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पलायन का मारा उत्तराखंड, आयोग के उपाध्यक्ष शरद नेगी की प्लानिंग सुनिए - पलायन का कारण

कहते हैं पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ में नहीं टिकती. ये सिर्फ एक कहावत नहीं बल्कि पहाड़ का कड़वा सच है. पहाड़ से लगातार पलायन हो रहा है. इसके इतर उत्तराखंड पलायन आयोग के उपाध्यक्ष शरद सिंह नेगी ने युवाओं और महिलाओं को रोजगार से जोड़ने की बात कही है.

Sharad Singh Negi held meeting in Pauri
पलायन आयोग के उपाध्यक्ष शरद सिंह नेगी
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Published : Jul 1, 2022, 12:47 PM IST

Updated : Jul 1, 2022, 1:30 PM IST

श्रीनगरः उत्तराखंड में पलायन सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है. सूबे के पर्वतीय जिलों से मूलभूत सुविधा समेत अन्य कारणों से लोग लगातार पलायन कर रहे हैं. आलम ये है कि आज कई गांव खाली हो गए हैं. जो अब भूतहा कहे जाते हैं. ऐसे में पलायन को रोकने के लिए पलायन आयोग का गठन किया गया है. इसी कड़ी में पलायन आयोग के उपाध्यक्ष शरद नेगी श्रीनगर पहुंचे. जहां उन्होंने पलायन रोकने से संबंधित प्रयासों की जानकारी दी.

उत्तराखंड पलायन आयोग के उपाध्यक्ष शरद सिंह नेगी (Uttarakhand Migration Commission vice Chairman Sharad Singh Negi) ने कहा कि राज्य सरकार गांवों में हो रहे पलायन को रोकने के हर प्रकार की कोशिश कर रही है. इसके लिए गांवों की महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों के जरिए रोजगार से जोड़ा जा रहा है. युवाओं को दुग्ध, पशु पालन, मत्स्य पालन से जोड़कर रोजगार देने की कोशिश की जा रही है.

पलायन का मारा उत्तराखंड

वहीं, उन्होंने पौड़ी विकास भवन में विकास एवं पलायन आयोग की विभिन्न जनपदीय अधिकारियों के साथ बैठक आयोजित की. समीक्षा बैठक में उन्होंने कोरोनाकाल और वर्तमान समय में कितने लोग स्वरोजगार से जुड़े इसकी जानकारी दी. साथ ही अधिकारियों को कृषि व सहायक मदों में स्थाई रोजगार से रिवर्स पलायन में सहभागिता के बारे में दिशा निर्देश दिए.

ये भी पढ़ेंः क्या फेल हुई सरकार? पहाड़ों में नहीं टिक रही जवानी, तीन साल में 59 गांव खाली

बैठक में संबंधित अधिकारी ने बताया कि कोरोनाकाल और वर्तमान समय में लोगों का रुझान नकदी फसल, मंडुवा की खेती, कृषि बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन, मौन पालन, सब्जी उत्पादन आदि की ओर बढ़ा है. साथ ही व्यापक पैमाने पर स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से आय सृजक गतिविधियां फलीभूत हुई हैं. महिलाओं ने एनआरएलएम के माध्यम से अपनी आर्थिकी को मजबूत किया है.

देहरादून जिला भी पलायन से अछूता नहींः पलायन आयोग की रिपोर्ट अनुसार, देहरादून जिले के कुल 231 ग्राम पंचायतों में 25,781 व्यक्तियों ने बीते दस सालों में अस्थायी पलायन किया है. सबसे अधिक कालसी विकासखंड की 107 ग्राम पंचायतों में 11,399 व्यक्तियों और सबसे कम सहसपुर विकासखंड की 4 ग्राम पंचायतों में 144 व्यक्तियों ने अस्थायी पलायन किया है. वहीं, विकासनगर विकासखंड में कुल 26 ग्राम पंचायतों में 7,397 व्यक्तियों ने अस्थायी पलायन किया है. रोजगार और शिक्षा के लिए नजदीकी शहरों और कस्बों में लोगों ने अस्थायी पलायन किया है.

