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शक्तिपीठ कुंजापुरी: यहां गिरे थे देवी सती के कुंज, जानें मंदिर से जुड़ा अद्भुत रहस्य

माता कुंजापुरी के इस क्षेत्र में जगद्गुरु शंकराचार्य ने स्थापित किया गया था.

माता कुंजापुरी मंदिर
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Published : Apr 6, 2019, 9:57 AM IST

टिहरी: आज से चैत्र नवरात्र शुरू हो रहे है. 52 सिद्धपीठों में एक माता कुंजापूरी में भी सुबह से श्रद्धालुओं पहुंचाना शुरू हो गए है. मान्यता है कि यहां देवी सती के बाल (कुंज) गिरे थे. नवरात्रों में यहां विशेष पूजा होती है. बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर नवरात्र में यहां पहुंचते हैं.

माता कुंजापुरी मंदिर

पढ़ें- सुरकुट पर्वत पर स्थित है मां सुरकंडा का मंदिर, नवरात्रि में लगता है भक्तों का तांता

नवरात्रों में ऊपर आ जाती है गुफा
ऐसा बताया जाता है कि इस मंदिर के अंदर एक गर्भगृह (गुफा) है, जो नवरात्र के दौरान ऊपर आ जाती है और नवरात्रों को बाद अपने आप जमीन के अंदर चली जाती है. जिसको वर्तमान समय में यहां के पुजारियों ने चांदी की प्लेट से ढक रखा है. गर्भगृह की बराबर में एक अखंड दीप जलता है.

मंदिर से जुड़ी मान्यता
कुंजापुरी सिद्ध पीठ के बारे में मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से माता की पूजा-अर्चना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. इसके साथ ही ये भी बताया जाता है कि यदि कोई व्यक्ति छाया दोष या फिर असाध्य रोग से पीड़ित है तो यहां दर्शन मात्र से ही उसके सभी कष्ट दूर हो जाते है.

पढ़ें- चैत्र नवरात्रि का आज पहला दिन, पहले दिन होती है देवी शैलपुत्री की पूजा, जानें पूजा की विधि

इतिहास
इस मंदिर से कई कहानियां जुड़ी है. बतााया जाता है कि माता कुंजापुरी के इस क्षेत्र को जगद्गुरु शंकराचार्य ने स्थापित किया गया था. यहां देवी सती के बाल (कुंज) गिरे थे जिस कारण इस स्थान का नाम कुंजापुरी पड़ा. स्कंध पुराण के केदारखंड के अनुसार पौराणिक काल में कनखल हरिद्वार में दक्ष प्रजापति ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया गया था. इसमें सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन उसमें शंकर व अपनी पुत्री सती को निमंत्रण नहीं दिया गया.

जब सती को यज्ञ का पता चला तो वह उसमें शामिल होने कनखल चली गई. यज्ञ में शिव का अपमान देख सती ने यज्ञ कुंड में आहुति दे दी. शिव को जब यह पता चला तो वह हरिद्वार पहुंचे और यहां से सती का शरीर लेकर कैलाश की ओर चल पड़े. सती का शव रास्ते में टूट कर जगह-जगह गिरता रहा कुंजापुरी में सती के कुंज गिरे जिस कारण इसका नाम कुंजापुरी पड़ा.

पढ़ें- देवभूमि में आज राहुल गांधी की ताबड़तोड़ रैलियां, श्रीनगर, अल्मोड़ा और हरिद्वार में जनता को करेंगे संबोधित

ऋषिकेश टिहरी हाई-वे पर स्थित
कुंजापुरी मंदिर समुद्रतल से लगभग 1605 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. ऋषिकेश से टिहरी राजमार्ग पर करीब 25 किमी की दूरी पर हिन्डोलाखाल बाजार है, यहां से मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क और पैदल मार्ग दोनों हैं. टिहरी के लोग इस देवी को अपनी कुलदेवी मानते हैं.

प्रकृति की सुंदर छटा नजर आती है
मां कुंजापुरी देवी मंदिर गढ़वाल के सुंदर रमणीक स्थलों में से भी एक है. पर्वत की चोटी पर स्थित मंदिर से इसके चारों ओर प्रकृति की सुंदर छटा नजर आती है. मंदिर प्रांगण से गंगोत्री, यमुनोत्री और गोमुख की पहाड़ियां दिखाई देती है.

टिहरी: आज से चैत्र नवरात्र शुरू हो रहे है. 52 सिद्धपीठों में एक माता कुंजापूरी में भी सुबह से श्रद्धालुओं पहुंचाना शुरू हो गए है. मान्यता है कि यहां देवी सती के बाल (कुंज) गिरे थे. नवरात्रों में यहां विशेष पूजा होती है. बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर नवरात्र में यहां पहुंचते हैं.

