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Nails on Trees: देवताओं के पेड़ पर ठोक रहे प्रचार की कील, नासमझों से देवदार को खतरा - Nails on Trees

जहां हर साल पर्यावरण संरक्षण (Environment protection) को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाई जाती है, वहीं दूसरी ओर विज्ञापनों के नाम पर पेड़ों को बर्बाद किया जाता है. जिसमें कई वृक्ष संरक्षित प्रजाति के भी हैं, जिनके अस्तित्व पर अब खतरा मंडराने लगा है. कुछ ऐसा ही पौड़ी के कंडोलिया पार्क (Pauri Kandoliya Park) में देखने को मिला है.

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Published : Jan 13, 2023, 7:24 AM IST

देवदार के पेड़ों पर ठोक रहे हैं कील

श्रीनगर: प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण (Environment protection) की दिशा में तमाम प्रयास किए जा रहे हैं. जिससे ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से बचा जा सके. ठीक इसके इतर पौड़ी के कंडोलिया पार्क (Pauri Kandoliya Park) सहित अन्य स्थानों पर देवदार के पेड़ों पर जगह जगह बड़ी-बड़ी कील ठोककर इन पर होर्डिंग लगा दी जा रही हैं. ये होर्डिंग अब देवदार के पेड़ों के लिए सबसे बड़ा संकट बन रहे हैं. देवदार के पेड़ों पर लगी कीलें कुछ समय बाद जंक खा रही हैं. इससे इन पेड़ों का अस्तित्व (Threat to the existence of deodar tree) समाप्त होता जा रहा है.

देवदार प्रदेश का पवित्र व पूजनीय पेड़ है. इसका नाम दो शब्दों देव (देवता) व दारु (वृक्ष) से मिलकर बना है. जिसे देवताओं का पेड़ भी कहा जाता है, लेकिन बदलते परिवेश में इन पेड़ों पर मानवीय हस्तक्षेप से खतरा मंडराने लगा है. पौड़ी की अधिकतर वन पंचायतों में यही हाल है. यहां पर्यावरण की परवाह न करते हुए देवदार के पेड़ों को विज्ञापन समेत सूचना के प्रचार–प्रसार का जरिया बनाया जा रहा है. पर्यावरणविद देवदार के पेड़ों का अस्तित्व इस तरह से समाप्त होने से चिंता में हैं. गढ़वाल केन्द्रीय विवि के उच्च पादपीय शोध संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफेसर विजयकांत पुरोहित ने इस पर अपनी चिंता जताते हुए कहा कि पेड़ों पर कील ठोकने का कारण पेड़ सूख जाते हैं.
पढ़ें-उत्तरकाशी में ITBP के जवानों ने रोपे रुद्राक्ष के पौधे, पर्यावरण संरक्षण का दिया संदेश

लोहा पेड़ों के लिए सबसे ज्यादा हानिकारक होता है. इससे देवदार के जीवन चक्र पर प्रभाव पड़ता है. वो इनफेक्टेड होकर सड़ने या सूखने लगते हैं. उन्होंने कहा कि प्रशासन को लोगों को समझाना होगा कि ऐसा ना करें. जागरूकता द्वारा ही देवदार की प्रजाति को नष्ट होने से बचाया जा सकता है. इसके उलट जिम्मेदार विभाग और अधिकारी सुध नहीं ले रहे हैं. हालांकि पर्यावरण के अति संवेदनशील मुद्दे को उठाने के बाद जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान (District Magistrate Ashish Chauhan) ने देवदार के पेड़ों की दुर्दशा पर जल्द ठोस कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है. उन्होंने कहा कि उनके संज्ञान में मामला आया है. वो इस पूरे मामले की जांच कर कार्रवाई करेंगे.
पढ़ें-उत्तराखंड में बढ़ते पर्यावरण के दुश्मन, NCRB रिपोर्ट में पर्यावरणीय अपराधों के ग्राफ ने बढ़ाई चिंता

देवदार के पेड़ के फायदे: देवदार की लकड़ी फर्नीचर (लकड़ी के फ्रेम, दरवाजे) बनाने के काम में लाई जाती है. देवदार की लकड़ी में तेल भी होता है. यह तेल एंटीफंगल गुण से परिपूर्ण होता है. इस तेल को त्वचा के रोगों के इलाज हेतु प्रयोग में लाया जाता है. देवदार की छाल से काढ़ा भी बनाया जाता है, जोकि अंदरूनी बीमारियों के इलाज में प्रयोग में लाया जाता है. इसके अलावा औषधीय रूप में और जगहों पर भी इसका प्रयोग किया जाता है. गठिया, मधुमेह, सूजन आदि रोगों के उपचार के काम में भी देवदार का उपयोग किया जाता है.

