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कारगिल: उत्तराखंड के इस वीर सपूत ने टाइगर हिल पर 3 घुसपैठियों को ढेर कर फहराया था तिरंगा

कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के 75 जवान शहीद हुए थे. शहीदों की याद में 26 जुलाई को विजय दिवस मनाया जाता है.

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Published : Jul 18, 2019, 3:11 PM IST

शहीद मोहन सिंह का परिवार

हल्द्वानी: देवभूमि उत्तराखंड को सैनिकों के अदम्य साहस, शौर्य और शहादत की वजह से वीरभूमि भी कहा जाता है. देश के सम्मान और स्वाभिमान के लिए पहाड़ के चिरागों ने समय-समय पर अपनी देशभक्ति का परिचय दिया है. जिसका लोहा पूरा देश कारगिल युद्ध में मान चुका है. इस महासमर में 75 रणबांकुरों ने अपने प्राणों की आहुति देकर तिरंगे की ताकत को पूरी दुनिया में कायम रखा. इसी में एक थे हल्द्वानी के शहीद मोहन सिंह.

हल्द्वानी के नवाबी रोड पर नागा रेजीमेंट के शहीद मोहन सिंह का परिवार रहता है. शहीद की पत्नी उमा देवी जब मोहन सिंह की शाहदत के बारे में बताती हैं तो उनकी आंखों में आंसू आ जाते हैं.

शहीद की शौय गाथा

7 जुलाई 1999 को आई थी शाहदत की खबर
कारगिल युद्ध के दौरान 7 जुलाई 1999 को उन्हें सबसे बूरी खबर मिली थी. क्योंकि इसी दिन उनके पति मोहन सिंह युद्ध में दुश्मनों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे. बाद में सरकार ने उनकी शहादत के लिए उन्हें मरणोपरांत सम्मानित भी किया था.

टाइगर हिल पर दुश्मनों से लिया था लोहा
मोहन सिंह मूल रूप से बागेश्वर के कर्मी गांव के रहने वाले थे. कारगिल युद्ध के दौरान उनकी तैनाती जम्मू-कश्मीर के जम्मू पोस्ट में की गई थी. जब करगिल युद्ध शुरू हुआ तो उनकी नागा रेजीमेंट से 25 लोगों को टाइगर हिल भेजा गया.

3 घुसपैठियों को किया था ढेर
टाइगर हिल पर मोहन सिंह ने 3 पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार गिराया था, लेकिन इसी मुठभेड़ में एक गोली मोहन सिंह को लग गई थी और वो शहीद हो गए थे.

टाइगर हिल पर जाते समय की थी आखारी बार बात

उमा देवी बताती हैं कि जब उनके पति मोहन सिंह टाइगर हिल की तरफ जा रहे थे, तब आखिरी बार उनकी बात हुई थी. उन्होंने कहा था कि वह युद्ध लड़ने टाइगर हिल जा रहे हैं और वहां से वापस आने के बाद ही उनसे बात करेंगे, लेकिन बाद में उनके शहादत की खबर ही आई. यह शब्द कहते कहते उमा देवी के आंसू आ गए.

दोनों बच्चे हैं बेरोजगार
शहीद मोहन सिंह के एक बेटा और एक बेटी हैं. दोनों बच्चे बेरोजगार है. परिवार की केंद्र व राज्य सरकार से एक ही मांग है कि उनके बच्चों को रोजगार मुहैया कराया जाए.

हल्द्वानी: देवभूमि उत्तराखंड को सैनिकों के अदम्य साहस, शौर्य और शहादत की वजह से वीरभूमि भी कहा जाता है. देश के सम्मान और स्वाभिमान के लिए पहाड़ के चिरागों ने समय-समय पर अपनी देशभक्ति का परिचय दिया है. जिसका लोहा पूरा देश कारगिल युद्ध में मान चुका है. इस महासमर में 75 रणबांकुरों ने अपने प्राणों की आहुति देकर तिरंगे की ताकत को पूरी दुनिया में कायम रखा. इसी में एक थे हल्द्वानी के शहीद मोहन सिंह.

हल्द्वानी के नवाबी रोड पर नागा रेजीमेंट के शहीद मोहन सिंह का परिवार रहता है. शहीद की पत्नी उमा देवी जब मोहन सिंह की शाहदत के बारे में बताती हैं तो उनकी आंखों में आंसू आ जाते हैं.

शहीद की शौय गाथा

7 जुलाई 1999 को आई थी शाहदत की खबर
कारगिल युद्ध के दौरान 7 जुलाई 1999 को उन्हें सबसे बूरी खबर मिली थी. क्योंकि इसी दिन उनके पति मोहन सिंह युद्ध में दुश्मनों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे. बाद में सरकार ने उनकी शहादत के लिए उन्हें मरणोपरांत सम्मानित भी किया था.

