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आपदा के 3 साल बाद भी मदद के इंतजार में लोग, जान जोखिम में डालकर जर्जर भवनों में कर रहे गुजर-बसर

30 अक्टूबर 2016 को कनालीछीना के न्वाली गांव में प्रकृति ने इस कदर तांडव मचाया कि कई मकान जमींदोज हो गए तो कुछ की हालत इतनी खराब है कि उनमें रहना खतरे से खाली नहीं है.

आपदा प्रभावितों की नहीं सुन रहा कोई फरियाद.
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Published : Sep 21, 2019, 1:27 PM IST

पिथौरागढ़: सीमांत जिला पिथौरागढ़ में कई गांव आपदा प्रभावित हैं. जिनके लिए सरकार ने वादे तो बहुत किए लेकिन वे पूरे नहीं हुए. जिससे लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जीवन जीने को मजबूर हैं. वहीं आज हम आपको ऐसे गांव से रूबरू कराने जा रहे हैं जो आपदा का दंश झेल चुका है, लेकिन 3 साल बीत जाने के बाद भी कनालीछीना के न्वाली गांव में 8 प्रभावित परिवार ऐसे मकानों में रहने को मजबूर हैं जो किसी भी वक्त जमींदोज हो सकते हैं. जो सरकारी तंत्र की नाकामी की कहानी बयां कर रही है.

आपदा प्रभावितों की नहीं सुन रहा कोई फरियाद.

गौर हो कि 30 अक्टूबर 2016 को कनालीछीना के न्वाली गांव में प्रकृति ने इस कदर तांडव मचाया कि कई मकान जमींदोज हो गए तो कुछ की हालत इतनी खराब है कि उनमें रहना खतरे से खाली नहीं है. अब 3 साल बीतने पर भी 8 प्रभावित परिवार ऐसे मकानों में रहने को मजबूर हैं, जो किसी भी वक्त जमींदोज हो सकते है. सरकारी तंत्र ने प्रभावितों को मदद के नाम पर मात्र 60,000 की राहत तो दी मगर ये राहत ऊंट के मुंह में जीरा साबित हुई. 8 परिवारों के 40 से अधिक सदस्य हर पल मौत के साये में जीने को मजबूर हैं. वहीं आपदा प्रभावित लोगों का कहना है कि वे शासन-प्रशासन से गुहार लगाते-लगाते थक चुके हैं. लेकिन उनकी फरियाद कोई नहीं सुन रहा.

पढ़ें-UPCL ने कैशलेस पेमेंट्स की तरफ बढ़ाया कदम, कलेक्शन सेंटरों में जल्द उपलब्ध होंगी स्वाइपिंग मशीन

2016 में आई आपदा के बाद से न्वाली गांव पूरी तरह खतरे की जद में आ गया था. भू-वैज्ञानिकों की टीम ने इस गांव को संवेदनशील घोषित करने के साथ ही 8 प्रभावित परिवारों को तुरन्त विस्थापित करने की बात कही थी. जिसके बाद प्रभावित परिवारों को टेंट दिए गए थे. साथ ही मकान बनाने के लिए 60,000 रुपये भी दिए गए. मगर धनराशि कम होने की वजह से प्रभावित परिवार किराए के मकान या फिर अपने जर्जर हो चुके मकानों में ही रहने को मजबूर हैं. जहां तमाम सरकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं लेकिन इस गांव के पीड़तों को एक अदद छत भी नसीब नहीं हो पा रही है. जो सरकारी तंत्र की तंद्रा को दर्शाता है.

पिथौरागढ़: सीमांत जिला पिथौरागढ़ में कई गांव आपदा प्रभावित हैं. जिनके लिए सरकार ने वादे तो बहुत किए लेकिन वे पूरे नहीं हुए. जिससे लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जीवन जीने को मजबूर हैं. वहीं आज हम आपको ऐसे गांव से रूबरू कराने जा रहे हैं जो आपदा का दंश झेल चुका है, लेकिन 3 साल बीत जाने के बाद भी कनालीछीना के न्वाली गांव में 8 प्रभावित परिवार ऐसे मकानों में रहने को मजबूर हैं जो किसी भी वक्त जमींदोज हो सकते हैं. जो सरकारी तंत्र की नाकामी की कहानी बयां कर रही है.

आपदा प्रभावितों की नहीं सुन रहा कोई फरियाद.

