रूद्रप्रयाग: केदारनाथ यात्रा शुरू होने में कुछ ही दिन शेष रह गए हैं. इस यात्रा से कई लोगों का रोजगार भी जुड़ा होता है. लिहाजा, श्रद्धालुओं के अलावा यात्रा से रोजी-रोटी कमाने वालों को भी हर साल इस यात्रा का बेसब्री से इंतजार रहता है. जहां यात्रामार्ग पर पड़ने वाले होटल, लॉज और ढाबे यात्रा के दिनों में गुलजार रहते हैं. वहीं, बाबा केदार की यात्रा में डंडी कंडी और घोड़ा खच्चरों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है.
बता दें कि गौरीकुंड से केदारनाथ धाम की कुल दूरी 19 किमी है. जो श्रद्धालु ये दूरी पैदल तय नहीं कर पाते, उनके लिए ये घोड़े-खच्चर किसी संजीवनी से कम नहीं हैं. इन घोड़े-खच्चरों के बूते ही श्रद्धालु बाबा केदार के दर्शन कर पाते है. वहीं, इन घोड़े-खच्चरों के संचालन से स्थानीय लोगों के अलावा बाहरी राज्यों से आए लोग अपनी आजीविका को मजबूत करते हैं और हर साल इस यात्रा से उन्हें करोड़ों का मुनाफा होता है.
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जानकारी के मुताबिक, पिछले यात्रा सीजन में 7 लाख 53 हजार तीर्थयात्री बाबा केदार के दरबार में पहुंचे थे. जिनमें 2 लाख 25 हजार से अधिक तीर्थयात्रियों ने घोड़े-खच्चरों से यात्रा की और संचालकों ने 45 करोड़ से अधिक की कमाई की. इससे सरकार को भी 3.50 करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ था.
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केदारनाथ यात्रा में उत्तराखंड के चमोली, उत्तरकाशी, टिहरी, पौड़ी जिले के अलावा अन्य राज्य जैसे उत्तर प्रदेश और हिमाचल से भी घोड़ा-खच्चर संचालक यात्रा के दौरान रोजगार के लिए केदारघाटी आते हैं और कई महीने तक चलने वाली इस यात्रा में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं.
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वहीं, इन घोड़े-खच्चरों की देखभाल के लिए जगह-जगह पर पशु चिकित्सकों की टीमें भी मौजूद रहती है. जो यात्रा के दौरान चोटिल हुए पशुओं का इलाज करती है. क्योंकि घोड़ा-खच्चरों को अचानक मौसम में हुए बदलाव के कारण निमोनिया का ज्यादा खतरा रहता है. जो एक संक्रामक बीमारी का रूप धारण कर लेती है और अन्य पशुओं के लिए एक मुसीबत बन जाती है. जबकि, इस बार जिला प्रशासन और पशुपालन विभाग ने अलग-अलग जगहों से आने वाले घोड़ा खच्चरों के चेकअप व रजिस्ट्रेशन के लिए अलग-अलग काउंटर बनाए हैं.