ये भी पढ़ेंः पलायन आयोग की रिपोर्ट ने खोली दावों की पोल, जद में राजधानी देहरादून भी

पिथौरागढ़ जिले के 59 से ज्यादा गांव वीरान: वर्तमान में पिथौरागढ़ जिले में 59 गांव ऐसे हैं, जहां अब कोई भी नहीं रहता यानि कि ये गांव वीरान हो चुके हैं. इनमें सबसे अधिक 15 गांव पिथौरागढ़ तहसील के हैं. इसके बाद 13 गांव गंगोलीहाट, डीडीहाट और बेरीनाग के छह-छह, धारचूला के चार, गणाई-गंगोली, पांखू और थल के तीन-तीन गांव शामिल हैं. इन गांवों में अब कोई नहीं रहता. हालांकि, इनमें कुछ गांव ऐसे हैं, जहां अभी भी खेती की जाती है. वहीं, पौड़ी और अल्मोड़ा से तो पहले ही भयानक पलायन हो चुका है.

ये भी पढ़ेंः गजब! पलायन आयोग के उपाध्यक्ष ने खुद किया पलायन, पैतृक घर बेचा

त्रिवेंद्र सरकार में हुआ था पलायन आयोग का गठनः सूबे के गांवों से पलायन को रोकने के लिए तत्कालीन सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 17 सितंबर 2017 को पलायन आयोग का गठन किया था. खुद सीएम इसके अध्यक्ष बने थे. जबकि, एसएस नेगी को इसका उपाध्यक्ष बनाया गया था. इसका मुख्यालय पौड़ी में बनाया गया है. सरकार का मकसद ग्रामीण इलाकों से लगातार हो रहे पलायन को रोकना था. बकायदा लोगों की समस्या जानने को लेकर पलायन आयोग की वेबसाइट भी बनाई गई.

पलायन आयोग के उपाध्यक्ष ने खुद किया पलायनः उत्तराखंड बनने के बाद से ही लगातार पहाड़ी क्षेत्रों पलायन हो रहा है. जिसे रोकने और पलायन के कारणों को जानने के लिए उत्तराखंड सरकार ने पलायन आयोग का गठन किया था. पौड़ी के रहने वाले शरद सिंह नेगी को इसका उपाध्यक्ष चुना गया. आयोग को बनाने के बाद लोगों को उम्मीद थी कि पहाड़ से हो रहे पलायन में कमी आएगी, इसके कारणों का निवारण किया जाएगा. लेकिन ठीक इसके उलट हुआ. पलायन आयोग के उपाध्यक्ष शरद नेगी ने ही पौड़ी स्थित अपना पैतृक घर बेच दिया.

ये भी पढ़ेंः बछणस्यूं पट्टी के गांव हो रहे 'भूतहा', सुविधाओं के अभाव में बदस्तूर पलायन जारी

ईटीवी भारत की 'आ अब लौटें' मुहिमः गौर हो कि पहाड़ों की इस सबसे बड़ी समस्या को देखते हुए ईटीवी भारत ने पलायन के खिलाफ एक मुहिम चलाई. 'आ अब लौटें' मुहिम के जरिए उन गांवों की समस्याओं को सामने लाया, जो अब पलायन के कारण खाली हो चुके हैं या खाली होने की कगार पर हैं. सरकार तक उन गांवों की समस्याओं का पहुंचाया है. इस मुहिम को कई बॉलीवुड सितारों का भी साथ मिला. वहीं, विदेश में रह रहे पहाड़ी लोग भी इस मुहिम के जरिये अपने गांव तक जुड़े.

ये भी पढ़ेंः बीजेपी ने पलायन को लेकर किया था जनता से ये वादा, 5 साल बाद कितना पूरा-कितना अधूरा?

क्या है इस पलायन का कारण? गांवों में रहने वाले लोगों का कहना है कि पलायन का सबसे बड़ा कारण बेरोजगारी है. लोगों को जब रोजगार नहीं मिलता है, तो वो अपने गांव छोड़कर मैदानों की तरफ जाते रहे हैं. पलायन के मुद्दे का सीधे तौर पर बेरोजगारी के साथ जुड़ जाना सियासी पार्टियों के बीच बयानों की रस्साकशी के लिए खुराक बन गया है. उत्तराखंड के लिए पलायन शब्द नया नहीं है, लेकिन राजनीतिक दल इस शब्द को हर 5 साल में नए रूप और नई कार्य योजना के साथ जनता के सामने पेश जरूर कर देते हैं.

