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जाख देवता ने दहकते अंगारों पर किया नृत्य, वीडियो देख दांतों तले दबा लेंगे अंगुली - सांस्कृतिक परम्परा

हर साल बैशाखी के दूसरे दिन यानी 15 अप्रैल के दिन केदारघाटी के गुप्तकाशी के जाखधार में जाख मेले का आयोजन किया जाता है. आस्थावान लोगों के लिए यह मेला काफी महत्वपूर्ण होता है.

जाख मेला.
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Published : Apr 15, 2019, 8:36 PM IST

रुद्रप्रयाग: देवभूमि उत्तराखंड में आज भी देव शक्ति के अलौकिक दर्शन होते हैं. इसका जीता जागता प्रमाण है केदारघाटी का जाख मेला. जहां नर रूप में जाखराजा लगभग आधे घंटे तक दहकते लाल अंगारों पर नृत्य कर भक्तों को अपना आशीर्वाद देते हैं. यह मेला सांस्कृतिक परम्पराओं एवं धार्मिक भावनाओं से जुड़ा है. जिसके कारण हजारों की संख्या में भक्त यहां जाखराजा के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं. जाखराजा मेले की ये परम्परा यहां सदियों से चली आ रही है.

जाख मेला.


हर साल बैशाखी के दूसरे दिन यानी 15 अप्रैल के दिन केदारघाटी के गुप्तकाशी के जाखधार में जाख मेले का आयोजन किया जाता है. आस्थावान लोगों के लिए यह मेला काफी महत्वपूर्ण होता है. मेले में कोठेड़ा, नारायकोटी व देवशाल के ग्रामीणों की महत्वपूर्ण भागीदारी होती है. इसके अलावा बणसू, सांकरी, देवर, ह्यूण, नाला, रुद्रपुर, गुप्तकाशी, गडतरा, सेमी-भैंसारी समेत कई गांवों के ग्रामीण मेले को सफल बनाने के लिए अपना योगदान देते हैं. इस मेले से केदारघाटी के साथ ही अन्य हजारों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है.


मेला शुरू होने से दो दिन पहले ही कोठेड़ा और नारायणकोटी के भक्तजन बड़ी संख्या में पौराणिक परम्परानुसार नंगे पांव, सिर पर टोपी और कमर में कपड़ा बांधकर लकड़ियां, पूजा व खाद्य सामग्री एकत्रित करने में जुट जाते हैं. इस बैशाखी पर जाख मंदिर में लगभग अस्सी कुन्तल लकड़ियों से अग्निकुंड तैयार किया गया. नारायणकोटी व कोठेडा के ग्रामीणों ने जागरण कर जाख देवता के नृत्य के लिए दहकते लाल अंगारें तैयार किए. ढोल दमाऊ की थाप पर नर रूप में जाखराजा ने अवतरित होकर लाल दहकते अंगारों पर लगभग आधे घंटे तक नृत्य कर भक्तों को आशीर्वाद दिया. इस दौरान देवभूमि की इस अलौकिक शक्ति के दर्शन करने के लिए दूर दराज क्षेत्रों से लोग बड़ी संख्या में पहुंचे.


केदारघाटी में लगने वाला ये जाख मेला क्षेत्र की धार्मिक एवं सांस्कृतिक परम्पराओं से जुड़ा मेला है. इस मेले में हर साल हजारों लोग पहुंचकर जाखराजा का आशीर्वाद लेते हैं. सदियों से चले आ रहे इस ऐतिहासिक मेले को अभी तक सरकारी एवं पर्यटन के स्तर पर कोई विशिष्ट पहचान नहीं मिल सकी है.

रुद्रप्रयाग: देवभूमि उत्तराखंड में आज भी देव शक्ति के अलौकिक दर्शन होते हैं. इसका जीता जागता प्रमाण है केदारघाटी का जाख मेला. जहां नर रूप में जाखराजा लगभग आधे घंटे तक दहकते लाल अंगारों पर नृत्य कर भक्तों को अपना आशीर्वाद देते हैं. यह मेला सांस्कृतिक परम्पराओं एवं धार्मिक भावनाओं से जुड़ा है. जिसके कारण हजारों की संख्या में भक्त यहां जाखराजा के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं. जाखराजा मेले की ये परम्परा यहां सदियों से चली आ रही है.

जाख मेला.


हर साल बैशाखी के दूसरे दिन यानी 15 अप्रैल के दिन केदारघाटी के गुप्तकाशी के जाखधार में जाख मेले का आयोजन किया जाता है. आस्थावान लोगों के लिए यह मेला काफी महत्वपूर्ण होता है. मेले में कोठेड़ा, नारायकोटी व देवशाल के ग्रामीणों की महत्वपूर्ण भागीदारी होती है. इसके अलावा बणसू, सांकरी, देवर, ह्यूण, नाला, रुद्रपुर, गुप्तकाशी, गडतरा, सेमी-भैंसारी समेत कई गांवों के ग्रामीण मेले को सफल बनाने के लिए अपना योगदान देते हैं. इस मेले से केदारघाटी के साथ ही अन्य हजारों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है.


