नैनीतालः कहा जाता है कि नैना देवी मां की कृपा से नेपाल की एक बच्ची की आंख लौट आयी थी. बच्ची जन्मांध थी. परिजन नेपाल से नैनीताल के नैना देवी मंदिर पहुंचे और देवी मां से अपनी बेटी की आंख ठीक करने की प्रार्थना की थी. मान्यता है कि मां ने ये मुराद कबूली जो किसी चमत्कार से कम नहीं है.
शारदीय नवरात्रि के पहले दिन मां नैना देवी मंदिर में श्रद्धालु पूजा अर्चना के लिए पहुंचे. मान्यता है कि देवी सती की आंख इस स्थान पर गिरी थी और तभी से इस स्थान का नाम नैना देवी पड़ा. पुराणों में बताया गया है कि देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति ने जब विशाल यज्ञ में अपने दामाद भगवान शिव को आमंत्रण नहीं दिया तो इस कदम से खिन्न होकर देवी सती यज्ञ के हवन कुंड में कूद गई थी और अपने प्राणों की आहूति दे दी थी. पत्नी वियोग से दुखी भगवान शिव देवी सती का शरीर लेकर पूरे ब्रह्मांड में घुमाने लगे. सृष्टि का संतुलन बिगड़ता देख भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शव के खंड-खंड कर दिया था. तब सती की बाई आंख नैनीताल के इस हिस्से में गिरी और यहां पर मां नैना देवी के मंदिर का निर्माण कराया गया.
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मां नैना देवी का मंदिर 51 शक्ति पीठ में से एक माना जाता है. ये भी कहा जाता है कि देवी सती के शरीर के हिस्से जिन-जिन स्थानों पर पड़े, वहां शक्ति पीठों की स्थापना की गई. उनमें नैनीताल का नैना देवी मंदिर भी है. नैनीताल के इस मंदिर में मां के साक्षात नैन विराजते हैं. ये भी कहा जाता है कि नैना देवी बिना कुछ मांगे ही भक्तों की सभी मुरादें पूरी करती हैं. शारदीय नवरात्रि पर इस मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. इनमें सिर्फ स्थानीय लोग ही नहीं पर्यटक भी शामिल हैं. नवरात्रि के पूरे 9 दिनों तक मां नैना देवी में भव्य पूजा अर्चना होती है.