ये भी पढ़ेंः चिंताजनक! 'दीमक' बना पलायन, 2026 तक और कम हो जाएंगी पहाड़ों पर विधानसभाओं की संख्या

बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं पलायन का प्रमुख कारण: पहाड़ों में बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं भी पहाड़ से पलायन का बड़ा कारण थीं. आज भी इलाज के अभाव में गर्भवती महिलाएं और मरीज दम तोड़ रहे हैं. लोगों को छोटी-छोटी दवा और इलाज के लिए घंटों सफर करना पड़ता है. कोरोनाकाल में इसकी बानगी देखने को मिली. हालांकि, कोरोनाकाल में सबक लेते हुए प्रदेश सरकार स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करने की दिशा में काम कर रही है. आज प्रदेश में ऑक्सीजन प्लांट से लेकर वेंटिलेटर्स और विभिन्न प्रकार की जांच के लिए नई लैब स्थापित की गई हैं.

श्रीनगरः उत्तराखंड में पलायन सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है. सूबे के पर्वतीय जिलों से मूलभूत सुविधा समेत अन्य कारणों से लोग लगातार पलायन कर रहे हैं. आलम ये है कि आज कई गांव खाली हो गए हैं. जो अब भूतहा कहे जाते हैं. ऐसे में पलायन को रोकने के लिए पलायन आयोग का गठन किया गया है. इसी कड़ी में पलायन आयोग के उपाध्यक्ष शरद नेगी श्रीनगर पहुंचे. जहां उन्होंने पलायन रोकने से संबंधित प्रयासों की जानकारी दी.

उत्तराखंड पलायन आयोग के उपाध्यक्ष शरद सिंह नेगी (Uttarakhand Migration Commission vice Chairman Sharad Singh Negi) ने कहा कि राज्य सरकार गांवों में हो रहे पलायन को रोकने के हर प्रकार की कोशिश कर रही है. इसके लिए गांवों की महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों के जरिए रोजगार से जोड़ा जा रहा है. युवाओं को दुग्ध, पशु पालन, मत्स्य पालन से जोड़कर रोजगार देने की कोशिश की जा रही है.

पलायन का मारा उत्तराखंड

वहीं, उन्होंने पौड़ी विकास भवन में विकास एवं पलायन आयोग की विभिन्न जनपदीय अधिकारियों के साथ बैठक आयोजित की. समीक्षा बैठक में उन्होंने कोरोनाकाल और वर्तमान समय में कितने लोग स्वरोजगार से जुड़े इसकी जानकारी दी. साथ ही अधिकारियों को कृषि व सहायक मदों में स्थाई रोजगार से रिवर्स पलायन में सहभागिता के बारे में दिशा निर्देश दिए.

ये भी पढ़ेंः क्या फेल हुई सरकार? पहाड़ों में नहीं टिक रही जवानी, तीन साल में 59 गांव खाली

बैठक में संबंधित अधिकारी ने बताया कि कोरोनाकाल और वर्तमान समय में लोगों का रुझान नकदी फसल, मंडुवा की खेती, कृषि बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन, मौन पालन, सब्जी उत्पादन आदि की ओर बढ़ा है. साथ ही व्यापक पैमाने पर स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से आय सृजक गतिविधियां फलीभूत हुई हैं. महिलाओं ने एनआरएलएम के माध्यम से अपनी आर्थिकी को मजबूत किया है.

देहरादून जिला भी पलायन से अछूता नहींः पलायन आयोग की रिपोर्ट अनुसार, देहरादून जिले के कुल 231 ग्राम पंचायतों में 25,781 व्यक्तियों ने बीते दस सालों में अस्थायी पलायन किया है. सबसे अधिक कालसी विकासखंड की 107 ग्राम पंचायतों में 11,399 व्यक्तियों और सबसे कम सहसपुर विकासखंड की 4 ग्राम पंचायतों में 144 व्यक्तियों ने अस्थायी पलायन किया है. वहीं, विकासनगर विकासखंड में कुल 26 ग्राम पंचायतों में 7,397 व्यक्तियों ने अस्थायी पलायन किया है. रोजगार और शिक्षा के लिए नजदीकी शहरों और कस्बों में लोगों ने अस्थायी पलायन किया है.

