श्रीनगर: देवभूमि उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल में खिलने वाला बुरांश केवल वनों का सौंदर्य ही नहीं बल्कि स्वरोजगार के साथ ही औषधि भी प्रदान करता है. लेकिन इस बार कोरोना ने बुरांश को मिठास देने से पहले ही मुरझा दिया है. हृदय रोग समेत कई अन्य रोगों के लिये फायदेमंद बुरांश के जूस से इस साल लोगों को महरूम रहना पड़ सकता है.
ग्रामीण क्षेत्रों में इस साल बुरांश काफी मात्रा में खिला है, लेकिन लॉकडाउन की वजह से सरकारी व निजी जूस बनाने वाले संस्थान बंद होने, वाहन न चलने और लॉकडाउन के कारण बुरांश का फूल समय से नहीं तोड़ पाए. ऐसे में बुरांश पेड़ों पर ही खराब हो रहा है. कई लोग बुरांश के जूस से अपनी आर्थिकी भी चलाते हैं. ऐसे में उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है.
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श्रीनगर फल संरक्षण केंद्र के अधिकारियों का कहना है कि हर साल इस समय तक ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी मात्रा में काश्तकार बुरांश के फूल लेकर जूस बनवाने के लिये श्रीनगर पहुंचते थे. लेकिन इस बार लॉकडाउन की वजह से बुरांश के जूस में कमी आई है. जहां अभी तक विभाग 400 से 500 लीटर तक बुरांश का जूस बना लेता था वहीं इस बार 40 लीटर जूस भी नहीं बन पाया है.
बुरांश के औषधीय गुण
यह वृक्ष जनवरी से अप्रैल माह तक बेरोजगारों के लिए स्वरोजगार के द्वार भी खोलता है. इससे बेरोजगारों का जीवन स्तर सुधरता है. बुरांश के पेड़ समुद्र तल से करीब 1,250 से 2,000 मीटर की ऊंचाई पर पाए जाते हैं. बुरांश बुखार, खांसी, हृदय रोग, ब्लड प्रेशर, लीवर के रोगियों के लिए लाभदायक होता है. उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में लाल रंग का बुरांश पाया जाता है. यह सफेद और नीले रंग का भी होता है. उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में बुरांश के फूलों का जूस, मुरब्बा, चटनी बनायी जाती है. चीन, नेपाल और भूटान में भी बुरांश काफी मात्रा में पाया जाता है.