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अपने मायके पहुंची हरियाली देवी, इस पल के साक्षी बने हजारों श्रद्धालु

हर साल की तरह इस बार भी सिद्धपीठ हरियाली देवी की यात्रा का आगाज छोटी दीपावली से एक दिन पहले किया गया. हरियाल पर्वत पहुंचकर पुरोहितों ने हरियाली देवी की पूजा-अर्चना की. इस दौरान हजारों की संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे.

दीपावली से पहले निकली हरियाली देवी की भव्य यात्रा
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Published : Oct 26, 2019, 8:03 PM IST

रुद्रप्रयागः रानीगढ़ पट्टी के जसोली गांव स्थित सिद्धपीठ हरियाली देवी की ऐतिहासिक कांठा यात्रा दीपावली से एक दिन पूर्व रात्रि को निकाली गई. इस अवसर पर हरियाली देवी की डोली को फूल-मालाओं से सजाया गया. रजत प्रतिमा के साथ बीती शाम मां हरियाली देवी जसोली मंदिर से अपने मायके (हरियाल पर्वत) की ओर रवाना हुई और सुबह पर्वत पर पहुंची. ये यात्रा रात के समय की जाती है, इस यात्रा में हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए.

दीपावली से पहले निकाली गई हरियाली देवी की भव्य यात्रा

जसोली गांव की स्थानीय महिलाओं ने मांगलिक गायनों के साथ हरियाली देवी की डोली को नम आखों से हरियाल पर्वत की ओर विदा किया. ढोल-नगाड़ों और हजारों श्रद्धालुओं की मौजूदगी में जसोली गांव से हरियाली देवी की डोली रवाना हुई. हरियाल पर्वत मां हरियाली देवी का मूल उत्पत्ति स्थान है, जिसको देवी का मायका माना जाता है.

ये भी पढ़ेंःविश्व का इकलौता मंदिर, जहां अकेले विराजे हैं राजाराम, आजानुभुज रूप में देते हैं भक्तों को दर्शन

वहीं, मूल मायका होने के कारण साल में एक बार दीपावली पर्व पर मां हरियाली की डोली को हरियाल पर्वत ले जाने की यह पौराणिक परंपरा है. जिसको हरियाली देवी कांठा यात्रा का स्वरूप दिया गया है. यात्रा के दौरान देवी के धर्म भाई हीत और लाटू के प्रतीकों ने हरियाली देवी डोली की अगुआई की.

देश की यह एक मात्र ऐतिहासिक देव यात्रा है जो रात के पहर में की जाती है. जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने मां हरियाली की डोली के साथ जसोली गांव से दस किलोमीटर पैदल चलकर हरियाली के घने वनों के बीच से होकर सुबह पांच बजे हरियाल पर्वत देवी के मायके मूल मंदिर में पहुंचे.

इस दौरान देवी के मायके पाबो गांव के लोगों ने डोली का भव्य स्वागत कर देवी को हरियाल पर्वत मंदिर में विराजमान किया. जिसके पश्चात देवी के पुरोहितों द्वारा वेद मंत्रो के साथ पूजा-अर्चना की गई और गाय के दूध से निर्मित खीर से देवी को भोग लगाया गया. पूजा अर्चना समाप्त होने के पश्चात् देवी के हवन कुण्ड में भव्य हवन का आयोजन किया गया.

रुद्रप्रयागः रानीगढ़ पट्टी के जसोली गांव स्थित सिद्धपीठ हरियाली देवी की ऐतिहासिक कांठा यात्रा दीपावली से एक दिन पूर्व रात्रि को निकाली गई. इस अवसर पर हरियाली देवी की डोली को फूल-मालाओं से सजाया गया. रजत प्रतिमा के साथ बीती शाम मां हरियाली देवी जसोली मंदिर से अपने मायके (हरियाल पर्वत) की ओर रवाना हुई और सुबह पर्वत पर पहुंची. ये यात्रा रात के समय की जाती है, इस यात्रा में हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए.

दीपावली से पहले निकाली गई हरियाली देवी की भव्य यात्रा

जसोली गांव की स्थानीय महिलाओं ने मांगलिक गायनों के साथ हरियाली देवी की डोली को नम आखों से हरियाल पर्वत की ओर विदा किया. ढोल-नगाड़ों और हजारों श्रद्धालुओं की मौजूदगी में जसोली गांव से हरियाली देवी की डोली रवाना हुई. हरियाल पर्वत मां हरियाली देवी का मूल उत्पत्ति स्थान है, जिसको देवी का मायका माना जाता है.

ये भी पढ़ेंःविश्व का इकलौता मंदिर, जहां अकेले विराजे हैं राजाराम, आजानुभुज रूप में देते हैं भक्तों को दर्शन

वहीं, मूल मायका होने के कारण साल में एक बार दीपावली पर्व पर मां हरियाली की डोली को हरियाल पर्वत ले जाने की यह पौराणिक परंपरा है. जिसको हरियाली देवी कांठा यात्रा का स्वरूप दिया गया है. यात्रा के दौरान देवी के धर्म भाई हीत और लाटू के प्रतीकों ने हरियाली देवी डोली की अगुआई की.

