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केदारनाथ से पहले पूजे जाते हैं भगवान भैरवनाथ, ये है कारण - रुद्रप्रयाग न्यूज

केदारनाथ धाम में भगवान केदार से पहले भगवान भैरवनाथ को पूजा जाता है. जी हां आपने सही पढ़ा. केदारनाथ में भैरवनाथ की पूजा के बाद ही धाम के देव की पूजा होती है. दरअसल भैरवनाथ को केदारनाथ धाम का रक्षक माना जाता है.

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Published : Oct 14, 2021, 5:52 PM IST

रुद्रप्रयाग: केदारनाथ आने वाले भक्त अक्सर बाबा केदार की ही पूजा-अर्चना करते हैं, लेकिन अधिकांश भक्तों को यह पता नहीं है कि केदार बाबा की पूजा-अर्चना से पहले केदारनाथ के क्षेत्र रक्षक भैरवनाथ की पूजा का विधान है. केदारनाथ धाम से आधा किमी दूर स्थिति भैरव बाबा के कपाट जब तक नहीं खुलते हैं, तब तक केदार बाबा की आरती नहीं होती है और न ही भोग लगता है. जब केदारनाथ धाम के कपाट बंद होते हैं और केदारनाथ में कोई नहीं रहता है तो भैरवनाथ ही सम्पूर्ण केदारनगरी की रक्षा करते हैं.

बता दें कि, केदारनाथ मंदिर से आधा किमी की दूरी पर प्रसिद्ध भैरवनाथ का मंदिर स्थित है. केदारनाथ जाने वाले अधिकांश श्रद्धालु भैरवनाथ के दर्शनों को भी जाते हैं. केदारनाथ भगवान की पूजा-अर्चना से पहले भगवान भैरवनाथ की पूजा का विधान है. भगवान केदारनाथ के शीतकालीन गददीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ से जब बाबा केदार की पंचमुखी चल विग्रह उत्सह डोली केदारनाथ धाम के लिए रवाना होती है तो उससे एक दिन पूर्व भगवान भैरवनाथ की पूजा-अर्चना की जाती है. भगवान केदार की डोली के केदारनाथ धाम पहुंचने के बाद मंदिर के कपाट तो खोले जाते हैं, लेकिन केदारनाथ की आरती और भोग तब तक नहीं लगता है जब तक भैरवाथ के कपाट न खोले जाएं.

भैरवनाथ की पूजा का रहस्य

भैरवनाथ भगवान के कपाट सिर्फ मंगलवार या फिर शनिवार को ही खोले जाते हैं. केदारनाथ के मुख्य पुजारी की ओर से ही भैरवनाथ की पूजा-अर्चना की जाती है. जब भैरवनाथ भगवान के कपाट खोले जाते हैं, उसके बाद ही भगवान केदारनाथ की आरती, श्रृंगार और भोग लगता है. इसके अलावा केदारनाथ धाम के कपाट बंद करने से पहले भगवान भैरवनाथ के कपाट बंद किए जाते हैं.

केदारनाथ के क्षेत्ररक्षक भैरवनाथ का कोई मंदिर नहीं है. यहां पर खुले आसमान में भगवान की मूर्तियां और शिला स्थापित हैं. केदारनाथ के मुख्य पुजारी बांगेश लिंग ने बताया कि जिस प्रकार केदारनाथ भगवान के दर्शन का अपना अलग महत्व है. ठीक उसी तरह भैरवनाथ के दर्शनों का भी है. यह एक सिद्ध स्थल है. केदारनाथ धाम में इतनी बड़ी आपदा आई थी, लेकिन भैरवनाथ को कहीं भी कोई नुकसान नहीं पहुंचा था, बल्कि भैरव बाबा ने आपदा आने का संकेत पहले से दे दिया था.

पुजारी के अनुसार जब भैरवनाथ की पूजा होती है तो हिमालय से हवाएं चलती हैं और अचानक से केदारनाथ धाम का मौसम बदल जाता है. केदारनाथ की पूजा अर्चना करने से पहले भगवान भैरवनाथ की पूजा-अर्चना होती है और भोग लगता है. उन्होंने कहा कि अष्ट भैरव के रूप में भैरवनाथ की पूजा-अर्चना की जाती है. इस स्थान पर योग ध्यान करने से सिद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है.

पढ़ें: बागेश्वर में हुई भव्य सरयू आरती, दीयों की रोशनी से जगमगाई बागनाथ की नगरी

भैरवनाथ ऊंचाई वाले स्थान पर बसे हुए हैं. भैरवनाथ मंदिर से हिमालय के साथ ही सम्पूर्ण केदारनगरी का मनमोहन दृश्य देखा जा सकता है. केदारनाथ धाम में सरस्वती नदी को पार करने के बाद आधा किमी की दूरी पर भगवान भैरवनाथ विराजते हैं. प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में भक्त भैरवनाथ की पूजा-अर्चना के लिये पहुंचते हैं.

