नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट(Nainital High Court) ने राज्य में प्लास्टिक से निर्मित कचरे पर पूर्ण रूप प्रतिबंध लगाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. मामले को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खण्डपीठ ने जिलाधिकारियों द्वारा कोर्ट में दिए गए शपथ पत्रों से नाराजगी व्यक्त की. साथ ही हाईकोर्ट ने कहा सरकार (High Court reprimanded the state government) द्वारा इसके निस्तारण के लिए कोई कानूनी कदम नहीं उठाए जा रहे हैं, सभी काम कागजी तौर कार्य किये जा रहे हैं.
हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए सरकार को कई दिशा-निर्देश दिए हैं. कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा 2019 में बनाई प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट कमेटी को पक्षकार बनाते हुए कहा है कि आज के बाद जो भी कम्पालयन्स होंगे उसके लिए कमेटी जिम्मेदार होगी.
- कमेटी सभी जिला अधिकारियों के साथ एक मीटिंग करें. साथ में कचरे के निस्तारण का हल निकाले.
- कोर्ट ने सभी डीएफओ को निर्देश जारी किए हैं कि वे अपनी क्षेत्रों में आने वाली वन पंचायतों का मैप बनाकर डिजिटल प्लेटफार्म पर अपलोड करें. साथ ही एक शिकायत एप बनाएंगे.
- शिकायत एप में दर्ज शिकायतों का निस्तारण भी किया जाए.
- वन क्षेत्रों में फैले कचरे पर वन विभाग कार्यवाही करें.
- कोर्ट ने क्षेत्र का दौरा करते समय जो कमियां पाई उस पर अमल करने के आदेश भी दिए हैं.
- कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए हैं कि प्लास्टिक वेस्ट के लिए मॉडल एसओपी बनाएं.
- सभी जिला अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि भारत सरकार द्वारा जारी प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स का अनुपालन करवाएं.
सुनवाई के दौरान पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की तरफ से कहा गया कि बोर्ड ने कोर्ट के आदेश पर कई निकायों का दौरा किया. इन निकायों के द्वारा पीसीबी के नियमों का पालन नहीं किया गया. पीसीबी द्वारा कोर्ट को अवगत कराया गया कि अगर नियमों का पालन नहीं किया जाता है तो पीसीबी पर्यावरणीय क्षति के लिए इन पर एक लाख रुपया प्रति माह के हिसाब से जुर्माना लगा सकता है. मामले की अगली सुनवाई 19 अक्टूबर को होगी.
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मामले के अनुसार अल्मोड़ा हवलबाग निवासी जितेंद्र यादव ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि राज्य सरकार ने 2013 में बने प्लास्टिक यूज एवं उसके निस्तारण करने के लिए नियमावली बनाई गई थी, मगर इन नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है. 2018 में केंद्र सरकार ने प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स बनाए, जिसमें उत्पादकर्ता, परिवहनकर्ता व विक्रेताओं को जिम्मेदारी दी थी कि वे जितना प्लास्टिक निर्मित माल बेचेंगे. लेकिन, उत्तराखंड में इसका उल्लंघन किया जा रहा है. पर्वतीय क्षेत्रों में प्लास्टिक के ढेर लगे हुए हैं और इसका निस्तारण भी नहीं किया जा रहा है.