टिहरीः अमर शहीद श्रीदेव सुमन की आज 106वीं जयंती है. 25 मई यानी आज ही के दिन श्रीदेव सुमन का जन्म हुआ था. उनके बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता. उन्हें टिहरी राजशाही से आजादी के लिए 84 दिनों तक तिल-तिल करके मरना पड़ा, लेकिन श्रीदेव की आवाज को टिहरी रियासत दबा न सका.
अमर शहीद श्रीदेव सुमन की आज 106 जयंती (Sri Dev Suman Birth Anniversary) के अवसर उनके पैतृक गांव जौल में भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया. जहां टिहरी विधायक किशोर उपाध्याय समेत कई लोगों ने श्रीदेव सुमन को श्रद्धांजलि दी. इस मौके पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया. जहां लोक कलाकारों ने रंगारंग प्रस्तुतियां दी. वहीं, कार्यक्रम स्थल में विभिन्न विभागों की ओर से स्टॉल भी लगाए गए.
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बता दें कि श्रीदेव सुमन का जन्म 25 मई 1916 को टिहरी के जौल गांव में हुआ था. ब्रिटिश हुकूमत और टिहरी की अलोकतांत्रिक राजशाही के खिलाफ लगातार आंदोलन कर रहे श्रीदेव सुमन को दिसंबर 1943 को टिहरी की जेल में डाल दिया गया था. जिसके बाद उन्होंने भूख हड़ताल करने का फैसला किया. 209 दिनों तक जेल में रहने और 84 दिनों के भूख हड़ताल के बाद श्रीदेव सुमन का 25 जुलाई 1944 को निधन हो गया.
श्रीदेव सुमन का मूल नाम श्रीदत्त बडोनी था. उनके पिता का नाम हरिराम बडोनी और माता का नाम तारा देवी था. उन्होंने मार्च 1936 गढदेश सेवा संघ की स्थापना की थी. जबकि, जून 1937 में 'सुमन सौरभ' कविता संग्रह प्रकाशित किया. वहीं, जनवरी 1939 में देहरादून में प्रजामंडल के संस्थापक सचिव चुने गए. मई 1940 में टिहरी रियासत ने उनके भाषण पर प्रतिबंध लगा दिया.
वहीं, श्रीदेव सुमन को मई 1941 में रियासत से निष्कासित कर दिया गया. उन्हें जुलाई 1941 में टिहरी में पहली बार गिरफ्तार किया गया. जबकि, उनकी अगस्त 1942 में टिहरी में ही दूसरी बार गिरफ्तारी हुई. नवंबर 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान आगरा सेंट्रल जेल में बंद रहे. उन्हें नवंबर 1943 में आगरा सेंट्रल जेल से रिहा किया गया.
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वहीं, दिसंबर 1943 में श्रीदेव सुमन को टिहरी में तीसरी बार गिरफ्तार किया गया. फरवरी 1944 में टिहरी जेल में सजा सुनाई गई. 3 मई 1944 से टिहरी जेल में अनशन शुरू किया. जहां 84 दिन की ऐतिहासिक अनशन के बाद 25 जुलाई 1944 में 29 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए. इस दौरान उनकी रोटियों में कांच कूटकर डाला गया और उन्हें वो कांच की रोटियां खाने को मजबूर किया गया.
श्रीदेव सुमन पर कई प्रकार से अत्याचार होते रहे, झूठे गवाहों के आधार पर उन पर मुकदमा दायर किया गया. हालांकि, टिहरी रियासत को अंग्रेज कभी भी अपना गुलाम नहीं बना पाए थे. जेल में रहकर श्रीदेव सुमन कमजोर नहीं पड़े. जनक्रांति के नायक अमर शहीद श्रीदेव सुमन को हर साल श्रद्धासुमन अर्पित कर याद किया जाता है.
श्रीदेव सुमन से जुड़ी यादें: महान क्रांतिकारी श्रीदेव सुमन के परिजनों ने आज भी उनकी जुड़ी वस्तुओं को संजोकर रखा है. राजशाही की पुलिस का डंडा श्रीदेव सुमन के परिजनों ने अभी तक संजोकर रखा है. बता दें कि श्रीदेव सुमन सबसे बड़े आंदोलनकारी रहे हैं. टिहरी राजशाही के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले श्रीदेव सुमन के घर पर उनका सामान आज भी सुरक्षित है.
श्रीदेव सुमन को देखते ही पुलिस के एक जवान ने उनके ऊपर जोर से डंडा फेंका था. श्रीदेव सुमन तो भाग गए, लेकिन डंडा एक झाड़ी में उलझ गया. जो डंडा झाड़ी में अटक गया था, उसे श्रीदेव सुमन की मां ने अपने पास छुपा दिया था. राजशाही की पुलिस ने सुमन की मां से डंडा वापस मांगा और धमकी भी दी, लेकिन श्रीदेव सुमन की मां ने डंडा वापस नहीं दिया.
इसके बाद राजशाही की पुलिस टिहरी वापस चली गई. वहीं, श्रीदेव सुमन के भाई के बेटे मस्तराम बडोनी की मानें तो श्रीदेव सुमन से जुड़ी यादें पलंग, डेस्क और पुलिस का डंडा आज भी उनके पास सुरक्षित है. जिन्हें वे अपने पितरों की निशानी समझते हैं.