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पिथौरागढ़ जिले के 59 से ज्यादा गांव वीरान: वर्तमान में पिथौरागढ़ जिले में 59 गांव ऐसे हैं, जहां अब कोई भी नहीं रहता यानि कि ये गांव वीरान हो चुके हैं. इनमें सबसे अधिक 15 गांव पिथौरागढ़ तहसील के हैं. इसके बाद 13 गांव गंगोलीहाट, डीडीहाट और बेरीनाग के छह-छह, धारचूला के चार, गणाई-गंगोली, पांखू और थल के तीन-तीन गांव शामिल हैं. इन गांवों में अब कोई नहीं रहता. हालांकि, इनमें कुछ गांव ऐसे हैं, जहां अभी भी खेती की जाती है. वहीं, पौड़ी और अल्मोड़ा से तो पहले ही भयानक पलायन हो चुका है.

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त्रिवेंद्र सरकार में हुआ था पलायन आयोग का गठनः सूबे के गांवों से पलायन को रोकने के लिए तत्कालीन सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 17 सितंबर 2017 को पलायन आयोग का गठन किया था. खुद सीएम इसके अध्यक्ष बने थे. जबकि, एसएस नेगी को इसका उपाध्यक्ष बनाया गया था. इसका मुख्यालय पौड़ी में बनाया गया है. सरकार का मकसद ग्रामीण इलाकों से लगातार हो रहे पलायन को रोकना था. बकायदा लोगों की समस्या जानने को लेकर पलायन आयोग की वेबसाइट भी बनाई गई.

पलायन आयोग के उपाध्यक्ष ने खुद किया पलायनः उत्तराखंड बनने के बाद से ही लगातार पहाड़ी क्षेत्रों पलायन हो रहा है. जिसे रोकने और पलायन के कारणों को जानने के लिए उत्तराखंड सरकार ने पलायन आयोग का गठन किया था. पौड़ी के रहने वाले शरद सिंह नेगी को इसका उपाध्यक्ष चुना गया. आयोग को बनाने के बाद लोगों को उम्मीद थी कि पहाड़ से हो रहे पलायन में कमी आएगी, इसके कारणों का निवारण किया जाएगा. लेकिन ठीक इसके उलट हुआ. पलायन आयोग के उपाध्यक्ष शरद नेगी ने ही पौड़ी स्थित अपना पैतृक घर बेच दिया.

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ईटीवी भारत की 'आ अब लौटें' मुहिमः गौर हो कि पहाड़ों की इस सबसे बड़ी समस्या को देखते हुए ईटीवी भारत ने पलायन के खिलाफ एक मुहिम चलाई. 'आ अब लौटें' मुहिम के जरिए उन गांवों की समस्याओं को सामने लाया, जो अब पलायन के कारण खाली हो चुके हैं या खाली होने की कगार पर हैं. सरकार तक उन गांवों की समस्याओं का पहुंचाया है. इस मुहिम को कई बॉलीवुड सितारों का भी साथ मिला. वहीं, विदेश में रह रहे पहाड़ी लोग भी इस मुहिम के जरिये अपने गांव तक जुड़े.

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क्या है इस पलायन का कारण? गांवों में रहने वाले लोगों का कहना है कि पलायन का सबसे बड़ा कारण बेरोजगारी है. लोगों को जब रोजगार नहीं मिलता है, तो वो अपने गांव छोड़कर मैदानों की तरफ जाते रहे हैं. पलायन के मुद्दे का सीधे तौर पर बेरोजगारी के साथ जुड़ जाना सियासी पार्टियों के बीच बयानों की रस्साकशी के लिए खुराक बन गया है. उत्तराखंड के लिए पलायन शब्द नया नहीं है, लेकिन राजनीतिक दल इस शब्द को हर 5 साल में नए रूप और नई कार्य योजना के साथ जनता के सामने पेश जरूर कर देते हैं.

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बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं पलायन का प्रमुख कारण: पहाड़ों में बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं भी पहाड़ से पलायन का बड़ा कारण थीं. आज भी इलाज के अभाव में गर्भवती महिलाएं और मरीज दम तोड़ रहे हैं. लोगों को छोटी-छोटी दवा और इलाज के लिए घंटों सफर करना पड़ता है. कोरोनाकाल में इसकी बानगी देखने को मिली. हालांकि, कोरोनाकाल में सबक लेते हुए प्रदेश सरकार स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करने की दिशा में काम कर रही है. आज प्रदेश में ऑक्सीजन प्लांट से लेकर वेंटिलेटर्स और विभिन्न प्रकार की जांच के लिए नई लैब स्थापित की गई हैं.

Last Updated : Jul 1, 2022, 1:30 PM IST
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