नैनीतालः उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उद्यान विभाग में हुए घोटाले की जांच सीबीआई या किसी अन्य एजेंसी के द्वारा कराए जाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने सुनवाई के बाद एसआईटी की रिपोर्ट पर अब अंतिम सुनवाई 10 अक्टूबर को करने का निर्णय लिया है.
गुरुवार को सुनवाई के दौरान सरकार का पक्ष रखते हुए महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर ने कहा कि उनके द्वारा एसआईटी की जांच रिपोर्ट का अंग्रेजी वर्जन कोर्ट में पेश कर दिया है. साथ ही एसआईटी की जांच भी पूरी हो चुकी है. लिहाजा इस पर सुनवाई हेतु कोई अग्रिम तिथि नियत की जाए. कोर्ट ने महाधिवक्ता के तथ्यों से संतुष्ट होकर अगली सुनवाई 10 अक्टूबर की तिथि नियत की है. सुनवाई पर सरकार की तरफ से इस मामले में लंबी तिथि मांगी गई. परंतु कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए 10 अक्टूबर की तिथि नियत की है.
जाने पूरा मामला: दीपक करगेती ने जनहित याचिका दाखिल कर उद्यान विभाग में घोटाले का आरोप लगाया है. जनहित याचिका में कहा गया है कि उद्यान विभाग में लाखों का घोटाला किया गया है. जिसमें फल और अन्य के पौधारोपण में गड़बड़ियां की गई है. जनहित याचिका में यह भी कहा गया है कि विभाग द्वारा एक ही दिन में वर्कऑर्डर जारी कर उसी दिन जम्मू-कश्मीर से पेड़ लाना दिखाया गया है, जिसका पेमेंट भी कर दिया गया. याचिका में कहा गया है कि इस पूरे मामले में कई वित्तिय व अन्य गड़बड़िया हुई हैं जिसकी सीबीआई या फिर किसी निष्पक्ष जांच एजंसी से जांच कराई जाए.
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लगे आरोपः शीतकालीन सत्र में निलंबित उद्यान निदेशक द्वारा पहले एक नकली नर्सरी अनिका ट्रेडर्स को पूरे राज्य में करोड़ों की पौध खरीद का कार्य देकर बड़े घोटाले को अंजाम दिया. जब 'उद्यान लगाओ उद्यान बचाओ' यात्रा से जुड़े किसानों और उत्तरकाशी के किसानों द्वारा जोर शोर से इस प्रकरण को उठाया तो आनन-फानन में अनिका ट्रेडर्स के आवंटन को रद्द करने का पत्र जारी कर दिया गया. फिर भी पौधे अनिका ट्रेडर्स के बांटे गए.
इधर नैनीताल में मुख्य उद्यान अधिकारी राजेंद्र कुमार सिंह के साथ मिलकर हरमिंदर सिंह बवेजा ने एक फर्जी आवंटन जम्मूकश्मीर की एक और नर्सरी बरकत एग्रो फार्म को कर दिया गया. जिसमें हुए भौतिक सत्यापन में भी गड़बड़ी का जिक्र याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में किया है. बरकत एग्रो फार्म को इनवॉइस बिल आने से पहले ही भुगतान कर दिया गया. आरोप है कि कई अकाउंटेंट के बिलों पर बिना हस्ताक्षर के ही करोड़ों रुपए ठिकाने लगा दिए.