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भोटिया जनजाति की लोककथा पर ऐसे बनाई 'पाताल ती' फिल्म, अब फलक पर छाए रुद्रप्रयाग के युवा - रुद्रप्रयाग ताजा खबर

Short Film Pataal Tee उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के होनहारों ने अपनी क्रिएटिविटी से कमाल दिखाया और 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में छा गए. शॉर्ट फिल्म 'पाताल ती' को बेस्ट सिनेमैटोग्राफी में राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. इस फिल्म को बनाने के लिए 8 युवाओं की टीम ने 20 दिनों तक पसीने बहाए. करीब 300 किमी की यात्राएं की. साथ ही 14 हजार से 17 हजार फीट की ऊंचाई पर जाकर सीन फिल्माए. तब जाकर यह फिल्म बन पाई.

Short Film Pataal Tee
पाताल ती
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Oct 20, 2023, 11:00 PM IST

Updated : Oct 20, 2023, 11:10 PM IST

'पाताल ती' फिल्म को मिला बेस्ट सिनेमैटोग्राफी का अवॉर्ड

रुद्रप्रयागः हाल ही में राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में शॉर्ट फिल्मों की श्रेणी में 'पाताल ती' फिल्म के सिनेमैटोग्राफर बिट्टू रावत उर्फ सतीश कुमार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सम्मानित किया था. बिट्टू रावत ने बारीकी और बेहतरीन तरीके से तमाम शॉटों को फिल्माए. भोटिया जनजाति की एक लोक कथा को आधार बनाकर बनाई गई इस फिल्म ने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में अपना डंका बजाया.

बुसान फिल्म फेस्टिवल में पहली बार नामित हुई उत्तराखंड की फिल्मः दरअसल, रुद्रप्रयाग के चोपता जाखणी निवासी युवा फोटोग्राफर बिट्टू रावत 'पाताल ती' शाॅर्ट फिल्म के सिनेमैटोग्राफर हैं. प्रोडक्शन हाउस स्टूडियो यूके 13 के बैनर तले संतोष रावत और मुकुंद नारायण जब अपनी इस पहली ही फिल्म को लेकर बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल पहुंचे तो यह उनके लिए सपना जैसा अलग ही अनुभव था. क्योंकि, 39वें बुसान फिल्म फेस्टिवल में उत्तराखंड से पहली बार कोई फिल्म नामित हुई थी.

Pataal Tee Film
सिनेमैटोग्राफर बिट्टू रावत

गुनाऊं ग्राम पंचायत के कोयलपुर कस्बे के युवक दिव्यांशु रौतेला ने भी फिल्म में असिस्टेंट सिनेमैटोग्राफर के रूप में काम किया है. राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल से पहले पाताल ती को बुसान में दुनिया के 111 देशों से आई 2548 फिल्मों में से चयनित 40 शार्ट फिल्मों को दिखाने के लिए 14वें स्थान पर चुना गया था.

इसके बाद इस फिल्म को इतावली प्रीमियर 28वें डेल्ला लेसिनिआ फिल्म फेस्टिवल के लिए चुना गया. जहां पाताल ती ने 10 फिल्मों में अपनी जगह बनाकर एक नई उम्मीद पैदा की. इसके बाद 53वें इफ्फी गोवा फिल्म फेस्टिवल में इंडियन पैनोरमा के नॉन फिक्शन कैटेगरी में फिल्म का प्रदर्शन हुआ तो मानों टीम को अपनी मेहनत की सार्थकता पर गर्व हुआ.
ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड की 'पाताल ती' और 'एक था गांव' फिल्मों को मिले अवॉर्ड, राष्ट्रपति ने निर्देशक सृष्टि लखेड़ा को सराहा

पाताल ती के अर्थ को जानिएः 'पाताल ती' फिल्म की कहानी के बारे में बात करते हुए फिल्म के लेखक और निर्देशक दशज्यूला पट्टी के क्यूड़ी गांव निवासी संतोष रावत ने बताया कि यह फिल्म भोटिया जनजाति की एक लोक कथा को आधार बनाकर फिल्माई गई है. पाताल ती नाम का क्या अर्थ है? के बारे में संतोष रावत ने बताया कि भोटिया भाषा में पाताल ती का अर्थ होता है पवित्र जल. यह तीन पीढ़ी के लोगों की अपनी सांस्कृतिक मान्यताओं, आस्था, विश्वास और समर्पण की कहानी है.

