नैनीताल: ऋषिकेश के बीरपुर खुर्द में मुनि चिदानंद द्वारा वन भूमि में किए गए अतिक्रमण मामले पर हाई कोर्ट ने सख्त रूख अपनाया हुआ है. कोर्ट ने राज्य सरकार को जवाब मांगा है कि साल 2000 से लेकर साल 2020 तक यानी 20 सालों तक मुनि चिदानंद ने भूमि पर जो अतिक्रमण किया था, उसका बाजार भाव के हिसाब से कितना किराया लिया जा सकता है?
शुक्रवार को इस मामले पर कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ में सुनवाई हुई थी. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि मुनि चिदानंद के अवैध अतिक्रमण को ध्वस्त करने के लिए सरकार ने जिस कंपनी को 54 लाख रुपए में ठेका दिया उस कंपनी को सरकार मात्र 10 लाख रुपए दे रही है और शेष धनराशि मुनि चिदानंद को दे रही है, जिससे स्पष्ट होता है कि राज्य सरकार मुनि चिदानंद को लाभ देना चाहती है. जिस पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने राज्य सरकार को अपना जवाब पेश करने के आदेश दिए हैं.
पढ़ें- आज मिले 530 नए कोरोना संक्रमित, पिछले 24 घंटे में पांच की मौत
बता दें कि हरिद्वार निवासी अर्चना शुक्ला ने नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि वीरपुर खुर्द वीरभद्र में स्वामी चिदानंद ने रिजर्व फॉरेस्ट की 35 बीघा वन भूमि पर नदी किनारे कब्जा कर किया है, जहां उन्होंने 52 बड़े कमरे समेत एक बड़े हॉल और बड़ी गौशाला का निर्माण कर लिया गया है. चिदानंद के रसूखदार संबंध होने के कारण वन विभाग व राजस्व विभाग ने उन पर आजतक कोई कार्रवाई नहीं की है. स्थानीय लोग लगातार इसकी शिकायत कर रहे हैं. स्वामी चिदानंद के द्वारा बनाए गए गौशाला और आश्रम का सीवरेज भी नदी में ज्यादा जा रहा है. जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है. लिहाजा, स्वामी चिदानंद द्वारा किए गए इस अतिक्रमण को हटाया जाए.