माता कुंजापुरी मंदिर

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नवरात्रों में ऊपर आ जाती है गुफा
ऐसा बताया जाता है कि इस मंदिर के अंदर एक गर्भगृह (गुफा) है, जो नवरात्र के दौरान ऊपर आ जाती है और नवरात्रों को बाद अपने आप जमीन के अंदर चली जाती है. जिसको वर्तमान समय में यहां के पुजारियों ने चांदी की प्लेट से ढक रखा है. गर्भगृह की बराबर में एक अखंड दीप जलता है.

मंदिर से जुड़ी मान्यता
कुंजापुरी सिद्ध पीठ के बारे में मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से माता की पूजा-अर्चना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. इसके साथ ही ये भी बताया जाता है कि यदि कोई व्यक्ति छाया दोष या फिर असाध्य रोग से पीड़ित है तो यहां दर्शन मात्र से ही उसके सभी कष्ट दूर हो जाते है.

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इतिहास
इस मंदिर से कई कहानियां जुड़ी है. बतााया जाता है कि माता कुंजापुरी के इस क्षेत्र को जगद्गुरु शंकराचार्य ने स्थापित किया गया था. यहां देवी सती के बाल (कुंज) गिरे थे जिस कारण इस स्थान का नाम कुंजापुरी पड़ा. स्कंध पुराण के केदारखंड के अनुसार पौराणिक काल में कनखल हरिद्वार में दक्ष प्रजापति ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया गया था. इसमें सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन उसमें शंकर व अपनी पुत्री सती को निमंत्रण नहीं दिया गया.

जब सती को यज्ञ का पता चला तो वह उसमें शामिल होने कनखल चली गई. यज्ञ में शिव का अपमान देख सती ने यज्ञ कुंड में आहुति दे दी. शिव को जब यह पता चला तो वह हरिद्वार पहुंचे और यहां से सती का शरीर लेकर कैलाश की ओर चल पड़े. सती का शव रास्ते में टूट कर जगह-जगह गिरता रहा कुंजापुरी में सती के कुंज गिरे जिस कारण इसका नाम कुंजापुरी पड़ा.

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ऋषिकेश टिहरी हाई-वे पर स्थित
कुंजापुरी मंदिर समुद्रतल से लगभग 1605 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. ऋषिकेश से टिहरी राजमार्ग पर करीब 25 किमी की दूरी पर हिन्डोलाखाल बाजार है, यहां से मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क और पैदल मार्ग दोनों हैं. टिहरी के लोग इस देवी को अपनी कुलदेवी मानते हैं.

प्रकृति की सुंदर छटा नजर आती है
मां कुंजापुरी देवी मंदिर गढ़वाल के सुंदर रमणीक स्थलों में से भी एक है. पर्वत की चोटी पर स्थित मंदिर से इसके चारों ओर प्रकृति की सुंदर छटा नजर आती है. मंदिर प्रांगण से गंगोत्री, यमुनोत्री और गोमुख की पहाड़ियां दिखाई देती है.

Intro:नवरात्रा के पहले दिन कुंजापुरी मंदिर में जुटी श्रद्धालुओं की भीड़ इस मंदिर में देश ही नहीं विदेशों के श्रद्धालु भी पूजा-अर्चना करने के लिए पहुंचते हैं मान्यता है कि यहां पर जो भी श्रद्धालु अपने मन्नत मांगने आता है वह जरूर पूरी होती है


Body:टिहरी जिले के नरेंद्र नगर तहसील के अंतर्गत 52 सिद्ध पीठ कुंजापुरी मंदिर में नवरात्रि के पहले दिन श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने शुरू हो गई है यहां पर हर समय माता के दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी रहती है नवरात्रि के पहले दिन यहां पर श्रद्धालु माता के दर्शन और पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं

कहते हैं कि यहां पर यहां पर भगवती कुंजापुरी देवी का एक प्राचीन मंदिर है कुंजापुरी 52 शक्तिपीठों में से एक सिद्ध पीठ है कहां जाता है कुंजापुरी को इस क्षेत्र में जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गया पौराणिक कथा अनुसार भगवान शिव की पत्नी सती ने अपने पिता द्वारा प्रारंभ यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी भगवान शिव यहां इस स्थान से सती का मृत शरीर कैलाश वापस ले गए जिसके शरीर का ऊपरी अर्थ भाग इस स्थान पर गिरा जहां कुंजापुरी देवी स्थित है या हिमालय घाटी की बर्फीली सीमा एवं भागीरथी घाटी का सुंदर दृश्य का दिखाई देता है

इस मंदिर के अंदर एक गर्भ ग्रह गुफा है जो नवरात्रि के दौरान ऊपर आती है और अन्य समय पर जमीन के अंदर चली जाती है जिसको वर्तमान समय में यहां के पुजारियों के द्वारा चांदी की प्लेट से ढका रहता है और बगल में एक अखंड दीप जलता है


