बेरीनागः नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना बड़े ही विधि-विधान से की जाती है. मां के हर रूप की अलग महिमा भी है. नवरात्रि के सातवें दिन देवी के सप्तम स्वरूप कालरात्रि की पूजा की जाती है. कालरात्रि के मौके पर हम आपको एक ऐसे मंदिर से रूबरू कराते हैं, जो अपने पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है. यह मंदिर है हाट कालिका का. जिसे कुमाऊं रेजिमेंट की आस्था के केंद्र के नाम से जाना जाता है. यह ऐसा शक्तिपीठ है, जहां भारतीय सेना के बड़े.बड़े अफसर भी आते हैं.
वैसे तो देशभर में ऐसे कई शक्तिपीठ हैं, जो किसी न किसी पौराणिक और ऐतिहासिक कारणों से मशहूर हैं, लेकिन हाट कालिका ऐसा मंदिर है, जहां पर भारतीय सेना के बड़े-बड़े अफसर भी आते हैं. ये मंदिर पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट तहसील मुख्यालय में स्थित है. चारों ओर से देवदार के पेड़ों से घिरे हुए हाट कालिका मंदिर की घंटियों से लेकर यहां के धर्मशालाओं में किसी न किसी आर्मी अफसर का नाम मिल जाएगा. क्योंकि, यहां की देवी को कुमाऊं रेजीमेंट आराध्य देवी के रूप में पूजता है. इस मंदिर में सालभर आम लोगों के साथ ही कुमाऊं रेजीमेंट के जवानों और अफसरों की भीड़ लगी रहती है.
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युद्ध में जाने से पहले कुमाऊं रेजीमेंट के जवान काली मां के करते हैं दर्शन
कुमाऊं रेजीमेंट के हाट कालिका से जुड़ाव के बारे में एक दिलचस्प कहानी है. कहा जाता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध यानी 1939-1945 की बात है. जब भारतीय सेना का जहाज डूबने लगा, तब सैन्य अधिकारियों ने जवानों से अपने-अपने भगवान को याद करने का कहा गया. कुमाऊं के सैनिकों ने जैसे ही हाट काली का जयकारा लगाया, वैसे ही जहाज किनारे आ गया. तभी से कुमाऊं रेजीमेंट ने मां काली को आराध्य देवी की मान्यता दे दी. जब भी कुमाऊं रेजीमेंट के जवान युद्ध के लिए जाते हैं तो काली मां के दर्शन के बिना नहीं जाते हैं. हर साल माघ महीने में यहां पर सैनिकों की भीड़ जुटती है.
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आदि गुरु शंकराचार्य हुए थे जड़वत
माना जाता है कि हाट कालिका मंदिर की स्थापना आदि गुरू शंकराचार्य ने किया था. कूर्मांचल के भ्रमण पर निकले आदि गुरु शंकराचार्य महाराज ने जागेश्वर धाम पहुंचने पर गंगोली में किसी देवी का प्रकोप होने की बात सुनी थी. शंकराचार्य के मन में विचार आया कि देवी इस तरह का तांडव नहीं मचा सकती. यह किसी आसुरी शक्ति का काम है. लोगों को राहत दिलाने के उद्देश्य से वो गंगोलीहाट के लिए रवाना हो गए.
बताया जाता है कि जगतगुरु जब मंदिर के 20 मीटर पास में पहुंचे तो वह जड़वत हो गए. लाख चाहने के बाद भी उनके कदम आगे नहीं बढ़ पाए. शंकराचार्य को देवी शक्ति का आभास हो गया. वो देवी से क्षमा याचना करते हुए पुरातन मंदिर तक पहुंचे. पूजा अर्चना के बाद मंत्र शक्ति के बल पर महाकाली के रौद्र रूप को शांत कर शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया और गंगोली क्षेत्र में सुख शांति व्याप्त हो गई.
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कुमाऊं रेजीमेंट के जवानों स्थापित की थी महाकाली की पहली मूर्ति
कुमाऊं रेजीमेंट ने पाकिस्तान के साथ छिड़ी 1971 की लड़ाई के बाद गंगोलीहाट के कनारागांव निवासी सूबेदार शेर सिंह के नेतृत्व में सैन्य टुकड़ी ने इस मंदिर में महाकाली की मूर्ति की स्थापना की थी. कालिका के मंदिर में शक्ति पूजा का विधान है. सेना की ओर से स्थापित यह मूर्ति मंदिर की पहली मूर्ति थी. इसके बाद साल 1994 में कुमाऊं रेजीमेंट ने ही मंदिर में महाकाली की बड़ी मूर्ति चढ़ाई है. कुमाऊं रेजीमेंटल सेंटर रानीखेत के साथ ही रेजीमेंट की बटालियनों में हाट कालिका के मंदिर स्थापित हैं. हाट कालिका की पूजा के लिए सालभर सैन्य अफसरों और जवानों का तांता लगा रहता है.
साल 1971 की लड़ाई में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को धूल चटाया था. 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना के एक लाख जवानों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था. इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. सेना की विजयगाथा में हाट कालिका के नाम से विख्यात गंगोलीहाट के महाकाली मंदिर का भी गहरा नाता रहा है.
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साल 1971 की लड़ाई खत्म होने के बाद कुमाऊं रेजीमेंट ने हाट कालिका के मंदिर में महाकाली की मूर्ति चढ़ाई थी. यह मंदिर में स्थापित पहली मूर्ति थी मंदिर में कुछ साल पहले तक यहां पर लोगों और आर्मी के जवान मन्नत पूरी होने पर अष्टबली जिसमें मेमनों और बकरों की बली दी जाती थी, लेकिन अब यहां पर मेमनों की बलि को बंद कर दिया है. आज भी लोग यहां बकरी को पूजा करते है, लेकिन मंदिर परिसर में बलि नहीं देते है.
हाट कालिका के भक्त आज देश ही नहीं विदेशों में भी है. बीते सात महीने से कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन में यह मंदिर भी पूरी तरह से बंद था. नवरात्रि के दिन मंदिर खुलने से यहां पर फिर से चहल-पहल शुरू हो गई है. यहां पर देश-विदेशों से यहां पर माता के भक्त पहुंचने शुरू हो गए हैं. हाट कालिका आज भी यहां पर साक्षात रूप में भक्तों को दर्शन देती है.वहीं, शारदीय नवरात्रि और चैत के अष्ठमी में यहां पर भव्य मेला लगता है.