ETV Bharat / state

World Elephant Day: कॉर्बेट में बढ़ा हाथियों का कुनबा, 'जंगल के भगवान' के लिए कम पड़ रही जगह - कॉर्बेट पार्क में हाथियों की संख्या बढ़ी

वन्यजीव संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभा रहे उत्तराखंड में राष्ट्रीय विरासत पशु हाथी का कुनबा निरंतर बढ़ रहा है. हाथियों के लिए प्रसिद्ध राजाजी नेशनल पार्क के साथ टाइगर के फेमस कॉर्बेट नेशनल पार्क में भी हाथियों का कुनबा बढ़ रहा है. लेकिन उनके सिमटते गलियारे चिंता का विषय बनते जा रहे हैं.

World Elephant Day
World Elephant Day
author img

By

Published : Aug 12, 2021, 3:01 AM IST

Updated : Aug 12, 2021, 2:34 PM IST

देहरादून: 12 अगस्त को हर साल विश्व हाथी दिवस यानी वर्ल्ड ऐलीफैंट डे (world elephant day) मनाया जाता है. हाथी को राष्ट्रीय विरासत पशु घोषित किया गया है. विश्व भर में हाथियों के संरक्षक और जागरूकता बढ़ाने के लिए 2012 से विश्व हाथी दिवस मनाया जा रहा है. उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क (Jim Corbett National Park) ने बाघों के साथ हाथियों के संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाई है. यही कारण है कि कॉर्बेट पार्क में हाथियों का कुनबा लगातार बढ़ रहा है.

कॉर्बेट में बढ़ा कुनबा: जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क (Corbett Park) के आंकड़ों पर गौर करें तो 2010 में यहां 979 हाथी थे. 2015 में ये संख्या बढ़कर 1035 हो गई और 2020 कॉर्बेट में हाथियों की संख्या बढ़कर 1223 तक पहुंच गई. 2020 के आंकड़ों के मुताबिक कॉर्बेट टाइगर रिजर्व (सीटीआर) में 1011 और कालागढ़ टाइगर रिजर्व में 213 हाथी चिन्हित हुए थे.

आज है हाथियों का दिन

पढ़ें- International Tiger Day: कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हैं देश के सबसे ज्यादा बाघ

रेंज में हाथियों का रिकॉर्ड: कॉर्बेट नेशनल पार्क में रेंज के अनुसार ढिकाला में 244, सर्पढुली में 195, बिजरानी में 121, ढेला में 65, झिरना में 152, कालागढ़ में 234, सोना नदी में 24, पाखरो में 31, पलैंन में 56, अदनाला में 54, मैदावन में 22, मन्दाल में 26 हाथी रिकॉर्ड हैं.

तीन साल में 15 हाथियों की मौत हुई: वहीं पिछले तीन सालों में कॉर्बेट नेशनल पार्क में 15 हाथियों की मौत हुई है. इसमें से 11 तो आपसी संघर्ष में मरे हैं. जबकि तीन की मौत बीमारी एवं पहाड़ी से गिरने की वजह से एक हाथी की मौत हुई है.

हाथी को राष्ट्रीय विरासत का दर्जा मिला: कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हाथियों की बढ़ती संख्या से कॉर्बेट प्रशासन काफी गदगद है. वन्य जीव प्रेमी संजय छिम्वाल बताते हैं कि हाथी विरासत पशु घोषित है. हाथी को राष्ट्रीय विरासत (National Heritage) का दर्जा मिला हुआ है.

पढ़ें- आबादी की तरफ आ रहे हैं कॉर्बेट पार्क के 'परेशान' हाथी, जानिए बड़ी वजह

संजय छिम्वाल का कहना है कि हाथी को बचाया जाना बेहद जरूरी है. हाथी को लॉर्ड ऑफ द फॉरेस्ट का दर्जा मिला हुआ है. क्योंकि हाथी एक जंगल में नहीं रुकते हैं. यह एक जंगल से दूसरी जंगल में जाते हैं. हाथी पेड़ों की काट-छांट भी करते हैं. हाथी संवर्धन भी करते हैं. निश्चित रूप से हाथी को बचाने की जरूरत है. संजय छिम्वाल ने बताया कि बीते कुछ सालों में कॉर्बेट के अंदर हाथियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है. यह उसके संरक्षण के प्रयासों का ही नतीजा है कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में लगातार हाथियों का कुनबा बढ़ रहा है.

वहीं कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक राहुल कुमार ने कहा कि विश्व हाथी दिवस पर हाथियों के संरक्षण के लिए लोगों में जागरूकता लाने के लिए भारत सरकार की ओर से यह कार्यक्रम हर साल चलाया जा रहा है. हाथियों के संरक्षण के लिए हमारी तरफ से लगातार जागरूकता कार्यक्रम किए जाते हैं.