Conclusion:उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है चार धाम पंच बद्री पंच केदार पंच प्रयाग यही को कहते हैं कुंजापुरी सिद्ध पीठ के बारे में मान्यता है कि यहां पर जो भी आता है वह खाली हाथ नहीं लौटता उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है यहां पर जिस व्यक्ति पर छाया दोष या किसी असाध्य रोग से पीड़ित रहता है वह माता के दरबार में आकर सब दुख दूर हो जाते हैं इसलिए इस मंदिर में दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं

इस मंदिर को 52 सिद्ध पीठ के रूप में पूजा जाता है इसका वर्णन स्कंद पुराण केदारखंड में भी किया गया है मां कुंजापुरी मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण केदारखंड में विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है इस मंदिर की खासियत यह है कि इस मंदिर के पुजारी ब्राह्मण होकर राजपूत जाति के भंडारी लोग हैं इस मंदिर में आश्चर्य की बात यह है कि जब नवरात्र आते हैं तो जहां पर कुंज गिरा हुआ भाग है वह नवरात्रों में ऊपर की तरफ आ जाता है और शेष समय में नीचे रहता है

पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा जी के पुत्र दक्ष प्रजापति ने यज्ञ किया जिसने सबको बुलाया गया इस यज्ञ में सिर्फ भगवान शिव को नहीं बुलाया गया इसीलिए मां सती ने यज्ञ में अपने पति को ना देखकर पिता दक्ष प्रजापति द्वारा अपमानित होने पर मां सती ने अपने ही योग अग्नि द्वारा स्वयं को जला डाला इससे दक्ष प्रजापति के यज्ञ में उपस्थित शिव गणो ने उत्पात मचाया मां सती के बारे में सूचना पाकर भगवान शिव कैलाश से यज्ञ के पास पहुंचे तो शिव ने अपने पत्नी की अस्थि देख कर गुस्से में शिव ने दक्ष प्रजापति का गर्दन काट दी और शिव ने अपनी पत्नी की स्थिति देखकर सुध बुध भूल गए और शिवन ने मां सती का देह अस्थि को कंधे में उठाकर हिमालय की ओर चलने लगे शिव को इस प्रकार देखकर भगवान श्री विष्णु ने विचार किया कि इस प्रकार शिव सती मां के मोह के कारण सृष्टि का अनिष्ट हो सकता है इसलिए भगवान विष्णु ने सृष्टि के लिए अपने सुदर्शन चक्र से मां सती के जो अंगों को काट दिए जहां जहां सुदर्शन चक्र से मां सती के अंग काटकर गिरे वह जगह उन जगहों के नाम से प्रसिद्ध सिद्ध पीठ हो गए जैसे कुंजापुरी मंदिर माता सती के कुंज भाग्य का मंदिर में श्री का भाग गिरा चंद्रबदनी में बदन का भाग्य नैना देवी के पास में आंख वाला भाग्य जहां जहां मां सती का भाग गए उसी नाम से प्रसिद्ध सिद्ध पीठ ने आज यह सिद्ध पीठ में लोगों की बड़ी आस्था है

टिहरी के लोग इस देवी को अपना कुलदेवी मानते हैं कहा जाता है कि जब भी किसी बच्चे ए पर काली छाया भूत प्रेत आदि लगा हो तो कुंजापुरी सिद्ध पीठ के हवन कुंड की राख का टीका लगाने मात्र से कष्ट दूर हो जाता है अगर किसी के बच्चे नहीं हो रहे हैं तो वहां हवन करने से मनोकामना पूर्ण हो जाती है जिसकी शादी में दिक्कत आ रही है तो मंदिर के चुन्नी को के पेड़ पर बांधते है माता की चुन्नी बांध से कुछ ही समय में शादी हो जाती है इसलिए यहां मंदिर में बच्चे बूढ़े सब परिवार के साथ अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए माता के दर्शन के बेताब रहते हैं
इस मंदिर में माता को खुश करने के लिए श्रीगार का सामान चुनने श्रीफल पंच मेवा मिठाई चढ़ाई जाती है इस मंदिर के प्रांगण से गंगोत्री यमुनोत्री गोमुख की पहाड़ियां दिखाई देती है यहां आने के लिए सबसे पहले ऋषिकेश आना पड़ता है ऋषिकेश से नरेंद्र नगर का 12 किलोमीटर होते हुए हिंडोला खाल से कुंजापुरी सिद्ध पीठ तक पैदल का रास्ता कम से कम 12 किलोमीटर है और वहां से गाड़ी से भी जाया जाता है सड़क से मंदिर तक पहुंचने के लिए 108 सीढ़ियां बनाई गई हैं उसके बाद मंदिरआता है ,

पीटीसी अरविंद नौटियाल
बाइट राजेन्द्र भंडारी मुख्य पुजारी
बाइट डी एस भंडारी

इसके विसुवल ftp ने स्लग के नाम से भेजे है,
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