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उत्तराखंड वन अनुसंधान ने विलुप्त हिमालयी जेंटियन पौधे की खोज, जानें औषधि गुण - उत्तराखंड वन अनुसंधान संस्थान

Uttarakhand Forest Research Institute उत्तराखंड वन अनुसंधान संस्थान ने विलुप्त हिमालयी जेंटियन पौधे की खोज की है. मध्य सितंबर से अक्टूबर तक इस पौधे में फूल खिलते हैं. साथ ही यह फूल यकृत रोगों, पाचन विकार और मधुमेह के लिए आवश्यक होता है.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Nov 2, 2023, 3:25 PM IST

हल्द्वानी: उत्तराखंड वन अनुसंधान संस्थान ने एक ऐसी प्रजाति के फूल की खोज की है, जो कि विलुप्त होने की कगार पर है. दरअसल जेंटियाना कुरू नाम के विलुप्त हो चुके इस फूल के पौधे को आमतौर पर हिमालयन जेंटियन या ट्रेयमान के नाम से जाना जाता है. यह फूल हिमालय क्षेत्र की एक अनोखी और प्रतिष्ठित जड़ी-बूटी है. यह पौधा पारंपरिक चिकित्सा में समृद्ध इतिहास और आधुनिक स्वास्थ्य देखभाल में आशाजनक संभावनाएं रखता है.

मध्य सितंबर से अक्टूबर तक खिलते हैं हिमालयन जेंटियन के फूल: उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र के निदेशक और वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि पौधे की विशेषता इसके विशिष्ट जीवंत और तुरही के आकार के नीले फूल हैं (एंजियोस्पर्म में नीले रंग के फूल की उपस्थिति अपेक्षाकृत असामान्य है). ये फूल आम तौर पर मध्य सितंबर से अक्टूबर तक खिलते हैं और इनके आधार पर एक विशिष्ट सफेद या पीला धब्बा होता है, जो उनकी सौंदर्य अपील को बढ़ाता है.

Uttarakhand Forest Research Institute
उत्तराखंड वन अनुसंधान ने विलुप्त हिमालयी जेंटियन पौधे की खोज

हिमालयन जेंटियन का आयुर्वेद में महत्वपूर्ण स्थान: यह पौधा पश्चिमी हिमालय के लिए स्थानिक है और उत्तराखंड में यह मुख्य रूप से गढ़वाल हिमालय में 1700 से 2100 मीटर की ऊंचाई पर बिखरी हुई आबादी में पाया जाता है. सदियों से, हिमालयन जेंटियन ने पारंपरिक हर्बल चिकित्सा प्रणालियों, विशेषकर आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण स्थान रखा है. इस पौधे की जड़ों का उपयोग विभिन्न यकृत रोगों, पाचन विकार, मधुमेह, ब्रोन्कियल अस्थमा और मूत्र संक्रमण के इलाज के लिए किया जाता है.

चिकित्सीय गुणों के लिए बेशकीमती हिमालयन जेंटियन: हिमालयन जेंटियन की जड़ें, विशेष रूप से लीवर की बीमारियों के इलाज में अपने अत्यधिक मूल्यवान चिकित्सीय गुणों के लिए बेशकीमती हैं. जिसके परिणामस्वरूप इसका अत्यधिक दोहन किया गया है, जिसके कारण यह विलुप्त होने के कगार पर है. इसे वर्तमान में IUCN द्वारा गंभीर रूप से लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया गया है. उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड ने भी इसे उत्तराखंड की कुल 16 संकटग्रस्त प्रजातियों में से एक संकटग्रस्त प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया है. वर्तमान में, यह प्रजाति अपने प्राकृतिक आवास में असाधारण रूप से दुर्लभ हो गई है.

ये भी पढ़ें: पहाड़ों पर लिलियम के फूलों की खेती कर युवा हो रहे मालामाल, सरकार दे रही है 80% तक की छूट

उत्तराखंड अनुसंधान विंग ने संरक्षण किया शुरू: उत्तराखंड वन विभाग के अनुसंधान विंग ने 2020 में अपने देववन, गोपेश्वर और रानीखेत अनुसंधान केंद्रों में हिमालयन जेंटियन के लिए संरक्षण प्रयास शुरू किए. उत्तराखंड वन अनुसंधान विंग के तहत राज्य के तीन अलग-अलग क्षेत्रों में हिमालयन जेंटियन नमूनों को सफलतापूर्वक संरक्षित किया गया है. उत्तराखंड रिसर्च विंग द्वारा की गई पहल मुख्य रूप से प्रकंद-आधारित तकनीकों के माध्यम से इस लुप्तप्राय प्रजाति के स्थायी संरक्षण और प्रसार पर केंद्रित है.

