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उत्तराखंड में मानव वन्यजीव संघर्ष ने बढ़ाई चिंता, HC ने इन्हें दिए SOP बनाने के निर्देश - बाघ के हमले

उत्तराखंड में इंसानों और वन्यजीवों के बीच संघर्ष में लगातार इजाफा हो रहा है. ऐसे में मानव वन्यजीव संघर्ष पर लगाम लगाने की मांग को लेकर नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है. आज कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए प्रमुख वन सचिव को हाथी, गुलदार, भालू समेत अन्य जंगली जानवरों के हमलों के लिए अलग-अलग एसओपी बनाने के निर्देश दिए हैं. साथ ही हर जिले में एक्सपर्ट की कमेटी बनाने को कहा है.

Human Wildlife Conflict
मानव वन्यजीव संघर्ष उत्तराखंड
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Published : Jun 14, 2023, 5:00 PM IST

नैनीतालः उत्तराखंड में मानव वन्यजीव संघर्ष चिंताजनक स्थिति पर पहुंच गई है. आए दिन वन्यजीवों के हमले सामने आते रहते हैं. जिसमें कई लोग जान भी गंवा रहे हैं. ऐसे में मानव वन्यजीव संघर्ष को नियंत्रित करने से जुड़ी याचिका नैनीताल हाईकोर्ट में दायर की गई है. जिस पर आज हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट ने मामले में सख्त रुख अपनाते हुए एसओपी तैयार करने के निर्देश दिए हैं.

उत्तराखंड में मानव वन्यजीव संघर्ष को नियंत्रित करने की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने प्रमुख वन सचिव आरके सुधांशु को जरूरी दिशा निर्देश दिए. कोर्ट ने प्रमुख वन सचिव को हाथी, भालू और गुलदार के हमलों के लिए अलग-अलग एसओपी बनाने के निर्देश दिए.
संबंधित खबरें पढ़ेंः चिन्यालीसौड़ में ग्रामीण पर गुलदार ने किया हमला, मानव वन्यजीव संघर्ष पर फिर उठे सवाल

हाईकोर्ट ने उत्तराखंड के हर जिले में एक पैनल बनाने को कहा है, जिसमें एक्सपर्ट मौजूद हों. कोर्ट ने वन्यजीव हमलों से पीड़ित व्यक्तियों के विचाराधीन मामलों का जल्द से जल्द निस्तारण करने के निर्देश जारी करने के निर्देश दिए. साथ ही 17 अगस्त तक विस्तृत रिपोर्ट पेश करने को कहा है. अब मानव वन्यजीव संघर्ष से जुड़े इस मामले की अगली सुनवाई 17 अगस्त को होगी.

दरअसल, सामाजिक कार्यकर्ता अनु पंत ने नैनीताल हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है. जिसमें उन्होंने कहा है कि नवंबर 2022 में इस मामले की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव वन को दिशा निर्देश दिए थे कि वो मानव वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए विशेषज्ञों की समिति गठित करें.
संबंधित खबरें पढ़ेंः जंगल में बढ़ रही दो ताकतवर जानवरों की जंग, आपसी संघर्ष में गंवा रहे अपनी जान

इस मामले में पूर्व में तत्कालीन प्रमुख वन संरक्षक विनोद सिंघल की ओर से दाखिल शपथ पत्र में केवल कागजी कार्रवाई का उल्लेख था. जबकि, धरातल पर मानव वन्यजीव संघर्ष को रोकने का कुछ उल्लेख नहीं था. उनका ये भी आरोप था कि पीसीसीएफ की ओर से कमेटी में जानबूझकर एक्सपर्ट नहीं रखे गए हैं.

आज दोबारा इस मामले की सुनवाई में सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि पूर्व के इस आदेश की अनुपालन नहीं हुआ है. इसलिए मामले में और समय दिया जाए. याचिका दायर करने के बाद अभी तक करीब 17 लोग उत्तराखंड में वन्यजीवों का शिकार हो चुके हैं, जिसमें पिछले महीने रानीखेत की घटना भी शामिल है.
संबंधित खबरें पढ़ेंः उत्तराखंड में कब थमेगा मानव वन्यजीव संघर्ष? करोड़ों खर्च कर दिए नतीजा फिर भी सिफर

नैनीतालः उत्तराखंड में मानव वन्यजीव संघर्ष चिंताजनक स्थिति पर पहुंच गई है. आए दिन वन्यजीवों के हमले सामने आते रहते हैं. जिसमें कई लोग जान भी गंवा रहे हैं. ऐसे में मानव वन्यजीव संघर्ष को नियंत्रित करने से जुड़ी याचिका नैनीताल हाईकोर्ट में दायर की गई है. जिस पर आज हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट ने मामले में सख्त रुख अपनाते हुए एसओपी तैयार करने के निर्देश दिए हैं.

उत्तराखंड में मानव वन्यजीव संघर्ष को नियंत्रित करने की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने प्रमुख वन सचिव आरके सुधांशु को जरूरी दिशा निर्देश दिए. कोर्ट ने प्रमुख वन सचिव को हाथी, भालू और गुलदार के हमलों के लिए अलग-अलग एसओपी बनाने के निर्देश दिए.
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हाईकोर्ट ने उत्तराखंड के हर जिले में एक पैनल बनाने को कहा है, जिसमें एक्सपर्ट मौजूद हों. कोर्ट ने वन्यजीव हमलों से पीड़ित व्यक्तियों के विचाराधीन मामलों का जल्द से जल्द निस्तारण करने के निर्देश जारी करने के निर्देश दिए. साथ ही 17 अगस्त तक विस्तृत रिपोर्ट पेश करने को कहा है. अब मानव वन्यजीव संघर्ष से जुड़े इस मामले की अगली सुनवाई 17 अगस्त को होगी.

दरअसल, सामाजिक कार्यकर्ता अनु पंत ने नैनीताल हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है. जिसमें उन्होंने कहा है कि नवंबर 2022 में इस मामले की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव वन को दिशा निर्देश दिए थे कि वो मानव वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए विशेषज्ञों की समिति गठित करें.
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इस मामले में पूर्व में तत्कालीन प्रमुख वन संरक्षक विनोद सिंघल की ओर से दाखिल शपथ पत्र में केवल कागजी कार्रवाई का उल्लेख था. जबकि, धरातल पर मानव वन्यजीव संघर्ष को रोकने का कुछ उल्लेख नहीं था. उनका ये भी आरोप था कि पीसीसीएफ की ओर से कमेटी में जानबूझकर एक्सपर्ट नहीं रखे गए हैं.

आज दोबारा इस मामले की सुनवाई में सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि पूर्व के इस आदेश की अनुपालन नहीं हुआ है. इसलिए मामले में और समय दिया जाए. याचिका दायर करने के बाद अभी तक करीब 17 लोग उत्तराखंड में वन्यजीवों का शिकार हो चुके हैं, जिसमें पिछले महीने रानीखेत की घटना भी शामिल है.
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