Short Film Pataal Tee
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों पुरस्कार लेते बिट्टू रावत

कलाकारों की बिना संवाद की अदाकारी ने दिखाया कमालः वहीं, फिल्म के एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर गजेंद्र रौतेला ने पाताल ती के बारे में बताया कि फिल्म में एक पोता अपने दादा के जीवन के अंतिम समय में उनकी हिमालय के एक पवित्र तालाब से पवित्र जल पीने की इच्छा करना और पोते की ओर से दादा की ख्वाहिश को पूरा करने की कोशिश, प्रकृति के साथ सहजीविता का संवेदनशील मानवीय संघर्ष इस फिल्म का रहस्य एवं रोमांच है. वे बताते हैं कि पूरी फिल्म में कैमरे का कमाल, प्राकृतिक रोशनी और कलाकारों की बिना संवाद की अदाकारी इसे अद्भुत बनाती है.

रुद्रनाथ की पहाड़ियों पर फिल्माए सीनः सिनेमैटोग्राफर बिट्टू रावत ने बताया कि 2 अक्टूबर 2020 को इस फिल्म का पहला शूट गोपेश्वर के रुद्रनाथ की पहाड़ियों पर फिल्माया गया. इससे पहले टीम ने फिल्म में दिखाए जाने वाले प्राकृतिक दृश्यों की तलाश और चयन के लिए रुद्रप्रयाग के चोपता, बनियाकुंड, सारी, देवरिया ताल, मनसूना, राऊंलैंक, गौंडार समेत गोपेश्वर, मंडल, रुद्रनाथ, नीति, मलारी, कोसा घाटी के विभिन्न क्षेत्रों का भ्रमण किया. आखिर में रुद्रनाथ और नीति घाटी के प्राकृतिक दृश्यों को कहानी की मांग के अनुसार फाइनल किया गया.
ये भी पढ़ेंः 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में उत्तराखंड का जलवा, 'एक था गांव' को मिला बेस्ट नॉन फीचर फिल्म का अवॉर्ड

आठ युवाओं की टीम ने 20 दिन में किया कामः पाताल ती फिल्म को बनाने के लिए 8 युवाओं की टीम ने 20 दिनों तक मेहनत और 300 किमी की यात्रा की. इसके साथ ही 14 हजार से 17 हजार फीट की ऊंचाई पर फिल्माए गए दृश्यों ने फिल्म को जीवंत बनाते हुए पाताल ती को वो पहली फिल्म बनाया, जिसे राष्ट्रीय सिनेमा में महत्व दिया गया.

Pataal Tee Film
पाताल ती को राष्ट्रीय पुरस्कार

थिएटर से बाहर निकले तो खुशी का ठिकाना ना रहाः फिल्म के निर्देशक संतोष रावत ने बताया कि इस साल 19 और 20 अगस्त को जब हिमालयन कल्चरल सेंटर निम्बूवाला के थिएटर से दर्शक पाताल ती देखकर बाहर निकल रहे थे तो उनके चेहरों की खुशी बता रही थी कि उनकी फिल्म की मेहनत जाया नहीं गई है. समीक्षकों और दर्शकों की प्रतिक्रिया से ऐसे लगा कि फिल्म निर्माण के दौरान टीम की ओर से की गई तकलीफों का प्रतिफल मिल गया.

'पाताल ती' फिल्म को मिला बेस्ट सिनेमैटोग्राफी का अवॉर्ड

रुद्रप्रयागः हाल ही में राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में शॉर्ट फिल्मों की श्रेणी में 'पाताल ती' फिल्म के सिनेमैटोग्राफर बिट्टू रावत उर्फ सतीश कुमार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सम्मानित किया था. बिट्टू रावत ने बारीकी और बेहतरीन तरीके से तमाम शॉटों को फिल्माए. भोटिया जनजाति की एक लोक कथा को आधार बनाकर बनाई गई इस फिल्म ने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में अपना डंका बजाया.

बुसान फिल्म फेस्टिवल में पहली बार नामित हुई उत्तराखंड की फिल्मः दरअसल, रुद्रप्रयाग के चोपता जाखणी निवासी युवा फोटोग्राफर बिट्टू रावत 'पाताल ती' शाॅर्ट फिल्म के सिनेमैटोग्राफर हैं. प्रोडक्शन हाउस स्टूडियो यूके 13 के बैनर तले संतोष रावत और मुकुंद नारायण जब अपनी इस पहली ही फिल्म को लेकर बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल पहुंचे तो यह उनके लिए सपना जैसा अलग ही अनुभव था. क्योंकि, 39वें बुसान फिल्म फेस्टिवल में उत्तराखंड से पहली बार कोई फिल्म नामित हुई थी.

Pataal Tee Film
सिनेमैटोग्राफर बिट्टू रावत

गुनाऊं ग्राम पंचायत के कोयलपुर कस्बे के युवक दिव्यांशु रौतेला ने भी फिल्म में असिस्टेंट सिनेमैटोग्राफर के रूप में काम किया है. राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल से पहले पाताल ती को बुसान में दुनिया के 111 देशों से आई 2548 फिल्मों में से चयनित 40 शार्ट फिल्मों को दिखाने के लिए 14वें स्थान पर चुना गया था.

