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दुष्कर्म पीड़ित नाबालिग के गर्भपात को नैनीताल HC ने दी अनुमति, खास है ये फैसला

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नाबालिग रेप पीड़िता के गर्भपात मामले में सुनवाई की. कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड के निर्देशन में मुख्य चिकित्सा अधिकारी को 48 घंटे के भीतर स्त्री रोग विशेषज्ञ की देखरेख में गर्भपात की प्रक्रिया शुरू कराने के निर्देश दिए.

Nainital High Court
नैनीताल हाईकोर्ट
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Published : Feb 7, 2022, 9:46 AM IST

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक 16 वर्षीय रेप पीड़िता के मामले पर सुनवाई की. कोर्ट ने मामले को सुनने के बाद मेडिकल बोर्ड को निर्देश दिए हैं कि पीड़िता की जान बचाने के लिए 29 सप्ताह के गर्भ का गर्भपात कराया जाए. कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि गर्भ में पल रहे भ्रूण की बजाय दुष्कर्म पीड़िता की जिंदगी अधिक महत्वपूर्ण है. यह आदेश इसलिए अहम है, क्योंकि मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी अधिनियम के अंतर्गत गर्भावस्था के 24 सप्ताह तक ही गर्भपात की अनुमति देने का प्रावधान है. इस केस में पीड़िता की गर्भावस्था की अवधि 29 सप्ताह पार कर चुकी थी. कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड को यह भी आदेश दिए हैं कि पीड़िता का गर्भपात सुरक्षित तरीके से कराया जाए. मामले की सुनवाई वेकेशन जज न्यायामूर्ति आलोक कुमार वर्मा की एकलपीठ में हुई.

मामले के अनुसार गढ़वाल मंडल की पीड़िता ने पिता के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर कर गर्भपात की अनुमति देने को लेकर याचिका दायर की थी. याचिकाकर्ता की अधिवक्ता मोनिका पंत के अनुसार पीड़िता 15 साल नौ माह की है और दुष्कर्म के कारण गर्भवती हुई. इन परिस्थितियों में यदि याचिकाकर्ता को अपनी गर्भावस्था जारी रखने के लिए मजबूर किया जाता है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके जीवन को मानवीय गरिमा के साथ जीने के अधिकार के विपरीत होगा. पीड़िता को मानसिक चोट भी लगेगी, अगर बच्चा जीवित पैदा होता है तो वह उसे क्या नाम देगी और उसका पालन पोषण किस आधार पर करेगी. जबकि वह खुद नाबालिग है. वह इस क्षण को कभी भी याद नहीं रखना चाहती.

पढ़ें-नंदा राजजात यात्रा के सड़क निर्माण में अनियमितता मामले में HC में सुनवाई, कोर्ट ने मांगा जवाब

12 जनवरी को आरोपियों के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज किया गया. 11 जनवरी को पीड़िता की सोनोग्राफी कराई गई, जिसमें 27 सप्ताह 4 दिन से अधिक के गर्भ का पता चला. पूर्व में कोर्ट के आदेश पर 24 जनवरी को मेडिकल बोर्ड का गठन कर रिपोर्ट कोर्ट में पेश की गई. जिसमें गर्भ 28 सप्ताह पांच दिन का पाया गया. बोर्ड ने निष्कर्ष निकाला कि गर्भपात मां के लिए जोखिम है और पीड़िता की जो उम्र है उसमें गर्भावस्था को समाप्त करना ठीक नहीं है. कोर्ट ने आदेश दिया कि मेडिकल बोर्ड के निर्देशन में मुख्य चिकित्सा अधिकारी 48 घंटे के भीतर स्त्री रोग विशेषज्ञ की देखरेख में गर्भपात की प्रक्रिया शुरू कराएं.

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक 16 वर्षीय रेप पीड़िता के मामले पर सुनवाई की. कोर्ट ने मामले को सुनने के बाद मेडिकल बोर्ड को निर्देश दिए हैं कि पीड़िता की जान बचाने के लिए 29 सप्ताह के गर्भ का गर्भपात कराया जाए. कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि गर्भ में पल रहे भ्रूण की बजाय दुष्कर्म पीड़िता की जिंदगी अधिक महत्वपूर्ण है. यह आदेश इसलिए अहम है, क्योंकि मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी अधिनियम के अंतर्गत गर्भावस्था के 24 सप्ताह तक ही गर्भपात की अनुमति देने का प्रावधान है. इस केस में पीड़िता की गर्भावस्था की अवधि 29 सप्ताह पार कर चुकी थी. कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड को यह भी आदेश दिए हैं कि पीड़िता का गर्भपात सुरक्षित तरीके से कराया जाए. मामले की सुनवाई वेकेशन जज न्यायामूर्ति आलोक कुमार वर्मा की एकलपीठ में हुई.

मामले के अनुसार गढ़वाल मंडल की पीड़िता ने पिता के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर कर गर्भपात की अनुमति देने को लेकर याचिका दायर की थी. याचिकाकर्ता की अधिवक्ता मोनिका पंत के अनुसार पीड़िता 15 साल नौ माह की है और दुष्कर्म के कारण गर्भवती हुई. इन परिस्थितियों में यदि याचिकाकर्ता को अपनी गर्भावस्था जारी रखने के लिए मजबूर किया जाता है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके जीवन को मानवीय गरिमा के साथ जीने के अधिकार के विपरीत होगा. पीड़िता को मानसिक चोट भी लगेगी, अगर बच्चा जीवित पैदा होता है तो वह उसे क्या नाम देगी और उसका पालन पोषण किस आधार पर करेगी. जबकि वह खुद नाबालिग है. वह इस क्षण को कभी भी याद नहीं रखना चाहती.

पढ़ें-नंदा राजजात यात्रा के सड़क निर्माण में अनियमितता मामले में HC में सुनवाई, कोर्ट ने मांगा जवाब

12 जनवरी को आरोपियों के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज किया गया. 11 जनवरी को पीड़िता की सोनोग्राफी कराई गई, जिसमें 27 सप्ताह 4 दिन से अधिक के गर्भ का पता चला. पूर्व में कोर्ट के आदेश पर 24 जनवरी को मेडिकल बोर्ड का गठन कर रिपोर्ट कोर्ट में पेश की गई. जिसमें गर्भ 28 सप्ताह पांच दिन का पाया गया. बोर्ड ने निष्कर्ष निकाला कि गर्भपात मां के लिए जोखिम है और पीड़िता की जो उम्र है उसमें गर्भावस्था को समाप्त करना ठीक नहीं है. कोर्ट ने आदेश दिया कि मेडिकल बोर्ड के निर्देशन में मुख्य चिकित्सा अधिकारी 48 घंटे के भीतर स्त्री रोग विशेषज्ञ की देखरेख में गर्भपात की प्रक्रिया शुरू कराएं.

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