नैनीताल: हरिद्वार महाकुंभ में कोरोना फर्जी टेस्ट रिपोर्ट (haridwar kumbh fake corona test) के मामले में हाईकोर्ट से नलवा लैब संचालक और आरोपी नवतेज नलवा को अंतरिम राहत मिली है. हाईकोर्ट के न्यायाधीश एनएस धनिक की एकलपीठ ने नवतेज नलवा की गिरफ्तारी पर 17 अगस्त तक रोक लगा दी है. साथ ही नलवा को निचली अदालत में याचिका दायर करने के आदेश दिए हैं.
आपको बताते चलें कि कोविड फर्जी रिपोर्ट बनाने का मामले में हरिद्वार के CMO द्वारा मैक्स कॉर्पोरेट, चंदानी लैब, नलवा पैथोलॉजी लैब के खिलाख हरिद्वार कोतवाली में मुकदमा दर्ज करवाया गया था. इस मामले में कोतवाली पुलिस ने तीनों लैब के खिलाफ IPC की धारा 420, 468, 471, 188, 120B, 269, 270 और आपदा अधिनियम एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया था.
CMO द्वारा दायर FIR को मैक्स कॉर्पोरेट, चंदानी लैब और नलवा पैथोलॉजी लैब ने नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी थी और FIR को रद्द कर गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग की थी. जिसपर सुनवाई करते हुए नैनीताल हाईकोर्ट ने नलवा लैब संचालक नवतेज नलवा की 17 अगस्त तक गिरफ्तारी पर रोक लगते हुए अपनी याचिका को निचली अदालत में दायर करने के निर्देश दिए हैं.
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गौर हो, कुंभ मेला 2021 के दौरान हरिद्वार आने वाले श्रद्धालुओं की एक प्राइवेट लैब द्वारा की गई कोरोना जांच सवालों के घेरे में है. क्योंकि कुंभ मेले के दौरान किए गए 1 लाख कोरोना टेस्ट रिपोर्ट फर्जी मिले हैं. प्राइवेट लैब द्वारा फर्जी तरीके से श्रद्धालुओं की जांच कर कुंभ मेला प्रशासन को लाखों रुपए का चूना लगाने का प्रयास किया गया है. इस प्राइवेट लैब द्वारा एक ही फोन नंबर को कई श्रद्धालुओं की जांच रिपोर्ट में डाला गया है.
कई जांच रिपोर्ट में एक ही आधार नंबर का इस्तेमाल किया गया है. वहीं, एक ही घर से सैकड़ों लोगों की जांच का मामला भी सामने आया है, जो असंभव सा लगता है, क्योंकि सैकड़ों लोगों की रिपोर्ट में घर का एक ही पता डाला गया.
ऐसे हुआ खुलासा: यह कहानी शुरू हुई पंजाब के फरीदकोट से. यहां रहने वाले एक शख्स विपिन मित्तल की वजह से कुंभ में कोविड जांच घोटाले की पोल खुल सकी. एलआईसी एजेंट विपिन मित्तल को उत्तराखंड की एक लैब से फोन किया गया. उनसे कहा गया कि 'आपकी रिपोर्ट निगेटिव आई है'. जिसके बाद विपिन ने कॉलर को जवाब दिया कि उनका तो कोई कोरोना टेस्ट हुआ ही नहीं है तो रिपोर्ट भला कैसे निगेटिव आ गई.
फोन आने के बाद विपिन ने फौरन स्थानीय अधिकारियों को मामले की जानकारी दी थी. स्थानीय अधिकारियों के ढुलमुल रवैए को देखते हुए पीड़ित शख्स ने तुरंत भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) से शिकायत की थी.