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रोज बिगड़ रही है केदारनाथ के हिमालय की सेहत, खत्म होता ईको सिस्टम बड़े खतरे का संकेत

केदारनाथ के हिमालय के ऊपर खतरा मंडरा रहा है. आलम ये है कि धीरे-धीरे केदारनाथ का ईको सिस्टम खत्म होता जा रहा है. विशेषज्ञों की मानें तो धाम में माॅस घास भी खत्म होती जा रही है. ऐसे में विशेषज्ञों का कहना है कि ये चीजें अगर समाप्त हो जाएंगी, तो धाम की स्थिति भी धीरे-धीरे खराब हो जाएगी और प्रकृति के साथ ही मनुष्य को भारी नुकसान झेलना पडे़गा.

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Published : Jun 17, 2023, 1:17 PM IST

केदारनाथ धाम पर मंडरा रहा खतरा

केदारनाथ: केदारनाथ धाम में आई आपदा के बाद से यहां के तापमान में भारी परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं. पहले धाम में बर्फबारी और बारिश समय पर होने से तापमान सही रहता था और ग्लेशियर टूटने की घटनाएं सामने नहीं आती थी. वहीं अब कुछ सालों से धाम में ग्लेशियर चटकने की घटनाएं बार-बार सामने आ रही हैं. इसके साथ ही यहां के बुग्यालों को नुकसान पहुंचने से वनस्पति और जीव-जंतु भी विलुप्ति की कगार पर हैं. आपदा के बाद से केदारनाथ धाम में पर्यावरण को लेकर कोई कार्य नहीं किए जाने से पर्यावरण विशेषज्ञ भी भविष्य के लिए चिंतित नजर आ रहे हैं.

धाम में माॅस घास हो रही खत्म: केदारनाथ धाम में माॅस घास खत्म होती जा रही है, जिससे धाम की पहाड़ियां धीरे-धीरे खिसकनी शुरू हो गई हैं. बुग्यालों में की जा रही खुदाई, धाम में चल रहे पुनर्निर्माण कार्य और यहां फेंके जा रहे प्लास्टिक कचरे को इसका मुख्य कारण माना जा रहा है. भैरवनाथ मंदिर, वासुकीताल और गरुड़चट्टी जाने के रास्ते से इस घास को रौंदा जाता है. उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्रों में माॅस घास को उगने में समय लगता है, क्योंकि यहां का तापमान बदलता रहता है.

10 सालों में केदारनाथ धाम में पुनर्निर्माण कार्य में आई तेजी: पर्यावरण विशेषज्ञ देवराघवेन्द्र बद्री ने कहा कि आपदा के 10 सालों में केदारनाथ धाम में पुनर्निर्माण कार्य तेजी से किए गए हैं. मानव गतिविधियों ने भी रफ्तार पकड़ी है. इसके साथ ही हेली सेवाओं में निरंतर वृद्धि हुई. इसके विपरीत हिमालय को बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए. आज केदारनाथ धाम के तापमान में काफी परिवर्तन आ गया है. उन्होंने कहा कि कहा कि केदारनाथ धाम में पाई जाने वाली घास विशेष प्रकार की है. इसे वनस्पति विज्ञान में माॅस घास कहा जाता है. यह जमीन को बांधने का काम करती है. साथ ही यहां के ईको सिस्टम को भी सही रखती है.

विलुप्ति की कगार पर है हिमालयी पिका: बुग्यालों में पाया जाने वाला बिना पूंछ वाला चूहा, जिसे हिमालयी पिका कहा जाता है, यह भी कम ही देखने को मिल रहा है. इसका कारण यह है कि हिमालय के स्वास्थ्य पर मानव गतिवितियों का गहरा असर पड़ रहा है. हिमालय में विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं. ये जड़ी-बूटियां हिमालयी पिका का भोजन होती हैं.

ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान में हो रही बढ़ोत्तरी: पर्यावरणविद जगत सिंह जंगली ने कहा कि केदारनाथ के तापमान में ग्लोबल वार्मिंग के कारण वृद्धि देखने को मिल रही है. ग्लेशियर खिसक रहे हैं. केदारनाथ धाम में अनियंत्रित लोगों के जाने से वातावरण को नुकसान पहुंच रहा है. हिमालय क्षेत्र में हेलीकाॅप्टर सेवाएं टैक्सी की तरह कार्य कर रही हैं, जबकि इनकी उड़ानों को विशेष इमरजेंसी की सेवाओं में उपयोग किया जाना चाहिए. हिमालय में बड़े-बड़े ग्लेशियर हैं. केदारनाथ का मतलब दल-दल की भूमि है. पहले केदारनाथ धाम का तापमान सही रहता था, जिस कारण ग्लेशियर टूटने की घटनाएं सामने नहीं आती थी.

दो तरह का प्रदूषण फैला रही हेली सेवाएं: पर्यावरण विशेषज्ञ देवराघवेन्द्र बद्री की मानें, तो हेली सेवाओं से दो तरह का प्रदूषण फैल रहा है. पहला ध्वनि प्रदूषण है. हेलीकाॅप्टर सेवाएं जितनी तेजी से चलेंगी, उतनी तेजी से ग्लेशियरों पर भी प्रभाव पड़ेगा. दूसरा इसके ऑयल से निकलने वाला कार्बन भी नुकसानदायक है. केदारनाथ धाम के लिए हेली सेवाएं टैक्सी की तरह संचालित हो रही हैं. हेली सेवाओं के संचालन से केदारनाथ धाम को भारी नुकसान पहुंच रहा है.

केदारनाथ क्षेत्र में भोजपत्र के पेड़ों को लगाने की जरूरत: केदारनाथ क्षेत्र में भोजपत्र के पेड़ों को लगाने की आवश्यकता है. जिससे जहां पर्यावरण संतुलन बना रहेगा. क्षेत्र में भोजपत्र के पेड़ सूख गए हैं, जबकि थूनेर के पौधे भी खत्म होते जा रहे हैं. केदारनाथ में अनियंत्रित यात्री और निर्माण कार्य के कारण यह सब हो रहा है. इसके लिए केन्द्र व राज्य सरकार के साथ ही जिला प्रशासन को कार्य करने की जरूरत है.

ये भी पढ़ें: उत्तराखंड में मौसम बदलेगा करवट, 18 और 19 तारीख को झमाझम बारिश के आसार, रहिए सतर्क

केदारनाथ धाम पर मंडरा रहा खतरा

केदारनाथ: केदारनाथ धाम में आई आपदा के बाद से यहां के तापमान में भारी परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं. पहले धाम में बर्फबारी और बारिश समय पर होने से तापमान सही रहता था और ग्लेशियर टूटने की घटनाएं सामने नहीं आती थी. वहीं अब कुछ सालों से धाम में ग्लेशियर चटकने की घटनाएं बार-बार सामने आ रही हैं. इसके साथ ही यहां के बुग्यालों को नुकसान पहुंचने से वनस्पति और जीव-जंतु भी विलुप्ति की कगार पर हैं. आपदा के बाद से केदारनाथ धाम में पर्यावरण को लेकर कोई कार्य नहीं किए जाने से पर्यावरण विशेषज्ञ भी भविष्य के लिए चिंतित नजर आ रहे हैं.

धाम में माॅस घास हो रही खत्म: केदारनाथ धाम में माॅस घास खत्म होती जा रही है, जिससे धाम की पहाड़ियां धीरे-धीरे खिसकनी शुरू हो गई हैं. बुग्यालों में की जा रही खुदाई, धाम में चल रहे पुनर्निर्माण कार्य और यहां फेंके जा रहे प्लास्टिक कचरे को इसका मुख्य कारण माना जा रहा है. भैरवनाथ मंदिर, वासुकीताल और गरुड़चट्टी जाने के रास्ते से इस घास को रौंदा जाता है. उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्रों में माॅस घास को उगने में समय लगता है, क्योंकि यहां का तापमान बदलता रहता है.

