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भगवती राकेश्वरी मंदिर में दो महीने तक दिखी अद्भुत परंपरा, पौराणिक जागरों का हुआ समापन

देवभूमि उत्तराखंड में जागर गायन की परंपरा अतीत से चली आ रही है. जागर गायन से देवताओं की स्तुति की जाती है. रांसी गांव में स्थित भगवती राकेश्वरी मंदिर में भी दो महीने तक जागरों का आयोजन किया गया. जिसका आज समापन हो गया है.

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पौराणिक जागर
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Published : Sep 18, 2021, 7:18 PM IST

रुद्रप्रयागः मद्महेश्वर घाटी के ग्रामीणों की आराध्य देवी और रांसी गांव में विराजमान भगवती राकेश्वरी के मंदिर में दो महीने तक चले पौराणिक जागरों का समापन हो गया है. इस अवसर पर भगवती राकेश्वरी को ब्रह्मकमल अर्पित किया गया. जिसके बाद ब्रह्मकमल को प्रसाद स्वरूप भक्तों को वितरित किया गया. पौराणिक जागरों के समापन अवसर पर सैकड़ों भक्तों ने भगवती राकेश्वरी के मंदिर में मनौती मांगी और विश्व कल्याण की कामना की.

पौराणिक जागरों के आयोजन से दो महीने तक रांसी गांव का वातावरण भक्तिमय बना रहा. समापन अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करते हुए जिला पंचायत सदस्य कालीमठ विनोद राणा ने कहा कि मद्महेश्वर घाटी के अंतर्गत भगवती राकेश्वरी की तपस्थली रांसी गांव की अपनी विशिष्ट पहचान है. प्रधान कुंती नेगी ने बताया कि मद्महेश्वर घाटी के ग्रामीणों की अराध्य देवी भगवती राकेश्वरी के मंदिर में सावन मास की संक्रांति से पौराणिक जागर का शुभारंभ किया गया था. रोजाना रात आठ बजे से नौ बजे तक पौराणिक जागर के माध्यम से 33 कोटि देवी-देवताओं का गुणगान किया गया.

ये भी पढ़ेंः सेलकु मेले में मायके आई बेटियां चढ़ाती हैं भेंट, डांगरियों पर आसन लगाते हैं सोमेश्वर देवता

पौराणिक जागरों का समापन शनिवार को भगवती राकेश्वरी को ब्रह्मकमल अर्पित करने के साथ हो गया है. प्रसिद्ध जागरी पूर्ण सिंह पंवार ने बताया कि पौराणिक जागरों के गायन में गांव के बुजुर्गों की भूमिका अहम रही. जिसमें युवा पीढ़ी को भी पौराणिक जागरों के प्रति जागरूक किया जा रहा है.

शिवराज सिंह पंवार ने बताया कि दो माह तक चले पौराणिक जागर में देवभूमि के प्रवेश द्वार हरिद्वार से लेकर चौखम्बा हिमालय की महिमा का गुणगान किया गया और प्रतिदिन जागरों के समापन पर भगवती राकेश्वरी की स्तुति की गई. ग्रामीण राम सिंह पंवार ने बताया कि पौराणिक जागरों के माध्यम से महाभारत का वृतांत और भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का गुणगान किया गया.

ये भी पढ़ेंः पहले दिन 542 श्रद्धालु पहुंचे केदारनाथ, 100 लोगों ने किए बाबा केदार के दर्शन

कार्तिक सिंह खोयाल ने बताया कि पौराणिक जागरों का गायन हमारी पौराणिक विरासत है. इनके संरक्षण एवं संवर्धन के लिए सामूहिक पहल होनी चाहिए. जसपाल जिरवाण ने बताया कि पौराणिक जागरों के गायन में प्रतिभाग करने से मनुष्य के जन्म-जन्मातंरों के पापों का हरण होता है. जसपाल खोयाल ने बताया कि दो माह तक चले पौराणिक जागरों के गायन में शामिल होने का सौभाग्य नसीब वालों को ही मिलता है.

रुद्रप्रयागः मद्महेश्वर घाटी के ग्रामीणों की आराध्य देवी और रांसी गांव में विराजमान भगवती राकेश्वरी के मंदिर में दो महीने तक चले पौराणिक जागरों का समापन हो गया है. इस अवसर पर भगवती राकेश्वरी को ब्रह्मकमल अर्पित किया गया. जिसके बाद ब्रह्मकमल को प्रसाद स्वरूप भक्तों को वितरित किया गया. पौराणिक जागरों के समापन अवसर पर सैकड़ों भक्तों ने भगवती राकेश्वरी के मंदिर में मनौती मांगी और विश्व कल्याण की कामना की.

पौराणिक जागरों के आयोजन से दो महीने तक रांसी गांव का वातावरण भक्तिमय बना रहा. समापन अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करते हुए जिला पंचायत सदस्य कालीमठ विनोद राणा ने कहा कि मद्महेश्वर घाटी के अंतर्गत भगवती राकेश्वरी की तपस्थली रांसी गांव की अपनी विशिष्ट पहचान है. प्रधान कुंती नेगी ने बताया कि मद्महेश्वर घाटी के ग्रामीणों की अराध्य देवी भगवती राकेश्वरी के मंदिर में सावन मास की संक्रांति से पौराणिक जागर का शुभारंभ किया गया था. रोजाना रात आठ बजे से नौ बजे तक पौराणिक जागर के माध्यम से 33 कोटि देवी-देवताओं का गुणगान किया गया.

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पौराणिक जागरों का समापन शनिवार को भगवती राकेश्वरी को ब्रह्मकमल अर्पित करने के साथ हो गया है. प्रसिद्ध जागरी पूर्ण सिंह पंवार ने बताया कि पौराणिक जागरों के गायन में गांव के बुजुर्गों की भूमिका अहम रही. जिसमें युवा पीढ़ी को भी पौराणिक जागरों के प्रति जागरूक किया जा रहा है.

शिवराज सिंह पंवार ने बताया कि दो माह तक चले पौराणिक जागर में देवभूमि के प्रवेश द्वार हरिद्वार से लेकर चौखम्बा हिमालय की महिमा का गुणगान किया गया और प्रतिदिन जागरों के समापन पर भगवती राकेश्वरी की स्तुति की गई. ग्रामीण राम सिंह पंवार ने बताया कि पौराणिक जागरों के माध्यम से महाभारत का वृतांत और भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का गुणगान किया गया.

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कार्तिक सिंह खोयाल ने बताया कि पौराणिक जागरों का गायन हमारी पौराणिक विरासत है. इनके संरक्षण एवं संवर्धन के लिए सामूहिक पहल होनी चाहिए. जसपाल जिरवाण ने बताया कि पौराणिक जागरों के गायन में प्रतिभाग करने से मनुष्य के जन्म-जन्मातंरों के पापों का हरण होता है. जसपाल खोयाल ने बताया कि दो माह तक चले पौराणिक जागरों के गायन में शामिल होने का सौभाग्य नसीब वालों को ही मिलता है.

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