ये भी पढ़ें: गुलाब की खेती से महके रामपाल के खेत खलिहान, अन्य लोगों को भी कर रहे प्रेरित

हल्द्वानी: उत्तराखंड वन अनुसंधान संस्थान ने एक ऐसी प्रजाति के फूल की खोज की है, जो कि विलुप्त होने की कगार पर है. दरअसल जेंटियाना कुरू नाम के विलुप्त हो चुके इस फूल के पौधे को आमतौर पर हिमालयन जेंटियन या ट्रेयमान के नाम से जाना जाता है. यह फूल हिमालय क्षेत्र की एक अनोखी और प्रतिष्ठित जड़ी-बूटी है. यह पौधा पारंपरिक चिकित्सा में समृद्ध इतिहास और आधुनिक स्वास्थ्य देखभाल में आशाजनक संभावनाएं रखता है.

मध्य सितंबर से अक्टूबर तक खिलते हैं हिमालयन जेंटियन के फूल: उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र के निदेशक और वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि पौधे की विशेषता इसके विशिष्ट जीवंत और तुरही के आकार के नीले फूल हैं (एंजियोस्पर्म में नीले रंग के फूल की उपस्थिति अपेक्षाकृत असामान्य है). ये फूल आम तौर पर मध्य सितंबर से अक्टूबर तक खिलते हैं और इनके आधार पर एक विशिष्ट सफेद या पीला धब्बा होता है, जो उनकी सौंदर्य अपील को बढ़ाता है.

Uttarakhand Forest Research Institute
उत्तराखंड वन अनुसंधान ने विलुप्त हिमालयी जेंटियन पौधे की खोज

हिमालयन जेंटियन का आयुर्वेद में महत्वपूर्ण स्थान: यह पौधा पश्चिमी हिमालय के लिए स्थानिक है और उत्तराखंड में यह मुख्य रूप से गढ़वाल हिमालय में 1700 से 2100 मीटर की ऊंचाई पर बिखरी हुई आबादी में पाया जाता है. सदियों से, हिमालयन जेंटियन ने पारंपरिक हर्बल चिकित्सा प्रणालियों, विशेषकर आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण स्थान रखा है. इस पौधे की जड़ों का उपयोग विभिन्न यकृत रोगों, पाचन विकार, मधुमेह, ब्रोन्कियल अस्थमा और मूत्र संक्रमण के इलाज के लिए किया जाता है.

चिकित्सीय गुणों के लिए बेशकीमती हिमालयन जेंटियन: हिमालयन जेंटियन की जड़ें, विशेष रूप से लीवर की बीमारियों के इलाज में अपने अत्यधिक मूल्यवान चिकित्सीय गुणों के लिए बेशकीमती हैं. जिसके परिणामस्वरूप इसका अत्यधिक दोहन किया गया है, जिसके कारण यह विलुप्त होने के कगार पर है. इसे वर्तमान में IUCN द्वारा गंभीर रूप से लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया गया है. उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड ने भी इसे उत्तराखंड की कुल 16 संकटग्रस्त प्रजातियों में से एक संकटग्रस्त प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया है. वर्तमान में, यह प्रजाति अपने प्राकृतिक आवास में असाधारण रूप से दुर्लभ हो गई है.

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उत्तराखंड अनुसंधान विंग ने संरक्षण किया शुरू: उत्तराखंड वन विभाग के अनुसंधान विंग ने 2020 में अपने देववन, गोपेश्वर और रानीखेत अनुसंधान केंद्रों में हिमालयन जेंटियन के लिए संरक्षण प्रयास शुरू किए. उत्तराखंड वन अनुसंधान विंग के तहत राज्य के तीन अलग-अलग क्षेत्रों में हिमालयन जेंटियन नमूनों को सफलतापूर्वक संरक्षित किया गया है. उत्तराखंड रिसर्च विंग द्वारा की गई पहल मुख्य रूप से प्रकंद-आधारित तकनीकों के माध्यम से इस लुप्तप्राय प्रजाति के स्थायी संरक्षण और प्रसार पर केंद्रित है.

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