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खाली हो रहे पहाड़ के गांव तो कौन लगा रहा जंगलों में आग, जानिए क्या कहते हैं अफसर

डीएफओ ने आग लगने के कारणों पर बात करते हुए बताया कि कुछ शरारती तत्व आग देते हैं. इन शरारती तत्वों पर नकेल कसने के प्रयास किए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि चीड़ के पेड़ों से निकलने वाले पिरूल के कारण भी कई घटटनाएं सामने आ रही है. जिसकी सफाई के लिए ग्रामीण जंगलों में आग लगा रहे हैं.

जंगलों में आग.
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Published : Jun 3, 2019, 8:32 PM IST

पौड़ीः उत्तराखंड के जंगल इन दिनों आग की चपेट में हैं. अब तक प्रदेश में आग लगने से लाखों रुपये की वन संपदा जलकर राख हो चुकी है. जंगलों में आग लगने से पेयजल संकट गहराने के साथ पर्यावरण भी प्रदूषित हो रहा है. विभाग की ओर से आग पर काबू पाने के कई प्रयास तो किए जा रहे हैं, लेकिन ग्रामीण और शरारती तत्व जंगल को सुलगा रहे हैं. वहीं, स्थानीय जानकारों और वन विभाग के डीएफओ ने आग लगने के कई कारण बताए हैं.

जंगलों में आग लगने के कारण बताते ग्रामीण और वन विभाग के डीएफओ संत राम.

बता दें कि अभी तक गढ़वाल सिविल क्षेत्र में वनाग्नि की 80 घटनाएं हो चुकी हैं. जिनमें 171 हेक्टेयर वन भूमि जल कर खाक हो गई है. साथ ही करीब 3 लाख रुपये का भी नुकसान हो चुका है. वन विभाग सिविल सोयम के डीएफओ संत राम ने जानकारी देते हुए बताया कि पौड़ी सिविल क्षेत्र में 30 क्रू स्टेशन स्थापित किया गया है. साथ ही 52 नियमित कर्मचारी और 120 संविदा कर्मचारियों को तैनात किया गया है.

ये भी पढ़ेंः पर्यटकों से गुलजार हुआ नैनीताल, जाम निकाल रहा पसीना


डीएफओ ने आग लगने के कारणों पर बात करते हुए बताया कि पहले ग्रामीण क्षेत्रों में घास के लिए लोग आग लगाते थे. साथ ही आग को रोकने में भी मदद करते थे, लेकिन वर्तमान में गांव के गांव खाली हो रहे हैं. ऐसे में कुछ शरारती तत्व आग देते हैं. इन शरारती तत्वों पर नकेल कसने के प्रयास किए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि चीड़ के पेड़ों से निकलने वाले पिरूल के कारण भी आग की घटनाएं सामने आ रही हैं.

वहीं, बुजुर्गों की मानें तो गांव के खाली होने से आग लगने के बाद उस क्षेत्र में कोई बुझाने वाला व्यक्ति नहीं होता है. वन विभाग भी कड़ी मशक्कत के बाद आग पर काबू तो पाया जाता है, लेकिन तब तक लाखों की वन संपदा जलकर नष्ट हो जाती है. ग्रामीणों ने बताया कि चीड़ के पेड़ों से निकलने वाले पिरूल और लीसा आग लगने के दौरान बारूद के रूप में काम करता है. जिसमें मात्र चिंगारी सुलगने पर ही पूरा जंगल जलकर खाक हो जाता है.

पौड़ीः उत्तराखंड के जंगल इन दिनों आग की चपेट में हैं. अब तक प्रदेश में आग लगने से लाखों रुपये की वन संपदा जलकर राख हो चुकी है. जंगलों में आग लगने से पेयजल संकट गहराने के साथ पर्यावरण भी प्रदूषित हो रहा है. विभाग की ओर से आग पर काबू पाने के कई प्रयास तो किए जा रहे हैं, लेकिन ग्रामीण और शरारती तत्व जंगल को सुलगा रहे हैं. वहीं, स्थानीय जानकारों और वन विभाग के डीएफओ ने आग लगने के कई कारण बताए हैं.

जंगलों में आग लगने के कारण बताते ग्रामीण और वन विभाग के डीएफओ संत राम.