देश की यह एक मात्र ऐतिहासिक देव यात्रा है जो रात के पहर में की जाती है. जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने मां हरियाली की डोली के साथ जसोली गांव से दस किलोमीटर पैदल चलकर हरियाली के घने वनों के बीच से होकर सुबह पांच बजे हरियाल पर्वत देवी के मायके मूल मंदिर में पहुंचे.

इस दौरान देवी के मायके पाबो गांव के लोगों ने डोली का भव्य स्वागत कर देवी को हरियाल पर्वत मंदिर में विराजमान किया. जिसके पश्चात देवी के पुरोहितों द्वारा वेद मंत्रो के साथ पूजा-अर्चना की गई और गाय के दूध से निर्मित खीर से देवी को भोग लगाया गया. पूजा अर्चना समाप्त होने के पश्चात् देवी के हवन कुण्ड में भव्य हवन का आयोजन किया गया.

Intro:ऐतिहासिक हरियाली देवी यात्रा का हुआ आगाज
दीपावली पर्व से एक दिन पूर्व रात्रि को निकाली गई यात्रा
हजारों भक्तों ने लिया यात्रा में भाग
तामसी भोजन न करने वाले भक्तों ने की यात्रा
योगमाया का बाल स्वरूप है हरियाली देवी
108 गायत्री तथा देवी मंत्रों के साथ आहुति देकर यात्रा का हुआ समापन
रुद्रप्रयाग। रानीगढ़ पट्टी के जसोली गांव स्थित सिद्धपीठ हरियाली देवी की ऐतिहासिक कांठा यात्रा दीपावली से एक दिन पूर्व रात्रि को निकाली गई। इस अवसर पर हरियाली देवी की डोली को फूल-मालाओं से सजाया गया और रजत प्रतिमा के साथ शाम साढ़े छः बजे जसोली मंदिर से मां हरियाली देवी के मायके हरियाल पर्वत के लिए यात्रा रवाना किया जाएगा। यह यात्रा रात के समय की गई, जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। Body:वीओ -1- हर वर्ष की भांति इस बार भी सिद्धपीठ हरियाली देवी की यात्रा का आगाज दीपावली से एक दिन पूर्व किया गया। यात्रा को लेकर स्थानीय ग्रामीणों से लेकर प्रवासियों में खासा उत्साह देखा गया। हरियाली देवी योगमाया का बालस्वरूप है जो कि शुद्ध स्वरूप में वैष्णवी है। यात्रा में जसोली गांव की स्थानीय महिलाओं द्वारा मांगलिक गायनों के साथ हरियाली देवी की डोली को नम आखों से हरियाली पर्वत की ओर विदा किया गया। ढोल नगाड़ो तथा शंख की ध्वनि के साथ हजारों श्रद्धालुओ की मौजूदगी में जसोली गांव से हरियाली देवी की डोली हरियाल पर्वत की ओर रवाना हुई। हरियाल पर्वत मां हरियाली देवी का मूल उत्पत्ति स्थान है, जिसको देवी का मायका माना जाता है।
मूल मायका होने के कारण साल में एक बार दीपावली पर्व पर मां हरियाली की डोली को हरियाल पर्वत ले जाने की यह पौराणिक परंपरा है, जिसको हरियाली देवी कांठा यात्रा का स्वरूप दिया गया है। यात्रा के दौरान देवी के धर्म भाई हीत और लाटू के निशान हरियाली देवी डोली की अगवाई की। देश की यह एक मात्र ऐतिहासिक देव यात्रा है जो रात के पहर में की जाती है। जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने मां हरियाली की डोली के साथ जसोली गांव से दस किमी पैदल चलकर हरियाली के घने वनों के बीच से होकर अगले दिन सुबह पांच बजे हरियाल पर्वत देवी के मायके मूल मंदिर में पहुंचे। जंहा पर देवी के मायके पाबो गांव के लोगों ने डोली का भव्य स्वागत कर देवी को हरियाल पर्वत मंदिर में विराजमान किया। जिसके पश्चात् देवी के पुरोहितों द्वारा वेद मंत्रो के साथ पूजा-अर्चना की गई और गाय के दूध से निर्मित खीर का देवी को भोग लगाया गया। पूजा अर्चना समाप्त होने के पश्चात् देवी के हवन कुण्ड में भव्य हवन का आयोजन किया गया, जिसमें 108 गायत्री तथा देवी मंत्रों के साथ आहुति दी जाती है और हवन समाप्त होने के बाद सभी भक्तों को प्रसाद देकर ठीक दस बजे देवी की डोली को पुुनः जसोली लिए रवाना की गई।
बाइट - महेश डियूंडी, श्रद्धालु
बाइट - सुरेश सिंह, स्थानीय ग्रामीण Conclusion:
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