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उत्तराखंड में 17 मार्च को होलिका दहन, भद्रा के चलते 19 मार्च को खेली जाएगी होली

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Published : Mar 15, 2022, 7:08 PM IST

उत्तराखंड में इस बार होली का त्योहार 19 मार्च को मनाया जाएगा. ऐसा भद्रा लगने की वजह से हो रहा है.

holi 2022
उत्तराखंड में 17 मार्च को होलिका दहन

हल्द्वानी: होली एक ऐसा त्योहार है जिसका इंतजार हर किसी को रहता है. ये त्योहार हर साल चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को पड़ता है. होली से ही बसंत ऋतु का आगमन हो जाता है. होलिका दहन के अगले दिन होली मनाई जाती है और लोग एक-दूसरे को रंग-अबीर लगाते हैं. लेकिन, उत्तराखंड में होली के दिन प्रारंभ होने की तिथि को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है. वहीं, पंडितों ने स्पष्ट कर दिया है कि इस बार भद्रा लगने की वजह से होलिका दहन 17 मार्च और होली 19 मार्च को होगी.

ज्योतिषाचार्य डॉ नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक इस बार भद्रा होने के कारण उत्तराखंड में होली 19 मार्च को खेली जाएगी. वहीं, होलिका दहन की पूजा का शुभ मुहूर्त रात 9:04 से लेकर 10:20 तक रहेगा. ऐसे में लोगो लिए होलिका दहन की पूजा के लिए करीब 1 घंटे का समय मिलेगा. होलिका दहन पूर्णिमा तिथि में सूर्यास्त के बाद करना चाहिए लेकिन अगर इस बीच भद्राकाल हो तो होलिका दहन नहीं करना चाहिए.

इस बार होलिका दहन और होली को लेकर हर कोई अलग-अलग मुहूर्त बन रहा है. ज्योतिषाचार्य डॉ नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक होलिका दहन फागुन मास की पूर्णिमा को प्रदोष काल में भद्रा रहित मुहूर्त में किया जाता है, क्योंकि भद्रा को और अशुभ और मंगलकारी माना जाता है. ज्योतिष के अनुसार 17 मार्च को दोपहर 1:20 से रात्रि के द्वितीय पहर तक भद्रा रहेगा. लेकिन भद्रा के अंतिम पड़ाव को दोष रहित माना जाता है. ऐसे में होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त रात्रि 9:04 से रात्रि 10:20 तक रहेगा.

ये भी पढ़ें: गुलाल, पिचकारी, मुखौटों से सजा होली का बाजार, जमकर चल रही है खरीदारी, महंगाई से थोड़ा रंग हुआ फीका

ज्योतिष के अनुसार इस बीच 18 मार्च को दोपहर 12: 47 मिनट तक पूर्णमासी और आएगी उसके बाद प्रतिबद्धा लगेगी. जबकि 19 मार्च को सूर्योदय से लेकर 11:38 तक प्रतिपदा तिथि रहेगी. इसी अवधि में होली खेली जाएगी.

पुरोहितों के मुताबिक होलिका दहन से पूर्व होलिका की पूजा की जाती है. इस दिन होलिका के पास पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह करके बैठ कर पूजा करनी चाहिए. होलिका माता के पूजा के साथ-साथ गौरी गणेश का पूजा का भी विशेष महत्व है. होलिका दहन में जल, चावल, पुष्पमाला, रोली, चंदन, सुत, हल्दी, मूंग और नारियल आदि चढ़ाने की परंपरा है.

महिलाएं खासकर होलिका माता को सूत के धागों से लपेट परिवार की सुख शांति की कामना करती है, इसके अलावा होलिका में सूखी लकड़ी, गौ माता की गोबर के उपले, घास-फूस चढ़ाने की भी परंपरा है.

हल्द्वानी: होली एक ऐसा त्योहार है जिसका इंतजार हर किसी को रहता है. ये त्योहार हर साल चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को पड़ता है. होली से ही बसंत ऋतु का आगमन हो जाता है. होलिका दहन के अगले दिन होली मनाई जाती है और लोग एक-दूसरे को रंग-अबीर लगाते हैं. लेकिन, उत्तराखंड में होली के दिन प्रारंभ होने की तिथि को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है. वहीं, पंडितों ने स्पष्ट कर दिया है कि इस बार भद्रा लगने की वजह से होलिका दहन 17 मार्च और होली 19 मार्च को होगी.

ज्योतिषाचार्य डॉ नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक इस बार भद्रा होने के कारण उत्तराखंड में होली 19 मार्च को खेली जाएगी. वहीं, होलिका दहन की पूजा का शुभ मुहूर्त रात 9:04 से लेकर 10:20 तक रहेगा. ऐसे में लोगो लिए होलिका दहन की पूजा के लिए करीब 1 घंटे का समय मिलेगा. होलिका दहन पूर्णिमा तिथि में सूर्यास्त के बाद करना चाहिए लेकिन अगर इस बीच भद्राकाल हो तो होलिका दहन नहीं करना चाहिए.

इस बार होलिका दहन और होली को लेकर हर कोई अलग-अलग मुहूर्त बन रहा है. ज्योतिषाचार्य डॉ नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक होलिका दहन फागुन मास की पूर्णिमा को प्रदोष काल में भद्रा रहित मुहूर्त में किया जाता है, क्योंकि भद्रा को और अशुभ और मंगलकारी माना जाता है. ज्योतिष के अनुसार 17 मार्च को दोपहर 1:20 से रात्रि के द्वितीय पहर तक भद्रा रहेगा. लेकिन भद्रा के अंतिम पड़ाव को दोष रहित माना जाता है. ऐसे में होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त रात्रि 9:04 से रात्रि 10:20 तक रहेगा.

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ज्योतिष के अनुसार इस बीच 18 मार्च को दोपहर 12: 47 मिनट तक पूर्णमासी और आएगी उसके बाद प्रतिबद्धा लगेगी. जबकि 19 मार्च को सूर्योदय से लेकर 11:38 तक प्रतिपदा तिथि रहेगी. इसी अवधि में होली खेली जाएगी.

पुरोहितों के मुताबिक होलिका दहन से पूर्व होलिका की पूजा की जाती है. इस दिन होलिका के पास पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह करके बैठ कर पूजा करनी चाहिए. होलिका माता के पूजा के साथ-साथ गौरी गणेश का पूजा का भी विशेष महत्व है. होलिका दहन में जल, चावल, पुष्पमाला, रोली, चंदन, सुत, हल्दी, मूंग और नारियल आदि चढ़ाने की परंपरा है.

महिलाएं खासकर होलिका माता को सूत के धागों से लपेट परिवार की सुख शांति की कामना करती है, इसके अलावा होलिका में सूखी लकड़ी, गौ माता की गोबर के उपले, घास-फूस चढ़ाने की भी परंपरा है.

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