पिथौरागढ़: 11 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित छियालेख को प्राकृतिक सौंदर्यता के लिए जाना जाता है. मानों कुदरत ने इस इलाके को खुद अपने हाथों से सजाया हो. यहां से अन्नपूर्णा और ह्या नमज्युंग पर्वत-शिखरों (Annapurna and Hya Namjeung mountain-peaks) के विहंगम दर्शन होते हैं. छियालेख को 'फूलों की घाटी' भी कहा जाता है. इसे गढ़वाल की 'फूलों की घाटी' की तरह मान्यता मिली है.
छियालेख स्थित फूलों की घाटी: भादो महीने में ये घाटी करीब हजार प्रजाति के सुंदर फूलों से खिल उठती है. छियालेख में प्रीटा रॉयली, ब्रह्मकमल, प्रिंक प्रिमूला, गोल्डन लिली, क्रीमी अनीमोन, लार्ज पर्पल एस्टर, ब्ल्यू पॉपी, ब्ल्यू फारगेट मी नाट, व्हाईट एंड रेड पोटेंनटिला समेत हजारों प्रजातियों के फूल खिलते हैं. कुछ फूल ऐसे भी हैं, जो साल भर खिलते हैं. अब तक सिर्फ कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarover) और छोटा कैलाश (Chhota Kailash) यात्रियों को ही इन फूलों को देखने का सौभाग्य मिलता है.
सड़क निर्माण से बुग्यालों को नुकसान: छियालेख तक सड़क पहुंचने के बाद अब भले ही सैलानी 'फूलों की घाटी' के दीदार कर पाएंगे, लेकिन सड़क निर्माण के कारण छियालेख के बुग्यालों में स्थित फूलों को नुकसान पहुंचने लगा है. मॉनसून काल से लेकर अक्टूबर तक खिलने वाले फूल नवंबर माह तक मुरझा जाते हैं और फिर शीतकाल में ये इलाका पूरी तरह बर्फ से पटा रहता है.
ये भी पढ़ें: विश्व धरोहर 'फूलों की घाटी' में खिले रंग बिरंगे फूल, तस्वीरों में देंखे खूबसूरती
पिथौरागढ़ से छियालेख तक का सफर: फूलों की घाटी तक पहुंचने के पिथौरागढ़ से छियालेख तक 144 किमी का सफर तय करना होता है. ईटीवी भारत आज आपको छियालेख की सरजमीं तक पहुंचाने का काम कर रहा है. देश दुनिया को पहली बार ईटीवी भारत फूलों की घाटी का दर्शन (view of the valley of flowers) करा रहा है. यहां पहुंचने के बाद ऐसा अनुभव होता है, मानों धरती पर कहीं स्वर्ग है तो वो यही है.
व्यास घाटी में मौजूद छियालेख विशाल घास का मैदान यानि बुग्याल है, जहां स्थानीय लोग अपने जानवरों को चराने आते हैं. इस बुग्याल में कई ऐसी दुर्लभ जड़ी-बूटियां (rare herbs) भी हैं, जो तुरंत घावों को भर देती हैं. स्थानीय लोगों का मानना है कि जब हनुमान संजीवनी लेने हिमालय आये थे तो, वे छियालेख पहुंचे थे.
छियालेख के लिए इनरलाइन परमिट जरूरी: चीन और नेपाल बॉर्डर से लगे छियालेख में इनरलाइन मौजूद (Innerline in chhiyalekh) है. यानी यहां से आगे जाने के लिए परमिट जरूरी है. बिना परमिट के छियालेख में मौजूद आईटीबीपी, एसएसबी और सेना के जवान आगे नहीं बढ़ने देते हैं. छियालेख भारतीय सुरक्षा एजेंसियों का पहला बड़ा केंद्र (First major center of Indian security agencies at chhiyalekh) भी है. जहां सीमाओं के प्रहरी हर वक्त शरहद की हिफाजत में मुस्तैद दिखते हैं.
पर्यटन और हर्बल केंद्र में विकसित हो सकता है छियालेख: गढ़वाल की 'फूलों की घाटी' के तर्ज पर छियालेख को भी पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की जरूरत है. साथ ही यहां फूलों की घाटी का संरक्षण करने की भी जरूरत है. ताकि देश-विदेश से सैलानी यहां पहुंचकर फूलों की घाटी का दीदार कर सकें. यहीं नहीं यहां मौजूद दुर्लभ जड़ी बूटियों पर व्यापक शोध के जरिये स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के नए दरवाजे भी खोले जा सकते हैं.