बता दें कि अभी तक गढ़वाल सिविल क्षेत्र में वनाग्नि की 80 घटनाएं हो चुकी हैं. जिनमें 171 हेक्टेयर वन भूमि जल कर खाक हो गई है. साथ ही करीब 3 लाख रुपये का भी नुकसान हो चुका है. वन विभाग सिविल सोयम के डीएफओ संत राम ने जानकारी देते हुए बताया कि पौड़ी सिविल क्षेत्र में 30 क्रू स्टेशन स्थापित किया गया है. साथ ही 52 नियमित कर्मचारी और 120 संविदा कर्मचारियों को तैनात किया गया है.

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डीएफओ ने आग लगने के कारणों पर बात करते हुए बताया कि पहले ग्रामीण क्षेत्रों में घास के लिए लोग आग लगाते थे. साथ ही आग को रोकने में भी मदद करते थे, लेकिन वर्तमान में गांव के गांव खाली हो रहे हैं. ऐसे में कुछ शरारती तत्व आग देते हैं. इन शरारती तत्वों पर नकेल कसने के प्रयास किए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि चीड़ के पेड़ों से निकलने वाले पिरूल के कारण भी आग की घटनाएं सामने आ रही हैं.

वहीं, बुजुर्गों की मानें तो गांव के खाली होने से आग लगने के बाद उस क्षेत्र में कोई बुझाने वाला व्यक्ति नहीं होता है. वन विभाग भी कड़ी मशक्कत के बाद आग पर काबू तो पाया जाता है, लेकिन तब तक लाखों की वन संपदा जलकर नष्ट हो जाती है. ग्रामीणों ने बताया कि चीड़ के पेड़ों से निकलने वाले पिरूल और लीसा आग लगने के दौरान बारूद के रूप में काम करता है. जिसमें मात्र चिंगारी सुलगने पर ही पूरा जंगल जलकर खाक हो जाता है.

Intro:पौड़ी में लगातार जल रहे जंगलों के कारण जहां पेयजल संकट  गहराने लग गया है वहीं दूसरी ओर जल रहे जंगलों के कारण पर्यावरण भी दूषित होता जा रहा है विभाग की ओर से आग पर काबू पाने के लिए प्रयास तो किए जा रहे हैं लेकिन ग्रामीणों और शरारती तत्वों के कारण जंगलों में आग लगती जा रही है इस पर बढ़ती के बाद आसानी से उस पर काबू नहीं पाया जा रहा किसी की अनेकों बीमारियां भी उत्पन्न होती जा रही।


Body:ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले बुजुर्ग व युवाओं ने बताया कि आज गांव के गांव खाली होते जा रहे हैं जिसके कारण आग लगने के बाद उस क्षेत्र में कोई बुझाने वाला व्यक्ति तक नजर नहीं आ रहा विभाग की ओर से लंबे प्रयासों के बाद आग पर काबू तो पाया जाता है लेकिन तब तक लाखों की वन संपदा जलकर नष्ट हो जाती है ग्रामीणों ने बताया कि चीड़ के पेड़ों से निकलने वाले आज के समय में बारूद के रूप में काम कर रहा है जिसे मात्र चिंगारी की आवश्यकता है इसके बाद पूरे जंगल की जंगल जलकर खाक हो जा रहे हैं।

बाईट- मातबर सिंह रावत(ग्रामीण)

बाईट- मनमोहन पंत(ग्रामीण)


Conclusion:वन विभाग  सिविल सोयम  के डीएफओ संत राम ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में घास की प्राप्ति के लिए ग्रामीण आग लगाते थे और आग को रोकने में भी मदद करते थे लेकिन वर्तमान में गांव के गांव खाली हो रहे हैं और कुछ शरारती तत्व आग लगा रहे हैं उन पर नकेल कसने के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं वहीं दूसरी ओर चीड़ के पेड़ों से निकलने वाले पिरूल के कारण कई दुर्घटनाएं देखने को मिल रही हैं जिसकी सफाई के लिए ग्रामीण जंगली क्षेत्रों में आग लगा रहे हैं। उन्होंने बताया कि वर्तमान में पौड़ी सिविल क्षेत्र में 30 क्रू स्टेशनों के निर्माण किया गया है साथ ही 52 नियमित कर्मचारी व  120 संविदा कर्मचारियों को काम पर रखा गया है। अभी तक गढ़वाल सिविल क्षेत्र में 80 घटनाएं हो चुकी हैं जिनमें 171 हेक्टेयर वन भूमि जल कर खाक हो गई है वही लगभग 3 लाख का नुकसान हो चुका है।

बाईट-संत राम(प्रभागीय वनाधिकारी सिविल एवं सोयम )
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