टिहरी: आज से चैत्र नवरात्र शुरू हो रहे है. 52 सिद्धपीठों में एक माता कुंजापूरी में भी सुबह से श्रद्धालुओं पहुंचाना शुरू हो गए है. मान्यता है कि यहां देवी सती के बाल (कुंज) गिरे थे. नवरात्रों में यहां विशेष पूजा होती है. बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर नवरात्र में यहां पहुंचते हैं.
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नवरात्रों में ऊपर आ जाती है गुफा
ऐसा बताया जाता है कि इस मंदिर के अंदर एक गर्भगृह (गुफा) है, जो नवरात्र के दौरान ऊपर आ जाती है और नवरात्रों को बाद अपने आप जमीन के अंदर चली जाती है. जिसको वर्तमान समय में यहां के पुजारियों ने चांदी की प्लेट से ढक रखा है. गर्भगृह की बराबर में एक अखंड दीप जलता है.
मंदिर से जुड़ी मान्यता
कुंजापुरी सिद्ध पीठ के बारे में मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से माता की पूजा-अर्चना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. इसके साथ ही ये भी बताया जाता है कि यदि कोई व्यक्ति छाया दोष या फिर असाध्य रोग से पीड़ित है तो यहां दर्शन मात्र से ही उसके सभी कष्ट दूर हो जाते है.
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इतिहास
इस मंदिर से कई कहानियां जुड़ी है. बतााया जाता है कि माता कुंजापुरी के इस क्षेत्र को जगद्गुरु शंकराचार्य ने स्थापित किया गया था. यहां देवी सती के बाल (कुंज) गिरे थे जिस कारण इस स्थान का नाम कुंजापुरी पड़ा. स्कंध पुराण के केदारखंड के अनुसार पौराणिक काल में कनखल हरिद्वार में दक्ष प्रजापति ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया गया था. इसमें सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन उसमें शंकर व अपनी पुत्री सती को निमंत्रण नहीं दिया गया.
जब सती को यज्ञ का पता चला तो वह उसमें शामिल होने कनखल चली गई. यज्ञ में शिव का अपमान देख सती ने यज्ञ कुंड में आहुति दे दी. शिव को जब यह पता चला तो वह हरिद्वार पहुंचे और यहां से सती का शरीर लेकर कैलाश की ओर चल पड़े. सती का शव रास्ते में टूट कर जगह-जगह गिरता रहा कुंजापुरी में सती के कुंज गिरे जिस कारण इसका नाम कुंजापुरी पड़ा.
ऋषिकेश टिहरी हाई-वे पर स्थित
कुंजापुरी मंदिर समुद्रतल से लगभग 1605 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. ऋषिकेश से टिहरी राजमार्ग पर करीब 25 किमी की दूरी पर हिन्डोलाखाल बाजार है, यहां से मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क और पैदल मार्ग दोनों हैं. टिहरी के लोग इस देवी को अपनी कुलदेवी मानते हैं.
प्रकृति की सुंदर छटा नजर आती है
मां कुंजापुरी देवी मंदिर गढ़वाल के सुंदर रमणीक स्थलों में से भी एक है. पर्वत की चोटी पर स्थित मंदिर से इसके चारों ओर प्रकृति की सुंदर छटा नजर आती है. मंदिर प्रांगण से गंगोत्री, यमुनोत्री और गोमुख की पहाड़ियां दिखाई देती है.