हो गए थे. इस दौरान भी बैंगलुरु से जीपीआर मंगवाकर सर्वे किया गया, लेकिन यह भी फेल रहा था.

ये भी पढ़ें: उत्तरकाशी टनल हादसा: शिफ्ट खत्म होने से पहले मलबे में दबी जिंदगियां, दिवाली की खुशियों पर लगा 'ग्रहण'

उत्तरकाशी: सिलक्यारा सुरंग हादसे में जीपीआर (ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार) सर्वे सही होता, तो सुरंग के अंदर फंसे 41 श्रमिक 11 वें दिन ही बाहर आ जाते. ऑगर मशीन के आगे बार-बार सरियां और लोहे की बाधाएं आने पर 11वें दिन बीते 22 नवंबर को जीपीआर सर्वे कराया गया. इस सर्वे में बताया गया कि 5 मीटर तक मलबे में लोहे का कोई अवरोध नहीं है. जिस पर ऑगर मशीन से ड्रिलिंग शुरु की गई और एक मीटर के बाद ही ऑगर (बरमा) के आगे सरियां और लोहे के पाइप आ गए. जिनमें उलझकर ऑगर पाइप में ही फंस गया, जिसे बाहर काटकर बाहर निकालने में तीन दिन का समय लगा.

सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों के रेस्क्यू ऑपरेशन को 17 वें दिन सफलता मिली थी, लेकिन जीपीआर सर्वे सही ढंग से किया गया होता तो यह 11वें दिन ही सफल हो जाता. दरअसल, जब दिल्ली से मंगवाई गई अमेरिकी ऑगर मशीन के सामने बार-बार मलबे में दबे लोहे के अवरोध आए, तो मलबे का जीपीआर सर्वे कराया गया. ऑगर मशीन को ऑपरेट कर रही ट्रंचलेस कंपनी के ऑपरेटरों ने 51 मीटर से आगे ड्रिलिंग के लिए ऑगर को मलबे में डाल दिया, लेकिन यह एक मीटर बाद ही सरियां और लोहे के पाइप मशीन में उलझकर फंस गया. जिसे बाहर निकालने का प्रयास किया गया, तो वह टूट गया. जिससे इसे काटकर बाहर निकालने के लिए हैदराबाद से लेजर कटर और चंडीगढ़ से प्लाज्मा कटर मंगवाना पड़ा. जिसमें तीन दिन का समय लगा. बाद में दिल्ली से पहुंचे रैट माइनर्स दल ने मैन्युअल ड्रिलिंग कर ऑपरेशन को सफल बनाया.
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अमेरिकी ऑगर मशीन के ऑपरेटर शंभू मिश्रा ने बताया कि जीपीआर सर्वे सही ढंग से किया गया होता तो यह रेस्क्यू ऑपरेशन तीन दिन पहले ही खत्म हो जाता. गलत सर्वे से ऑगर मशीन को भी नुकसान पहुंचा. उन्होंने कहा कि एक साल पहले उत्तरकाशी में द्रौपदी का डंडा-द्वितीय चोटी में हिमस्खलन हुआ था. जिसकी चपेट में आने से 27 पर्वतारोहियों की मौत हो गई थी. वहीं दो लापता हो गए थे. इस दौरान भी बैंगलुरु से जीपीआर मंगवाकर सर्वे किया गया, लेकिन यह भी फेल रहा था.

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