5 साल में एक बार होती गणना: भारत में हाथी मुख्य रूप से मध्य एवं दक्षिणी पश्चिमी घाट, उत्तर-पूर्व भारत, पूर्वी एवं उत्तरी भारत व दक्षिणी प्रायद्वीपीय के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं. इन्‍हें भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 में 'पशु-पक्षियों की संकटग्रस्त प्रजातियों' के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय में शामिल किया गया है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारत में हर पांच साल में हाथियों की गिनती होती है.

पढ़ें- कॉर्बेट में नन्हें 'सावन' ने सूंड से काटा 130 किलो का केक, देखें तस्वीरें

350-500 वर्ग किलोमीटर पलायन करता है हाथी: वन एवं वन्यजीव संरक्षण विशेषज्ञों के अनुसार हाथियों के झुंड प्रतिवर्ष तकरीबन 350-500 वर्ग किलोमीटर पलायन करते हैं. परंतु तेजी से खंडित होते प्राकृतिक परिदृश्यों ने इस वृहद् आकर वाले स्तनधारी जानवरों को मनुष्यों की रिहायशी बस्ती में प्रवेश करने को मजबूर कर दिया है. यही कारण है कि आए दिन समाचारों में मनुष्य-पशु संघर्ष की खबरें मिल जाती हैं. हाथियों के जीवन को सुरक्षित करने के उद्देश्य से ही हाथी गलियारे का निर्माण किया गया. हाथी गलियारा न केवल हाथियों के लिए बल्कि मनुष्यों की सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है.

उत्तराखंड में 11 हाथी गलियारे: एक अध्ययन 'राइट ऑफ पैसेज' में भारत में अवस्थित 101 हाथी गलियारों (ऐलीफैंट कॉरीडोर) की जानकारी प्रदान की गई थी. गौरतलब है कि इन 101 गलियारों में से 28 दक्षिण भारत में हैं, जबकि मध्य भारत में 25, पूर्वोत्तर भारत में 23, उत्तरी पश्चिम बंगाल में 14 और उत्तर-पश्चिमी भारत में 11 हाथी गलियारे हैं.

जिस क्षेत्र में अधिक से अधिक जंगलाच्छादित क्षेत्र हैं, वहां उसी के अनुपात में अधिक हाथी गलियारे हैं. यदि मानव बस्तियों के समीप पशु निवास स्थानों को स्थापित किया जाएगा, तो भविष्य में मानव-पशु संघर्ष की घटनाओं में और वृद्धि होना कोई हैरानी की बात नहीं होगी. सबसे ज्यादा हाथी गलियारे प. बंगाल (14) में हैं, उसके बाद तमिलनाडु (13) और उत्तराखंड (11) का स्थान आता है.

देहरादून: 12 अगस्त को हर साल विश्व हाथी दिवस यानी वर्ल्ड ऐलीफैंट डे (world elephant day) मनाया जाता है. हाथी को राष्ट्रीय विरासत पशु घोषित किया गया है. विश्व भर में हाथियों के संरक्षक और जागरूकता बढ़ाने के लिए 2012 से विश्व हाथी दिवस मनाया जा रहा है. उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क (Jim Corbett National Park) ने बाघों के साथ हाथियों के संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाई है. यही कारण है कि कॉर्बेट पार्क में हाथियों का कुनबा लगातार बढ़ रहा है.

कॉर्बेट में बढ़ा कुनबा: जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क (Corbett Park) के आंकड़ों पर गौर करें तो 2010 में यहां 979 हाथी थे. 2015 में ये संख्या बढ़कर 1035 हो गई और 2020 कॉर्बेट में हाथियों की संख्या बढ़कर 1223 तक पहुंच गई. 2020 के आंकड़ों के मुताबिक कॉर्बेट टाइगर रिजर्व (सीटीआर) में 1011 और कालागढ़ टाइगर रिजर्व में 213 हाथी चिन्हित हुए थे.

आज है हाथियों का दिन

पढ़ें- International Tiger Day: कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हैं देश के सबसे ज्यादा बाघ

रेंज में हाथियों का रिकॉर्ड: कॉर्बेट नेशनल पार्क में रेंज के अनुसार ढिकाला में 244, सर्पढुली में 195, बिजरानी में 121, ढेला में 65, झिरना में 152, कालागढ़ में 234, सोना नदी में 24, पाखरो में 31, पलैंन में 56, अदनाला में 54, मैदावन में 22, मन्दाल में 26 हाथी रिकॉर्ड हैं.