रुद्रप्रयाग: केदारनाथ आने वाले भक्त अक्सर बाबा केदार की ही पूजा-अर्चना करते हैं, लेकिन अधिकांश भक्तों को यह पता नहीं है कि केदार बाबा की पूजा-अर्चना से पहले केदारनाथ के क्षेत्र रक्षक भैरवनाथ की पूजा का विधान है. केदारनाथ धाम से आधा किमी दूर स्थिति भैरव बाबा के कपाट जब तक नहीं खुलते हैं, तब तक केदार बाबा की आरती नहीं होती है और न ही भोग लगता है. जब केदारनाथ धाम के कपाट बंद होते हैं और केदारनाथ में कोई नहीं रहता है तो भैरवनाथ ही सम्पूर्ण केदारनगरी की रक्षा करते हैं.

बता दें कि, केदारनाथ मंदिर से आधा किमी की दूरी पर प्रसिद्ध भैरवनाथ का मंदिर स्थित है. केदारनाथ जाने वाले अधिकांश श्रद्धालु भैरवनाथ के दर्शनों को भी जाते हैं. केदारनाथ भगवान की पूजा-अर्चना से पहले भगवान भैरवनाथ की पूजा का विधान है. भगवान केदारनाथ के शीतकालीन गददीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ से जब बाबा केदार की पंचमुखी चल विग्रह उत्सह डोली केदारनाथ धाम के लिए रवाना होती है तो उससे एक दिन पूर्व भगवान भैरवनाथ की पूजा-अर्चना की जाती है. भगवान केदार की डोली के केदारनाथ धाम पहुंचने के बाद मंदिर के कपाट तो खोले जाते हैं, लेकिन केदारनाथ की आरती और भोग तब तक नहीं लगता है जब तक भैरवाथ के कपाट न खोले जाएं.

भैरवनाथ की पूजा का रहस्य

भैरवनाथ भगवान के कपाट सिर्फ मंगलवार या फिर शनिवार को ही खोले जाते हैं. केदारनाथ के मुख्य पुजारी की ओर से ही भैरवनाथ की पूजा-अर्चना की जाती है. जब भैरवनाथ भगवान के कपाट खोले जाते हैं, उसके बाद ही भगवान केदारनाथ की आरती, श्रृंगार और भोग लगता है. इसके अलावा केदारनाथ धाम के कपाट बंद करने से पहले भगवान भैरवनाथ के कपाट बंद किए जाते हैं.

केदारनाथ के क्षेत्ररक्षक भैरवनाथ का कोई मंदिर नहीं है. यहां पर खुले आसमान में भगवान की मूर्तियां और शिला स्थापित हैं. केदारनाथ के मुख्य पुजारी बांगेश लिंग ने बताया कि जिस प्रकार केदारनाथ भगवान के दर्शन का अपना अलग महत्व है. ठीक उसी तरह भैरवनाथ के दर्शनों का भी है. यह एक सिद्ध स्थल है. केदारनाथ धाम में इतनी बड़ी आपदा आई थी, लेकिन भैरवनाथ को कहीं भी कोई नुकसान नहीं पहुंचा था, बल्कि भैरव बाबा ने आपदा आने का संकेत पहले से दे दिया था.

पुजारी के अनुसार जब भैरवनाथ की पूजा होती है तो हिमालय से हवाएं चलती हैं और अचानक से केदारनाथ धाम का मौसम बदल जाता है. केदारनाथ की पूजा अर्चना करने से पहले भगवान भैरवनाथ की पूजा-अर्चना होती है और भोग लगता है. उन्होंने कहा कि अष्ट भैरव के रूप में भैरवनाथ की पूजा-अर्चना की जाती है. इस स्थान पर योग ध्यान करने से सिद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है.

पढ़ें: बागेश्वर में हुई भव्य सरयू आरती, दीयों की रोशनी से जगमगाई बागनाथ की नगरी

भैरवनाथ ऊंचाई वाले स्थान पर बसे हुए हैं. भैरवनाथ मंदिर से हिमालय के साथ ही सम्पूर्ण केदारनगरी का मनमोहन दृश्य देखा जा सकता है. केदारनाथ धाम में सरस्वती नदी को पार करने के बाद आधा किमी की दूरी पर भगवान भैरवनाथ विराजते हैं. प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में भक्त भैरवनाथ की पूजा-अर्चना के लिये पहुंचते हैं.

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