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बढ़ती गर्मी से सूखने लगे प्राकृतिक जल स्रोत, मिट्टी के लेप से ग्रामीण कर रहे संरक्षित

प्राकृतिक जलस्रोत उत्तराखंड में नौला तथा धारा अथवा मंगरा नाम से जाने जाते हैं. लेकिन, सरकारी उपेक्षाओं के चलते ये सूखने लगे हैं. ऐसे में पौड़ी के डांगी गांव के ग्रामीण खुद प्राकृतिक जल स्रोत को मिट्टी के लेप से संरक्षित करते हुए पानी की समस्या से निजात पा रहे हैं.

natural water source in uttarakhand
बढ़ती गर्मी से सूखने लगे प्राकृतिक जल स्रोत
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Published : Apr 16, 2022, 3:17 PM IST

पौड़ी: उत्तराखंड में गर्मियों की दस्तक के साथ ही पहाड़ों पर इसका असर भी दिखना शुरू हो चुका है. पौड़ी में पानी की किल्लत के चलते अब ग्रामीण प्राकृतिक जल स्रोत को संरक्षित करने में जुट गए हैं. क्योंकि करोड़ों रुपए से संचालित होने वाली पेयजल योजनाओं की सांसें अब फूलने लगी हैं, जिसकी वजह से गांवों में पानी की दिक्कत शुरू हो गई है. ऐसे में प्राकृतिक जलस्रोत स्थानीय लोगों के लिए किसी संजीवनी के कम नहीं होते हैं.

हालांकि ग्रामीणों को भी प्राकृतिक जलस्रोत की याद गर्मियों में ही आती है, जब उन्हें पानी की दिक्कत का सामना करना पड़ता है. ऐसे में पौड़ी के कल्जीखाल ब्लॉक के डांगी गांव के लोगों ने खुद ही सामूहिक प्रयासों से जलस्रोतों की साफ सफाई का जिम्मा उठाया है. डांगी गांव के लोगों ने करीब 100 साल पुराने प्राकृतिक जलस्रोत की साफ-सफाई की. इसके साथ ही पानी के रिसाव को रोकने के लिए चिकनी मिट्टी का लेप लगाकर स्रोत को संरक्षित भी किया.

पढ़ें: एक ओर सल्ट का संग्राम, दूसरी ओर प्यासी जनता नापती है कई किमी की दूरी

ग्रामीणों ने प्रशासन की जलस्रोतों के संरक्षण करने की योजना को खोखला बताया और कहा कि सरकारी सिस्टम यदि पूरी ईमानदारी से काम करता तो जलस्रोत का अब तक जीर्णोद्धार हो चुका होता. वहीं, जल संस्थान के सहायक अभियंता सोहन सिंह जेठूड़ी ने बताया कि जलस्रोतों के संरक्षण को लेकर कार्य गतिमान है, जिनका जीर्णोद्धार किया जाना है.

बीते एक दशक में पौड़ी गढ़वाल के प्राकृतिक जल स्रोतों के सूखने के चलते पेयजल संकट की जो तस्वीर उभर कर सामने आई है, उससे चिंता और भी बढ़ जाती है. हर साल इस स्रोत का पानी कम होता जा रहा है, जो बेहद चिंता का सबब बना हुआ है. इसके साथ ही पहाड़ों से और भी कई पानी की धाराएं निकला करती थी, जो आज विलुप्त हो चुकी हैं.

पौड़ी: उत्तराखंड में गर्मियों की दस्तक के साथ ही पहाड़ों पर इसका असर भी दिखना शुरू हो चुका है. पौड़ी में पानी की किल्लत के चलते अब ग्रामीण प्राकृतिक जल स्रोत को संरक्षित करने में जुट गए हैं. क्योंकि करोड़ों रुपए से संचालित होने वाली पेयजल योजनाओं की सांसें अब फूलने लगी हैं, जिसकी वजह से गांवों में पानी की दिक्कत शुरू हो गई है. ऐसे में प्राकृतिक जलस्रोत स्थानीय लोगों के लिए किसी संजीवनी के कम नहीं होते हैं.

हालांकि ग्रामीणों को भी प्राकृतिक जलस्रोत की याद गर्मियों में ही आती है, जब उन्हें पानी की दिक्कत का सामना करना पड़ता है. ऐसे में पौड़ी के कल्जीखाल ब्लॉक के डांगी गांव के लोगों ने खुद ही सामूहिक प्रयासों से जलस्रोतों की साफ सफाई का जिम्मा उठाया है. डांगी गांव के लोगों ने करीब 100 साल पुराने प्राकृतिक जलस्रोत की साफ-सफाई की. इसके साथ ही पानी के रिसाव को रोकने के लिए चिकनी मिट्टी का लेप लगाकर स्रोत को संरक्षित भी किया.

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ग्रामीणों ने प्रशासन की जलस्रोतों के संरक्षण करने की योजना को खोखला बताया और कहा कि सरकारी सिस्टम यदि पूरी ईमानदारी से काम करता तो जलस्रोत का अब तक जीर्णोद्धार हो चुका होता. वहीं, जल संस्थान के सहायक अभियंता सोहन सिंह जेठूड़ी ने बताया कि जलस्रोतों के संरक्षण को लेकर कार्य गतिमान है, जिनका जीर्णोद्धार किया जाना है.

बीते एक दशक में पौड़ी गढ़वाल के प्राकृतिक जल स्रोतों के सूखने के चलते पेयजल संकट की जो तस्वीर उभर कर सामने आई है, उससे चिंता और भी बढ़ जाती है. हर साल इस स्रोत का पानी कम होता जा रहा है, जो बेहद चिंता का सबब बना हुआ है. इसके साथ ही पहाड़ों से और भी कई पानी की धाराएं निकला करती थी, जो आज विलुप्त हो चुकी हैं.

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