तीन साल में 15 हाथियों की मौत हुई: वहीं पिछले तीन सालों में कॉर्बेट नेशनल पार्क में 15 हाथियों की मौत हुई है. इसमें से 11 तो आपसी संघर्ष में मरे हैं. जबकि तीन की मौत बीमारी एवं पहाड़ी से गिरने की वजह से एक हाथी की मौत हुई है.

हाथी को राष्ट्रीय विरासत का दर्जा मिला: कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हाथियों की बढ़ती संख्या से कॉर्बेट प्रशासन काफी गदगद है. वन्य जीव प्रेमी संजय छिम्वाल बताते हैं कि हाथी विरासत पशु घोषित है. हाथी को राष्ट्रीय विरासत (National Heritage) का दर्जा मिला हुआ है.

पढ़ें- आबादी की तरफ आ रहे हैं कॉर्बेट पार्क के 'परेशान' हाथी, जानिए बड़ी वजह

संजय छिम्वाल का कहना है कि हाथी को बचाया जाना बेहद जरूरी है. हाथी को लॉर्ड ऑफ द फॉरेस्ट का दर्जा मिला हुआ है. क्योंकि हाथी एक जंगल में नहीं रुकते हैं. यह एक जंगल से दूसरी जंगल में जाते हैं. हाथी पेड़ों की काट-छांट भी करते हैं. हाथी संवर्धन भी करते हैं. निश्चित रूप से हाथी को बचाने की जरूरत है. संजय छिम्वाल ने बताया कि बीते कुछ सालों में कॉर्बेट के अंदर हाथियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है. यह उसके संरक्षण के प्रयासों का ही नतीजा है कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में लगातार हाथियों का कुनबा बढ़ रहा है.

वहीं कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक राहुल कुमार ने कहा कि विश्व हाथी दिवस पर हाथियों के संरक्षण के लिए लोगों में जागरूकता लाने के लिए भारत सरकार की ओर से यह कार्यक्रम हर साल चलाया जा रहा है. हाथियों के संरक्षण के लिए हमारी तरफ से लगातार जागरूकता कार्यक्रम किए जाते हैं.

5 साल में एक बार होती गणना: भारत में हाथी मुख्य रूप से मध्य एवं दक्षिणी पश्चिमी घाट, उत्तर-पूर्व भारत, पूर्वी एवं उत्तरी भारत व दक्षिणी प्रायद्वीपीय के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं. इन्‍हें भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 में 'पशु-पक्षियों की संकटग्रस्त प्रजातियों' के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय में शामिल किया गया है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारत में हर पांच साल में हाथियों की गिनती होती है.

पढ़ें- कॉर्बेट में नन्हें 'सावन' ने सूंड से काटा 130 किलो का केक, देखें तस्वीरें

350-500 वर्ग किलोमीटर पलायन करता है हाथी: वन एवं वन्यजीव संरक्षण विशेषज्ञों के अनुसार हाथियों के झुंड प्रतिवर्ष तकरीबन 350-500 वर्ग किलोमीटर पलायन करते हैं. परंतु तेजी से खंडित होते प्राकृतिक परिदृश्यों ने इस वृहद् आकर वाले स्तनधारी जानवरों को मनुष्यों की रिहायशी बस्ती में प्रवेश करने को मजबूर कर दिया है. यही कारण है कि आए दिन समाचारों में मनुष्य-पशु संघर्ष की खबरें मिल जाती हैं. हाथियों के जीवन को सुरक्षित करने के उद्देश्य से ही हाथी गलियारे का निर्माण किया गया. हाथी गलियारा न केवल हाथियों के लिए बल्कि मनुष्यों की सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है.

उत्तराखंड में 11 हाथी गलियारे: एक अध्ययन 'राइट ऑफ पैसेज' में भारत में अवस्थित 101 हाथी गलियारों (ऐलीफैंट कॉरीडोर) की जानकारी प्रदान की गई थी. गौरतलब है कि इन 101 गलियारों में से 28 दक्षिण भारत में हैं, जबकि मध्य भारत में 25, पूर्वोत्तर भारत में 23, उत्तरी पश्चिम बंगाल में 14 और उत्तर-पश्चिमी भारत में 11 हाथी गलियारे हैं.

जिस क्षेत्र में अधिक से अधिक जंगलाच्छादित क्षेत्र हैं, वहां उसी के अनुपात में अधिक हाथी गलियारे हैं. यदि मानव बस्तियों के समीप पशु निवास स्थानों को स्थापित किया जाएगा, तो भविष्य में मानव-पशु संघर्ष की घटनाओं में और वृद्धि होना कोई हैरानी की बात नहीं होगी. सबसे ज्यादा हाथी गलियारे प. बंगाल (14) में हैं, उसके बाद तमिलनाडु (13) और उत्तराखंड (11) का स्थान आता है.

Last Updated : Aug 12, 2021, 2:34 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.