गौर हो कि 30 अक्टूबर 2016 को कनालीछीना के न्वाली गांव में प्रकृति ने इस कदर तांडव मचाया कि कई मकान जमींदोज हो गए तो कुछ की हालत इतनी खराब है कि उनमें रहना खतरे से खाली नहीं है. अब 3 साल बीतने पर भी 8 प्रभावित परिवार ऐसे मकानों में रहने को मजबूर हैं, जो किसी भी वक्त जमींदोज हो सकते है. सरकारी तंत्र ने प्रभावितों को मदद के नाम पर मात्र 60,000 की राहत तो दी मगर ये राहत ऊंट के मुंह में जीरा साबित हुई. 8 परिवारों के 40 से अधिक सदस्य हर पल मौत के साये में जीने को मजबूर हैं. वहीं आपदा प्रभावित लोगों का कहना है कि वे शासन-प्रशासन से गुहार लगाते-लगाते थक चुके हैं. लेकिन उनकी फरियाद कोई नहीं सुन रहा.

पढ़ें-UPCL ने कैशलेस पेमेंट्स की तरफ बढ़ाया कदम, कलेक्शन सेंटरों में जल्द उपलब्ध होंगी स्वाइपिंग मशीन

2016 में आई आपदा के बाद से न्वाली गांव पूरी तरह खतरे की जद में आ गया था. भू-वैज्ञानिकों की टीम ने इस गांव को संवेदनशील घोषित करने के साथ ही 8 प्रभावित परिवारों को तुरन्त विस्थापित करने की बात कही थी. जिसके बाद प्रभावित परिवारों को टेंट दिए गए थे. साथ ही मकान बनाने के लिए 60,000 रुपये भी दिए गए. मगर धनराशि कम होने की वजह से प्रभावित परिवार किराए के मकान या फिर अपने जर्जर हो चुके मकानों में ही रहने को मजबूर हैं. जहां तमाम सरकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं लेकिन इस गांव के पीड़तों को एक अदद छत भी नसीब नहीं हो पा रही है. जो सरकारी तंत्र की तंद्रा को दर्शाता है.

Intro:पिथौरागढ़: 30 अक्टूबर 2016 को कनालीछीना के न्वाली गांव में प्राकृतिक ने इस कदर तांडव मचाया कि कई मकान जमींदोज हो गए तो कुछ की हालत इतनी खराब है कि उनमें रहना खतरे से खाली नही है। लेकिन 3 साल बीतने पर भी 8 प्रभावित परिवार ऐसे मकानों में रहने को मजबूर है जो किसी भी वक्त जमींदोज हो सकते है। सरकारी तंत्र ने प्रभावितों को मदद के नाम पर मात्र 60,000 की राहत तो दी मगर ये राहत ऊंट के मुँह में जीरा साबित हुई। 8 परिवारों के 40 से अधिक सदस्य हर पल मौत के साये में जीने को मजबूर है। बीते सालों में इन प्रभावितों ने अधिकारियों के दरबार मे कई बार फरियाद लगाई, लेकिन इनकी फरियाद नही सुनी गई।


Body:2016 में आई आपदा के बाद से न्वाली गांव पूरी तरह खतरे की जद में आ गया है। भू-वैज्ञानिकों की टीम ने इस गाँव को संवेदनशील घोषित करने के साथ ही 8 प्रभावित परिवारों को तुरन्त विस्थापित करने की बात कही थी। जिसके बाद प्रभावित परिवारों को टेंट दिए गए थे। साथ ही मकान बनाने के लिए 60,000 रुपये भी दिए गए। मगर धनराशि कम होने की वजह से प्रभावित परिवार या तो किराए के मकानों में शरण लिए है या फिर अपने जर्जर हो चुके मकानों में ही रहने को मजबूर है। तमाम सरकारी योजनाएं होने के बावजूद इन्हें ना तो एक अदद सुरक्षित छत मिल पाई और ना ही जरूरी मुआवजा। हालांकि अब प्रशासन फिर से पूरे मामले की जांच कर प्रभावितों को राहत देने का भरोसा दिला रहा है। लेकिन सवाल ये है कि इतने सालों तक सरकारी तंत्र आखिर कहां सोया था?

Byte: कमला देवी, प्रभावित
Byte: दिनेश कुमार, प्रभावित



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