देवदार के पेड़ों पर ठोक रहे हैं कील

श्रीनगर: प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण (Environment protection) की दिशा में तमाम प्रयास किए जा रहे हैं. जिससे ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से बचा जा सके. ठीक इसके इतर पौड़ी के कंडोलिया पार्क (Pauri Kandoliya Park) सहित अन्य स्थानों पर देवदार के पेड़ों पर जगह जगह बड़ी-बड़ी कील ठोककर इन पर होर्डिंग लगा दी जा रही हैं. ये होर्डिंग अब देवदार के पेड़ों के लिए सबसे बड़ा संकट बन रहे हैं. देवदार के पेड़ों पर लगी कीलें कुछ समय बाद जंक खा रही हैं. इससे इन पेड़ों का अस्तित्व (Threat to the existence of deodar tree) समाप्त होता जा रहा है.

देवदार प्रदेश का पवित्र व पूजनीय पेड़ है. इसका नाम दो शब्दों देव (देवता) व दारु (वृक्ष) से मिलकर बना है. जिसे देवताओं का पेड़ भी कहा जाता है, लेकिन बदलते परिवेश में इन पेड़ों पर मानवीय हस्तक्षेप से खतरा मंडराने लगा है. पौड़ी की अधिकतर वन पंचायतों में यही हाल है. यहां पर्यावरण की परवाह न करते हुए देवदार के पेड़ों को विज्ञापन समेत सूचना के प्रचार–प्रसार का जरिया बनाया जा रहा है. पर्यावरणविद देवदार के पेड़ों का अस्तित्व इस तरह से समाप्त होने से चिंता में हैं. गढ़वाल केन्द्रीय विवि के उच्च पादपीय शोध संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफेसर विजयकांत पुरोहित ने इस पर अपनी चिंता जताते हुए कहा कि पेड़ों पर कील ठोकने का कारण पेड़ सूख जाते हैं.
पढ़ें-उत्तरकाशी में ITBP के जवानों ने रोपे रुद्राक्ष के पौधे, पर्यावरण संरक्षण का दिया संदेश

लोहा पेड़ों के लिए सबसे ज्यादा हानिकारक होता है. इससे देवदार के जीवन चक्र पर प्रभाव पड़ता है. वो इनफेक्टेड होकर सड़ने या सूखने लगते हैं. उन्होंने कहा कि प्रशासन को लोगों को समझाना होगा कि ऐसा ना करें. जागरूकता द्वारा ही देवदार की प्रजाति को नष्ट होने से बचाया जा सकता है. इसके उलट जिम्मेदार विभाग और अधिकारी सुध नहीं ले रहे हैं. हालांकि पर्यावरण के अति संवेदनशील मुद्दे को उठाने के बाद जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान (District Magistrate Ashish Chauhan) ने देवदार के पेड़ों की दुर्दशा पर जल्द ठोस कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है. उन्होंने कहा कि उनके संज्ञान में मामला आया है. वो इस पूरे मामले की जांच कर कार्रवाई करेंगे.
पढ़ें-उत्तराखंड में बढ़ते पर्यावरण के दुश्मन, NCRB रिपोर्ट में पर्यावरणीय अपराधों के ग्राफ ने बढ़ाई चिंता

देवदार के पेड़ के फायदे: देवदार की लकड़ी फर्नीचर (लकड़ी के फ्रेम, दरवाजे) बनाने के काम में लाई जाती है. देवदार की लकड़ी में तेल भी होता है. यह तेल एंटीफंगल गुण से परिपूर्ण होता है. इस तेल को त्वचा के रोगों के इलाज हेतु प्रयोग में लाया जाता है. देवदार की छाल से काढ़ा भी बनाया जाता है, जोकि अंदरूनी बीमारियों के इलाज में प्रयोग में लाया जाता है. इसके अलावा औषधीय रूप में और जगहों पर भी इसका प्रयोग किया जाता है. गठिया, मधुमेह, सूजन आदि रोगों के उपचार के काम में भी देवदार का उपयोग किया जाता है.

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