नैनीताल: अगर इंसान कुछ करने की ठान ले तो मंजिलें आसान हो जाती हैं. कुछ ऐसा ही जज्बा इन दिनों दौनीयाखाल के ग्रामीणों में देखने को मिल रहा है, जिन्होंने श्रमदान कर अधूरी सड़क को गांव तक पहुंचाने का जिम्मा उठाया है. इस काम में गांव के नौजवानों के साथ बुजुर्ग भी हाथों में फावड़ा लेकर पूरी शिद्दत से जुटे हुए हैं.
हवा हवाई साबित हुए वादे
भले ही उत्तराखंड सरकार प्रदेश में सड़कों का जाल बिछाने के दावे और वादे कर रही है, लेकिन सरकार के सारे दावे और वादे हवा-हवाई साबित हो रहे हैं. क्योंकि नैनीताल जिले से महज 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित महरोड़ा-दौनीयाखाल मार्ग आजादी के 71 साल बाद भी नहीं बना है, जिस वजह से ग्रामीणों को गुलामों जैसी जिंदगी बितानी पड़ रही है. ग्रामीण कई बार लोक निर्माण विभाग के उच्चाधिकारियों से अपने गांव में सड़क बनाने की गुहार लगा चुके हैं, लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों के कान में जूं तक नहीं रेंगती. इस वजह से ग्रामीण आज मूलभूत सुविधाओं के लिए दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है.
विधायक निधि से एक किमी ही बन सकी सड़क
लंबे समय से स्थानीय ग्रामीण महरोड़ा के दौनीयाखाल में सड़क बनाने की मांग कर रहे ग्रामीणों को नैनीताल विधायक संजीव आर्य ने विधायक निधि से 4 लाख का बजट दिया, लेकिन इस बजट में महज 1 किमी ही सड़क बन पाई. विधायक निधि से दी गई धनराशि खत्म होने के बाद ठेकेदार ने सड़क बनाने का काम बंद कर दिया, जिसके बाद ग्रामीण गांव को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए अब स्वयं श्रमदान कर सड़क बनाने में जुट गए.
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दो किमी तक बनी सड़क
पिछले 165 दिनों से श्रमदान कर सड़क बनाने में जुटे ग्रामीणों ने अपने संसाधनों से 2 किमी सड़क बना डाली. ग्रामीणों का कहना है कि सड़क न होने से गांव के वृद्ध लोगों, गर्भवती महिलाओं, बीमारों को अस्पताल लाने ले जाने के लिए 5 किलोमीटर पैदल डोली के सहारे मुख्य सड़क तक लाना पड़ता है. इसके साथ ही बच्चों को स्कूल आने जाने में भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.