पौड़ीः उत्तराखंड के जंगल इन दिनों आग की चपेट में हैं. अब तक प्रदेश में आग लगने से लाखों रुपये की वन संपदा जलकर राख हो चुकी है. जंगलों में आग लगने से पेयजल संकट गहराने के साथ पर्यावरण भी प्रदूषित हो रहा है. विभाग की ओर से आग पर काबू पाने के कई प्रयास तो किए जा रहे हैं, लेकिन ग्रामीण और शरारती तत्व जंगल को सुलगा रहे हैं. वहीं, स्थानीय जानकारों और वन विभाग के डीएफओ ने आग लगने के कई कारण बताए हैं.
बता दें कि अभी तक गढ़वाल सिविल क्षेत्र में वनाग्नि की 80 घटनाएं हो चुकी हैं. जिनमें 171 हेक्टेयर वन भूमि जल कर खाक हो गई है. साथ ही करीब 3 लाख रुपये का भी नुकसान हो चुका है. वन विभाग सिविल सोयम के डीएफओ संत राम ने जानकारी देते हुए बताया कि पौड़ी सिविल क्षेत्र में 30 क्रू स्टेशन स्थापित किया गया है. साथ ही 52 नियमित कर्मचारी और 120 संविदा कर्मचारियों को तैनात किया गया है.
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डीएफओ ने आग लगने के कारणों पर बात करते हुए बताया कि पहले ग्रामीण क्षेत्रों में घास के लिए लोग आग लगाते थे. साथ ही आग को रोकने में भी मदद करते थे, लेकिन वर्तमान में गांव के गांव खाली हो रहे हैं. ऐसे में कुछ शरारती तत्व आग देते हैं. इन शरारती तत्वों पर नकेल कसने के प्रयास किए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि चीड़ के पेड़ों से निकलने वाले पिरूल के कारण भी आग की घटनाएं सामने आ रही हैं.
वहीं, बुजुर्गों की मानें तो गांव के खाली होने से आग लगने के बाद उस क्षेत्र में कोई बुझाने वाला व्यक्ति नहीं होता है. वन विभाग भी कड़ी मशक्कत के बाद आग पर काबू तो पाया जाता है, लेकिन तब तक लाखों की वन संपदा जलकर नष्ट हो जाती है. ग्रामीणों ने बताया कि चीड़ के पेड़ों से निकलने वाले पिरूल और लीसा आग लगने के दौरान बारूद के रूप में काम करता है. जिसमें मात्र चिंगारी सुलगने पर ही पूरा जंगल जलकर खाक हो जाता है.