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सरकार को नहीं दिख रहे एथलीट बेटी के आंसू, राज्य को दिलाए दर्जनों पदक, अब सुध नहीं

काशीपुर की एथलीट अनीता कुमारी ने जूनियर और सीनियर स्तर पर राज्य को दर्जनों पदक दिलाए हैं, लेकिन इन दिनों सरकार और मंत्रियों के चक्कर काटने को मजबूर हैं. सरकार अनीता की सुध नहीं ले रही है. ऐसे में वह नौकरी के लिए दर-दर भटक रही है.

athlete anita kumari
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Published : Oct 26, 2019, 7:41 AM IST

Updated : Oct 26, 2019, 8:03 AM IST

काशीपुरः वो बेटी जो अपने फर्राटा दौड़ से राज्य को दर्जनों मेडल दिला चुकी है, लेकिन सरकार के झूठे वादों और दिलासों के बीच इस युवा एथलीट का दम उसे दगा दे गया है. मैदान पर कभी न हारने वाली ये लड़की सरकारी सिस्टम से हारती हुई नजर आ रही है. उसकी उपलब्धियों को देखते हुए पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, पुलिस कांस्टेबल के लिए अनुंशसा भी कर चुके हैं. बावजूद इसके उसे आज तक नौकरी नहीं मिली. यह दर्द भरी दास्तां है काशीपुर की प्रतिभाशाली एथलीट अनीता कुमारी की. जिसने जूनियर और सीनियर स्तर पर अब तक राज्य को दर्जनों पदक दिलाए हैं, लेकिन इन दिनों सरकार और मंत्रियों के चक्कर काटने को मजबूर है.

सरकार की उपेक्षा की शिकार हुई एथलीट अनीता कुमारी.

अनीता मानपुर रोड पर रहने वाले बलबीर सिंह जोकि पेशे से कुम्हार हैं, की बेटी है. अनीता अपने भाइयों और बहनों में सबसे छोटी है. अपने हौसलों और जज्बे से अनीता ने पहले जूनियर लेवल पर राज्यस्तर पर कई पदक जीते. फिर नेशनल स्तर कई पदकों पर कब्जा जमाया. सरकार की उपेक्षा के चलते अनीता का हौसला अब जबाव देने लगा है. उसका परिवार तंगहाली के दौर से गुजर रहा है.

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इतना ही नहीं साल 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने खेलों में उपलब्धियों को देखते हुए अनीता को उत्तराखंड उदय सम्मान से भी नवाजा. साथ ही कांस्टेबल पद के लिए अनुशंसा भी की, लेकिन आज तक उसे नौकरी नहीं मिली. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए अनीता ने बताया कि अब वो अपने पिता पर बोझ बनकर नहीं रह सकती है.

अनीता ने कहा कि नौकरी के लिए विधायक हरभजन सिंह चीमा, खेल मंत्री अरविंद पांडेय समेत कई मंत्रियों के चक्कर काट चुकी है. कई बार मुख्यमंत्री को पत्र भी लिख चुकी है, लेकिन आश्वाशन के अलावा कुछ नहीं मिला. वहीं, अनीता की मां संतोष देवी का कहना है कि उनकी बेटी को आज तक किसी भी तरह की सरकारी नौकरी के रूप में कोई मदद नहीं मिली.

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उनके मुताबिक अनीता ने 14 साल की उम्र से ही मैदान का रुख कर दिया था. उस दौरान अनीता ने न तो गर्मी, न ही ठंड और न ही बरसात देखी. अपनी कड़ी मेहनत से और लगन से राज्य के लिए कई पदक और मेडल जीते. उन्होंने कहा कि सरकार बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा देती है, लेकिन सरकार बेटियों के लिए कुछ नहीं कर रही है.

काशीपुरः वो बेटी जो अपने फर्राटा दौड़ से राज्य को दर्जनों मेडल दिला चुकी है, लेकिन सरकार के झूठे वादों और दिलासों के बीच इस युवा एथलीट का दम उसे दगा दे गया है. मैदान पर कभी न हारने वाली ये लड़की सरकारी सिस्टम से हारती हुई नजर आ रही है. उसकी उपलब्धियों को देखते हुए पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, पुलिस कांस्टेबल के लिए अनुंशसा भी कर चुके हैं. बावजूद इसके उसे आज तक नौकरी नहीं मिली. यह दर्द भरी दास्तां है काशीपुर की प्रतिभाशाली एथलीट अनीता कुमारी की. जिसने जूनियर और सीनियर स्तर पर अब तक राज्य को दर्जनों पदक दिलाए हैं, लेकिन इन दिनों सरकार और मंत्रियों के चक्कर काटने को मजबूर है.