10 सालों में केदारनाथ धाम में पुनर्निर्माण कार्य में आई तेजी: पर्यावरण विशेषज्ञ देवराघवेन्द्र बद्री ने कहा कि आपदा के 10 सालों में केदारनाथ धाम में पुनर्निर्माण कार्य तेजी से किए गए हैं. मानव गतिविधियों ने भी रफ्तार पकड़ी है. इसके साथ ही हेली सेवाओं में निरंतर वृद्धि हुई. इसके विपरीत हिमालय को बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए. आज केदारनाथ धाम के तापमान में काफी परिवर्तन आ गया है. उन्होंने कहा कि कहा कि केदारनाथ धाम में पाई जाने वाली घास विशेष प्रकार की है. इसे वनस्पति विज्ञान में माॅस घास कहा जाता है. यह जमीन को बांधने का काम करती है. साथ ही यहां के ईको सिस्टम को भी सही रखती है.

विलुप्ति की कगार पर है हिमालयी पिका: बुग्यालों में पाया जाने वाला बिना पूंछ वाला चूहा, जिसे हिमालयी पिका कहा जाता है, यह भी कम ही देखने को मिल रहा है. इसका कारण यह है कि हिमालय के स्वास्थ्य पर मानव गतिवितियों का गहरा असर पड़ रहा है. हिमालय में विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं. ये जड़ी-बूटियां हिमालयी पिका का भोजन होती हैं.

ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान में हो रही बढ़ोत्तरी: पर्यावरणविद जगत सिंह जंगली ने कहा कि केदारनाथ के तापमान में ग्लोबल वार्मिंग के कारण वृद्धि देखने को मिल रही है. ग्लेशियर खिसक रहे हैं. केदारनाथ धाम में अनियंत्रित लोगों के जाने से वातावरण को नुकसान पहुंच रहा है. हिमालय क्षेत्र में हेलीकाॅप्टर सेवाएं टैक्सी की तरह कार्य कर रही हैं, जबकि इनकी उड़ानों को विशेष इमरजेंसी की सेवाओं में उपयोग किया जाना चाहिए. हिमालय में बड़े-बड़े ग्लेशियर हैं. केदारनाथ का मतलब दल-दल की भूमि है. पहले केदारनाथ धाम का तापमान सही रहता था, जिस कारण ग्लेशियर टूटने की घटनाएं सामने नहीं आती थी.

दो तरह का प्रदूषण फैला रही हेली सेवाएं: पर्यावरण विशेषज्ञ देवराघवेन्द्र बद्री की मानें, तो हेली सेवाओं से दो तरह का प्रदूषण फैल रहा है. पहला ध्वनि प्रदूषण है. हेलीकाॅप्टर सेवाएं जितनी तेजी से चलेंगी, उतनी तेजी से ग्लेशियरों पर भी प्रभाव पड़ेगा. दूसरा इसके ऑयल से निकलने वाला कार्बन भी नुकसानदायक है. केदारनाथ धाम के लिए हेली सेवाएं टैक्सी की तरह संचालित हो रही हैं. हेली सेवाओं के संचालन से केदारनाथ धाम को भारी नुकसान पहुंच रहा है.

केदारनाथ क्षेत्र में भोजपत्र के पेड़ों को लगाने की जरूरत: केदारनाथ क्षेत्र में भोजपत्र के पेड़ों को लगाने की आवश्यकता है. जिससे जहां पर्यावरण संतुलन बना रहेगा. क्षेत्र में भोजपत्र के पेड़ सूख गए हैं, जबकि थूनेर के पौधे भी खत्म होते जा रहे हैं. केदारनाथ में अनियंत्रित यात्री और निर्माण कार्य के कारण यह सब हो रहा है. इसके लिए केन्द्र व राज्य सरकार के साथ ही जिला प्रशासन को कार्य करने की जरूरत है.

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