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धूमधाम से मनाया गया सातू-आठू का पर्व, शिव-पार्वती की उपासना का है विशेष महत्व - सातू-आठू का पर्व

कोरोना संकट के बीच कुमाऊं में सातू-आठू यानि गमारा पर्व मनाया जा रहा है. इस पर्व में शिव-पार्वती की उपासना का विशेष महत्व माना जाता है.

satu aathu festival
सातू-आठू
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Published : Aug 25, 2020, 10:34 PM IST

पिथौरागढ़/बेरीनाग/खटीमा: कुमाऊं में सातू-आठू यानि गमारा पर्व मनाया जा रहा है. शिव-पार्वती की उपासना का ये पर्व खासतौर पर महिलाओं से संबंधित हैं. वहीं, सातू-आठू का ये पर्व भाद महीने की पंचमी से शुरू होता है और पूरे हफ्ते भर चलता है. महिलाएं इस पर्व में शिव-पार्वती के जीवन पर आधारित लोक गीतों पर नाचती-गाती और कीर्तन भजन करती हैं.

सातू-आठू का पर्व.

वैसे तो देवभूमि में कई ऐसे एतिहासिक पर्व मनाये जाते हैं, लेकिन इनमें सबसे खास है शिव-पार्वती की उपासना का पर्व सातूं-आठू. जो कुमाऊं में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. ये पर्व भादौ भाद्रमाह के सप्तमी अष्ठमी को मनाया जाता हैं. मान्यता है कि सप्तमी को मां गौरा अपने मायके से रूठ कर मायके आती हैं. और उन्हें लेने अष्टमी को भगवान महेश आते हैं.

बेरीनाग में सातू-आठू पर्व की धूम.

ऐसे में गांव के सभी लोग सप्तमी अष्ठमी को मां गौरा और भगवान महेश की पूजा करते हैं. सप्तमी को मां गौरा व अष्टमी को भगवान महेश की मूर्ति बनाई जाती है. इस मूर्ति में धतूरा, मक्का, तिल व बाजरा का पौधा लगाकर और सुन्दर वस्त्र पहनाएं जाते हैं. वहीं, सप्तमी की रात को सभी महिलाएं विधि अनुसार पूजा और भजन कीर्तन करती हैं.

ये भी पढ़ेंः जौनपुर के विरोड़ में धूमधाम से मनाया गया जागड़ा पर्व, सोशल डिस्टेंसिंग की उड़ी धज्जियां

झोड़ा- चाचरी के साथ हर्षोल्लास से मनाया जा रहा त्योहार
इस पर्व को महिलाएं बेहद हर्षोल्लास से मानती हैं. महिलाए सातू-आठू पूजा में दो दिन का उपवास रखती हैं. आठो यानी अष्ठमी की सुबह भगवान महेश और मां गौरा को बिरुड़ चढ़ाए जाते हैं. महिलाएं सुंदर गीत गाते हुए मां गौरा को विदा करती हैं. इसके बाद मां गौरा भगवान महेश की मूर्ति को स्थानीय मंदिर में विसर्जित किया जाता हैं. मां गौरा को दीदी व भगवान महेश जीजाजी भी कहा जाता है.

खटीमा में सातू-आठू का पर्व.

वहीं, इस बार कोरोना के कारण इस अवसर को श्रेत्रीय मेलों का आयोजन नहीं हो पाया. ऐसे में लोगों की ओर से घरों में ही इस पर्व को सादगी से मनाया गया और महिलाओं ने झोड़ा-चाचरी नृत्य भी किया.

पिथौरागढ़/बेरीनाग/खटीमा: कुमाऊं में सातू-आठू यानि गमारा पर्व मनाया जा रहा है. शिव-पार्वती की उपासना का ये पर्व खासतौर पर महिलाओं से संबंधित हैं. वहीं, सातू-आठू का ये पर्व भाद महीने की पंचमी से शुरू होता है और पूरे हफ्ते भर चलता है. महिलाएं इस पर्व में शिव-पार्वती के जीवन पर आधारित लोक गीतों पर नाचती-गाती और कीर्तन भजन करती हैं.

सातू-आठू का पर्व.

वैसे तो देवभूमि में कई ऐसे एतिहासिक पर्व मनाये जाते हैं, लेकिन इनमें सबसे खास है शिव-पार्वती की उपासना का पर्व सातूं-आठू. जो कुमाऊं में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. ये पर्व भादौ भाद्रमाह के सप्तमी अष्ठमी को मनाया जाता हैं. मान्यता है कि सप्तमी को मां गौरा अपने मायके से रूठ कर मायके आती हैं. और उन्हें लेने अष्टमी को भगवान महेश आते हैं.

बेरीनाग में सातू-आठू पर्व की धूम.

ऐसे में गांव के सभी लोग सप्तमी अष्ठमी को मां गौरा और भगवान महेश की पूजा करते हैं. सप्तमी को मां गौरा व अष्टमी को भगवान महेश की मूर्ति बनाई जाती है. इस मूर्ति में धतूरा, मक्का, तिल व बाजरा का पौधा लगाकर और सुन्दर वस्त्र पहनाएं जाते हैं. वहीं, सप्तमी की रात को सभी महिलाएं विधि अनुसार पूजा और भजन कीर्तन करती हैं.

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झोड़ा- चाचरी के साथ हर्षोल्लास से मनाया जा रहा त्योहार
इस पर्व को महिलाएं बेहद हर्षोल्लास से मानती हैं. महिलाए सातू-आठू पूजा में दो दिन का उपवास रखती हैं. आठो यानी अष्ठमी की सुबह भगवान महेश और मां गौरा को बिरुड़ चढ़ाए जाते हैं. महिलाएं सुंदर गीत गाते हुए मां गौरा को विदा करती हैं. इसके बाद मां गौरा भगवान महेश की मूर्ति को स्थानीय मंदिर में विसर्जित किया जाता हैं. मां गौरा को दीदी व भगवान महेश जीजाजी भी कहा जाता है.

खटीमा में सातू-आठू का पर्व.

वहीं, इस बार कोरोना के कारण इस अवसर को श्रेत्रीय मेलों का आयोजन नहीं हो पाया. ऐसे में लोगों की ओर से घरों में ही इस पर्व को सादगी से मनाया गया और महिलाओं ने झोड़ा-चाचरी नृत्य भी किया.

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