सरकार की उपेक्षा की शिकार हुई एथलीट अनीता कुमारी.

अनीता मानपुर रोड पर रहने वाले बलबीर सिंह जोकि पेशे से कुम्हार हैं, की बेटी है. अनीता अपने भाइयों और बहनों में सबसे छोटी है. अपने हौसलों और जज्बे से अनीता ने पहले जूनियर लेवल पर राज्यस्तर पर कई पदक जीते. फिर नेशनल स्तर कई पदकों पर कब्जा जमाया. सरकार की उपेक्षा के चलते अनीता का हौसला अब जबाव देने लगा है. उसका परिवार तंगहाली के दौर से गुजर रहा है.

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इतना ही नहीं साल 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने खेलों में उपलब्धियों को देखते हुए अनीता को उत्तराखंड उदय सम्मान से भी नवाजा. साथ ही कांस्टेबल पद के लिए अनुशंसा भी की, लेकिन आज तक उसे नौकरी नहीं मिली. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए अनीता ने बताया कि अब वो अपने पिता पर बोझ बनकर नहीं रह सकती है.

अनीता ने कहा कि नौकरी के लिए विधायक हरभजन सिंह चीमा, खेल मंत्री अरविंद पांडेय समेत कई मंत्रियों के चक्कर काट चुकी है. कई बार मुख्यमंत्री को पत्र भी लिख चुकी है, लेकिन आश्वाशन के अलावा कुछ नहीं मिला. वहीं, अनीता की मां संतोष देवी का कहना है कि उनकी बेटी को आज तक किसी भी तरह की सरकारी नौकरी के रूप में कोई मदद नहीं मिली.

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उनके मुताबिक अनीता ने 14 साल की उम्र से ही मैदान का रुख कर दिया था. उस दौरान अनीता ने न तो गर्मी, न ही ठंड और न ही बरसात देखी. अपनी कड़ी मेहनत से और लगन से राज्य के लिए कई पदक और मेडल जीते. उन्होंने कहा कि सरकार बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा देती है, लेकिन सरकार बेटियों के लिए कुछ नहीं कर रही है.

Intro:एक्सक्लुसिव स्टोरी



Summary- वह उत्तराखंड व देश के लिए दौड़ना चाहती है। उसने अपने राज्य उत्तराखंड को 400, 800 और 1500 मीटर दौड़ में दर्जनों मैडल दिलाये है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत उसकी उपलब्धियों को देखते हुए पुलिस कांस्टेबिल के लिए अनुंशसा भी कर चुके है। वह एम.ए, बीपीएड है। बाबजूद इसके उसे आज तक नौकरी नहीं मिल सकी है। वह माता पिता पर बोझ नहीं बनना चाहती। यह दर्द भरी दास्ताँ काशीपुर की उस प्रतिभाशाली एथलीट अनीता कुमारी की है जिसने अपने शानदार कौशल से जूनियर और सीनियर स्तर पर अब तक राज्य को दर्जनों पदक दिलाये है। उत्तराखंड सरकार की उपेक्षा का दंश झेल रही अनीता जाओ अपनी कहानी बयां करती है तो उसकी आंखों में सरकार के द्वारा की गई उपेक्षा आंसुओं के रूप में बाहर आ जाती है और वह सिसक सिसककर रोने लगती है

एंकर- वह उत्तराखंड व देश के लिए दौड़ना चाहती है। उसने अपने राज्य उत्तराखंड को 400, 800 और 1500 मीटर दौड़ में दर्जनों मैडल दिलाये है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत उसकी उपलब्धियों को देखते हुए पुलिस कांस्टेबिल के लिए अनुंशसा भी कर चुके है। वह एम.ए, बीपीएड है। बाबजूद इसके उसे आज तक नौकरी नहीं मिल सकी है। वह माता पिता पर बोझ नहीं बनना चाहती। यह दर्द भरी दास्ताँ काशीपुर की उस प्रतिभाशाली एथलीट अनीता कुमारी की है जिसने अपने शानदार कौशल से जूनियर और सीनियर स्तर पर अब तक राज्य को दर्जनों पदक दिलाये है। उत्तराखंड सरकार की उपेक्षा का दंश झेल रही अनीता जाओ अपनी कहानी बयां करती है तो उसकी आंखों में सरकार के द्वारा की गई उपेक्षा आंसुओं के रूप में बाहर आ जाती है और वह सिसक सिसककर रोने लगती है।