टाइगर हिल पर दुश्मनों से लिया था लोहा
मोहन सिंह मूल रूप से बागेश्वर के कर्मी गांव के रहने वाले थे. कारगिल युद्ध के दौरान उनकी तैनाती जम्मू-कश्मीर के जम्मू पोस्ट में की गई थी. जब करगिल युद्ध शुरू हुआ तो उनकी नागा रेजीमेंट से 25 लोगों को टाइगर हिल भेजा गया.

3 घुसपैठियों को किया था ढेर
टाइगर हिल पर मोहन सिंह ने 3 पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार गिराया था, लेकिन इसी मुठभेड़ में एक गोली मोहन सिंह को लग गई थी और वो शहीद हो गए थे.

टाइगर हिल पर जाते समय की थी आखारी बार बात

उमा देवी बताती हैं कि जब उनके पति मोहन सिंह टाइगर हिल की तरफ जा रहे थे, तब आखिरी बार उनकी बात हुई थी. उन्होंने कहा था कि वह युद्ध लड़ने टाइगर हिल जा रहे हैं और वहां से वापस आने के बाद ही उनसे बात करेंगे, लेकिन बाद में उनके शहादत की खबर ही आई. यह शब्द कहते कहते उमा देवी के आंसू आ गए.

दोनों बच्चे हैं बेरोजगार
शहीद मोहन सिंह के एक बेटा और एक बेटी हैं. दोनों बच्चे बेरोजगार है. परिवार की केंद्र व राज्य सरकार से एक ही मांग है कि उनके बच्चों को रोजगार मुहैया कराया जाए.

Intro:sammry-कारगिल का दर्द उमा देवी को आज भी है वो दिन याद।
एंकर- कारगिल विजय दिवस कारगिल और टाइगर हिल पर भारत की जीत प्रतीक का दिन है लेकिन इसके पीछे भारत के सैनिकों के अदम्य साहस और पराक्रम की कई कहानियां छुपी है और करगिल में शहीद हुए भारतीय वीर सैनिक और उनके परिवार वाले आज भी कारगिल के उस युद्ध को याद करके अपने खोए हुए वीर सपूतों के याद करते हैं हल्द्वानी में भी ऐसे ही वीर सैनिक का परिवार रहता है जो कि करगिल के युद्ध में अपने देश की रक्षा के खातिर शहीद हो गए


Body:हल्द्वानी के नवाबी रोड में कारगिल शहीद नागा रेजीमेंट के सैनिक शहीद मोहन सिंह का परिवार रहता है जहां उनकी पत्नी उमा देवी उन्हें आज भी याद करती है क्योंकि 7 जुलाई 1999 की वो रात उनके जीवन की सबसे काली रात साबित हुई उस दिन कारगिल के युद्ध के दौरान उनके लिए सबसे बुरी खबर आई थी कि उनके पति मोहन सिंह युद्ध में दुश्मनों से लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गए थे आज भी उस दिन को याद करते हुए उमा देवी की आंख में आंसू आ गए। मोहन सिंह मूल रूप से बागेश्वर के कर्मी गांव के रहने वाले थे उनकी तैनाती जम्मू कश्मीर के जम्मू पोस्ट में की गई थी इसी दौरान करगिल युद्ध शुरू हुआ तो उनकी सेकंड नागा रेजीमेंट से 25 लोगों को टाइगर हिल भेजा गया। टाइगर हिल में दुश्मनों से युद्ध करते हुए शहीद मोहन सिंह ने 3 आतंकियों को मार गिराया था लेकिन लगातार चले युद्ध में मोहन सिंह दुश्मन की ओर से किए गए फायर में शहीद हो गए उमा देवी बताती हैं कि जब उनके पति मोहन सिंह टाइगर हिल की तरफ जा रहे थे तब आखरी बार उनकी बात हुई थी और उन्होंने कहा था कि वह युद्ध लड़ने टाइगर हिल जा रहे हैं और वहां से वापस आने के बाद ही उनसे बात करेंगे लेकिन उनके शहादत की खबर ही आई यह शब्द कहते कहते उमा देवी के आंसू निकल पड़े।


Conclusion:मोहन सिंह के देश की रक्षा में दिए गए सर्वोच्च बलिदान को देखते हुए उनकी पत्नी उमा देवी को 16 दिसंबर 1999 को तत्कालीन थल सेना अध्यक्ष वेद मालिक ने सर्वोच्च बलिदान का पुरस्कार से सम्मानित किया गया था शहीद मोहन सिंह का एक बेटा और एक बेटी है लेकिन वर्तमान में वह बेरोजगार हैं परिवार की केंद्र व राज्य सरकार से एक ही मांग है कि उनके बच्चों को रोजगार मुहैया कराया जाना चाहिए आज लोक कारगिल विजय दिवस को मनाते हैं लेकिन इस युद्ध में सैकड़ों वीर जवान शहीद हुए लेकिन उनके परिवार वालों को याद करने वाला कोई नहीं है।

बाइट- उमा देवी शहीद मोहन सिंह की पत्नी
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