इसके बाद इस फिल्म को इतावली प्रीमियर 28वें डेल्ला लेसिनिआ फिल्म फेस्टिवल के लिए चुना गया. जहां पाताल ती ने 10 फिल्मों में अपनी जगह बनाकर एक नई उम्मीद पैदा की. इसके बाद 53वें इफ्फी गोवा फिल्म फेस्टिवल में इंडियन पैनोरमा के नॉन फिक्शन कैटेगरी में फिल्म का प्रदर्शन हुआ तो मानों टीम को अपनी मेहनत की सार्थकता पर गर्व हुआ.
ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड की 'पाताल ती' और 'एक था गांव' फिल्मों को मिले अवॉर्ड, राष्ट्रपति ने निर्देशक सृष्टि लखेड़ा को सराहा

पाताल ती के अर्थ को जानिएः 'पाताल ती' फिल्म की कहानी के बारे में बात करते हुए फिल्म के लेखक और निर्देशक दशज्यूला पट्टी के क्यूड़ी गांव निवासी संतोष रावत ने बताया कि यह फिल्म भोटिया जनजाति की एक लोक कथा को आधार बनाकर फिल्माई गई है. पाताल ती नाम का क्या अर्थ है? के बारे में संतोष रावत ने बताया कि भोटिया भाषा में पाताल ती का अर्थ होता है पवित्र जल. यह तीन पीढ़ी के लोगों की अपनी सांस्कृतिक मान्यताओं, आस्था, विश्वास और समर्पण की कहानी है.

Short Film Pataal Tee
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों पुरस्कार लेते बिट्टू रावत

कलाकारों की बिना संवाद की अदाकारी ने दिखाया कमालः वहीं, फिल्म के एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर गजेंद्र रौतेला ने पाताल ती के बारे में बताया कि फिल्म में एक पोता अपने दादा के जीवन के अंतिम समय में उनकी हिमालय के एक पवित्र तालाब से पवित्र जल पीने की इच्छा करना और पोते की ओर से दादा की ख्वाहिश को पूरा करने की कोशिश, प्रकृति के साथ सहजीविता का संवेदनशील मानवीय संघर्ष इस फिल्म का रहस्य एवं रोमांच है. वे बताते हैं कि पूरी फिल्म में कैमरे का कमाल, प्राकृतिक रोशनी और कलाकारों की बिना संवाद की अदाकारी इसे अद्भुत बनाती है.

रुद्रनाथ की पहाड़ियों पर फिल्माए सीनः सिनेमैटोग्राफर बिट्टू रावत ने बताया कि 2 अक्टूबर 2020 को इस फिल्म का पहला शूट गोपेश्वर के रुद्रनाथ की पहाड़ियों पर फिल्माया गया. इससे पहले टीम ने फिल्म में दिखाए जाने वाले प्राकृतिक दृश्यों की तलाश और चयन के लिए रुद्रप्रयाग के चोपता, बनियाकुंड, सारी, देवरिया ताल, मनसूना, राऊंलैंक, गौंडार समेत गोपेश्वर, मंडल, रुद्रनाथ, नीति, मलारी, कोसा घाटी के विभिन्न क्षेत्रों का भ्रमण किया. आखिर में रुद्रनाथ और नीति घाटी के प्राकृतिक दृश्यों को कहानी की मांग के अनुसार फाइनल किया गया.
ये भी पढ़ेंः 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में उत्तराखंड का जलवा, 'एक था गांव' को मिला बेस्ट नॉन फीचर फिल्म का अवॉर्ड

आठ युवाओं की टीम ने 20 दिन में किया कामः पाताल ती फिल्म को बनाने के लिए 8 युवाओं की टीम ने 20 दिनों तक मेहनत और 300 किमी की यात्रा की. इसके साथ ही 14 हजार से 17 हजार फीट की ऊंचाई पर फिल्माए गए दृश्यों ने फिल्म को जीवंत बनाते हुए पाताल ती को वो पहली फिल्म बनाया, जिसे राष्ट्रीय सिनेमा में महत्व दिया गया.

Pataal Tee Film
पाताल ती को राष्ट्रीय पुरस्कार

थिएटर से बाहर निकले तो खुशी का ठिकाना ना रहाः फिल्म के निर्देशक संतोष रावत ने बताया कि इस साल 19 और 20 अगस्त को जब हिमालयन कल्चरल सेंटर निम्बूवाला के थिएटर से दर्शक पाताल ती देखकर बाहर निकल रहे थे तो उनके चेहरों की खुशी बता रही थी कि उनकी फिल्म की मेहनत जाया नहीं गई है. समीक्षकों और दर्शकों की प्रतिक्रिया से ऐसे लगा कि फिल्म निर्माण के दौरान टीम की ओर से की गई तकलीफों का प्रतिफल मिल गया.

Last Updated : Oct 20, 2023, 11:10 PM IST
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