Body:वीओ- उत्तराखंड के काशीपुर में मानपुर रोड पर रहने वाले बलबीर सिंह पेशे से कुम्हार है। उनके चार बच्चों में सबसे छोटी बेटी अनीता कुमारी को बचपन से ही खेल व मैदानों से मोहब्बत थी। उसकी इस प्रतिभा को कोच चंदन सिंह नेगी ने पहचाना और उसे प्रशिक्षण दिया। अनीता ने अपने प्रशिक्षक की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए पहले जूनियर स्तर पर राज्य भर में पदकों के ढेर लगाए फिर नेशनल स्तर की प्रतियोगिताओं में भी वह जहां गई, गले में पदक लटका कर लौटी।
वीओ - अब तक राज्य व नेशनल स्तर पर सैकड़ों पदक जीत चुकी अनीता का हौसला पारिवारिक तंगहाली के चलते जबाब देने लगा है। पिता बलबीर सिंह की कमाई से परिवार चलाना ही मुश्किल है ऐसे में अपनी एथलीट बेटी के उचित खान पान की व्यवस्था कैसे कर सकते है। अनीता ने नौकरी के लिए खूब प्रयास किये लेकिन हर जगह असफलता ही मिली। 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अनीता की खेलों में उपलब्धियों को देखते हुए उसे उत्तराखंड उदय सम्मान से भी नवाजा साथ ही पुलिस महानिदेशक को कांस्टेबिल पद के लिए अनुशंसा भी की लेकिन अनीता को आज तक नौकरी नहीं मिली। वह लगातार अपनी नौकरी के लिए विधायक हरभजन सिंह चीमा से लेकर खेल मंत्री अरविन्द पांडेय तक के चक्कर काट चुकी है। कई बार मुख्यमंत्री को पत्र लिख चुकी है परन्तु मिला तो सिर्फ और सिर्फ आश्वाशन।
वीओ- अनीता की मां संतोष देवी के मुताबिक उनकी बेटी को आज तक किसी भी तरह की सरकारी नौकरी के रूप में कोई मदद नहीं मिली। उनके मुताबिक 14 साल की उम्र से ही है अनीता ने स्टेडियम की तरफ रुख कर दिया था उसने ना तो गर्मी ना ही ठंड और ना ही बरसात देखा। दिन अपनी कड़ी मेहनत से और लगन से राज्य के लिए काफी पदक और मेडल जीते हैं। बात करते-करते उनकी भी आंखें भर आती हैं और वह कहती हैं कि सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा तो दे देती है लेकिन सरकार बेटियों के लिए कुछ नहीं कर रही।

बाइट- अनिता, युवा एथलीट
बाइट- श्रीमती संतोष देवी, अनिता की माँ Conclusion:अनीता कहती है कि मै कब तक अपने पिता पर बोझ बन कर रह सकती हूँ। मै अब उनके काम में ही उनका साथ देना चाहती हूँ। मै टूट चुकी हूँ। सवाल यह है कि उत्तराखंड की इस बेटी ने मुफलिसी का सामना करते हुए भी मैदानों में अब तक जिस तरह का प्रदर्शन किया है इसे देखते हुए उसे नौकरी मिल जानी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हमारी हुकूमतें बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का लाख बेसुरा राग अलापती हों पर बेटियों को लेकर जमीनी हकीकत में कोई फर्क नहीं दिखता। अनीता जैसी बेटियां बार बार जन्म नहीं लेती, इस बात का भान आखिर हमारे लोकतंत्र को कब होगा। बेटियां बचाने के नाम पर अरबों रूपये निसार करने वाली हमारी सरकारों की नजर आखिर अनीता जैसी प्रतिभाशाली बेटियों पर कब पड़ेगी।
Last Updated : Oct 26, 2019, 8:03 AM IST
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