मेला शुरू होने से दो दिन पहले ही कोठेड़ा और नारायणकोटी के भक्तजन बड़ी संख्या में पौराणिक परम्परानुसार नंगे पांव, सिर पर टोपी और कमर में कपड़ा बांधकर लकड़ियां, पूजा व खाद्य सामग्री एकत्रित करने में जुट जाते हैं. इस बैशाखी पर जाख मंदिर में लगभग अस्सी कुन्तल लकड़ियों से अग्निकुंड तैयार किया गया. नारायणकोटी व कोठेडा के ग्रामीणों ने जागरण कर जाख देवता के नृत्य के लिए दहकते लाल अंगारें तैयार किए. ढोल दमाऊ की थाप पर नर रूप में जाखराजा ने अवतरित होकर लाल दहकते अंगारों पर लगभग आधे घंटे तक नृत्य कर भक्तों को आशीर्वाद दिया. इस दौरान देवभूमि की इस अलौकिक शक्ति के दर्शन करने के लिए दूर दराज क्षेत्रों से लोग बड़ी संख्या में पहुंचे.


केदारघाटी में लगने वाला ये जाख मेला क्षेत्र की धार्मिक एवं सांस्कृतिक परम्पराओं से जुड़ा मेला है. इस मेले में हर साल हजारों लोग पहुंचकर जाखराजा का आशीर्वाद लेते हैं. सदियों से चले आ रहे इस ऐतिहासिक मेले को अभी तक सरकारी एवं पर्यटन के स्तर पर कोई विशिष्ट पहचान नहीं मिल सकी है.



केदारघाटी के जाखधार में पूजे जाते हैं जाख देवता 
दहकते अंगारों में नृत्य करते हैं जाखराजा, धार्मिक भावनाओं से जुड़ा है यह मेला 
उत्तराखण्ड डेस्क
स्लग- जाखराजा
रिपोर्ट - रोहित डिमरी/15 अप्रैल 2019/रुद्रप्रयाग/एवीबी
एंकर - रुद्रप्रयाग- देवभूमि उत्तराखंड में आज भी देव शक्ति के अलौकिक दर्शन होते है। इसका जीगता जागता प्रमाण है केदारघाटी का जाख मेला है। जहां नर रूप में जाखराजा लगभग आधे घंटे तक दहकते लाल अंगारों के बीच नृत्य कर भक्तों को अपना आशीष देते हैं। यह मेला सांस्कृतिक परम्पराओं एवं धार्मिक भावनाओं से जुड़ा होने से यहां प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में आस्थावान भक्तजन जाखराजा के दर्शनों का पहुंचते हैं। यह परम्परा सदियों से चली आ रही है। वहीं सरकारी स्तर की बात करें तो जाख मेले को कोई विशिष्ट पहचान नहीं मिल सकी है। 
वीओ -1- प्रतिवर्ष बैशाखी पर्व के दूसरे दिन यानी 15 अप्रैल आज के दिन केदारघाटी के गुप्तकाशी जाखधार में जाख मेले का आयोजन किया जाता है। इस दिन आस्थावान लोगों के लिए यह मेला काफी महत्वपूर्ण होता है। मेले में कोठेडा, नारायकोटी व देवशाल के ग्रामीणों की महत्वपूर्ण भागीदारी रही। इसके अलावा बणसू, सांकरी, देवर, ह्यूण, नाला, रुद्रपुर, गुप्तकाशी, गडतरा, सेमी-भैंसारी समेत कई गांवों के ग्रामीणों ने मेले को सफल बनाने में अपना पूर्ण सहयोग किया। मेले से केदारघाटी के साथ ही अन्य हजारों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। मेला शुरु होने से दो दिन पहले ही कोठेडा व नारायणकोटी के भक्तजन बड़ी संख्या में पौराणिक परम्परानुसार नंगे पांव, सिर में टोपी और कमर में कपड़ा बांधकर लकडियां, पूजा व खाद्य सामग्री एकत्रित करने में जुट गये थे। बैसाखी पर्व पर जाख मंदिर जाखधार में लगभग अस्सी कुन्तल लकडियां तैयार अग्निकुंड तैयार किया गया। नारायणकोटी व कोठेडा के ग्रामीणों ने रात्रिभर जागरण कर जाख देवता के नृत्य के लिए दहकते लाल अंगारें तैयार किए। ढोल दमाऊ की थाप पर नर रूप में जाखराजा अवतरित होकर लाल दहकते अंगारों पर लगभग आधे घंटे तक नृत्य कर भक्तों को आशीर्वाद दिया। इस दौरान देवभूमि की इस अलौकिक शक्ति के दर्शन करने के लिए दूर दराज क्षेत्रों से भक्तजन बड़ी संख्या में पहुंचें और भगवान के पैरों की राख को प्रसाद के रूप में अपने घरों को ले गए। 
बाइट - उपासना सेमवाल, श्रद्धालु, 
बाइट - विपिन प्रसाद, श्रद्धालु
बाइट - पुजारी 
फाइनल - जाख मेला क्षेत्र की धार्मिक एवं सांस्कृतिक परम्पराओं से जुड़ा मेला है। मेले में प्रतिवर्ष आस्थावान भक्त बड़ी संख्या में पहुंचकर जाखराजा का आशीर्वाद लेते हैं। सदियों से चले आ रहे मेले को अभी तक सरकारी एवं पर्यटन के स्तर पर कोई विशिष्ट पहचान नहीं मिल सकी है। जिससे देश-विदेश के लोग भी इस अलौकिक शक्ति के दर्शनों को पहुंच पाते है। यदि मेले का प्रचार प्रसार हो तो, देश-विदेश से भी लोग इस मेले में पहुंच सकते हैं। 



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