हल्द्वानी: दिवाली पर मां लक्ष्मी को विशेष रूप से खिलौने-बताशे का प्रसाद चढ़ाया जाता है. दिवाली की पूजन सामग्री में खिलौने-बताशे जरूर खरीदे जाते हैं और इनके बगैर तो लक्ष्मी पूजा जैसे अधूरी सी लगती है. ऐसे में हल्द्वानी में एक मुस्लिम परिवार सामाजिक सौहार्द की मिसाल पेश करते हुए खिलौने-बताशे बनाने में जुटा हुआ है.
हल्द्वानी के बनभूलपुरा के गली नंबर एक में रहने वाले लल्लन मियां का परिवार हर साल दिवाली पर बेसब्री से इंतजार करता है. क्योंकि रोशनी का त्योहार दिवाली लल्लन मियां के परिवार के लिए उम्मीद की किरण लेकर आता है. लल्लन मियां के पुत्र इनायत वारसी का कहना है कि पिछले पांच दशकों से उनका परिवार दिवाली के मौके पर महालक्ष्मी को चढ़ने वाला प्रसाद खिलौने और बताशे बनाने का काम कर रहा है. दिवाली से एक महीने पहले बताशे का कोराबार शुरू हो जाता है.
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इनायत वारसी का कहना है कि इस बार कोरोना संकट के चलते बिक्री की उम्मीद कम जताई जा रही है. फिर भी अपने दुकान पर कोरोना नियमों को पालन करते हुए सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क लगाकर प्रसाद बनाने का काम हो रहा है. इनायत वारसी का कहना है कि दिवाली उनके परिवार के साथ-साथ कुछ और परिवार के लिए खुशियां लेकर आता है.
इनायत वारसी के मुताबिक पिछले कई दशकों से इस काम को करते हुए आपसी भाईचारा का पैगाम दे रहे हैं. मुस्लिम परिवार होने के बाद भी आज तक बताशे खरीदने को लेकर कोई भेदभाव नहीं हुआ. उनके द्वारा बनाए गए खिलौने और बताशे की डिमांड खूब होती है. इस परिवार द्वारा बनाए गए खिलौने और बताशे की सप्लाई पूरे कुमाऊं में की जाती है.
पूजा में बताशे का महत्व
दिवाली के दौरान खील बताशे से पूजा करने के पीछे एक धार्मिक कारण भी है कि दिवाली को संपत्ति का त्योहार माना जाता है जिसके देवता शुक्र ग्रह होते हैं. शुक्र ग्रह का प्रतीक सफेद और मीठी वस्तुएं मानी जाती हैं और शादी-ब्याह के दौरान भी इनका इस्तेमाल किया जाता है. अगर शुक्र ग्रह को प्रसन्न करना चाहते हैं तो दिवाली के दिन खील और बताशे जो सफेद और मीठी वस्तुओं के तहत आते हैं, इनका भोग माता लक्ष्मी को लगाएं.