हल्द्वानी: कुमाऊं अंचल का प्रमुख लोक पर्व हरेला आज मनाया जा रहा है. शुक्रवार को डिकर (शिव पार्वती परिवार की पूजा) की गई. कुमाऊं में हरेला पर्व का बड़ा ही महत्व है. प्रकृति से जुड़ा यह लोक पर्व हरियाली और आस्था का प्रतीक है. मान्यता है कि हरेला की पूर्व संध्या पर महिलाएं डिकर ( शिव पार्वती परिवार) की पूजा करती हैं. जिसे स्थानीय भाषा में डिकर कहा जाता है.
इस मौके पर गांव की शुद्ध स्थान की मिट्टी और आटे से शिव ,पार्वती, गणेश, नंदी और मूषक आदि की प्रतिमा बनाई जाती हैं. जिस स्थान पर हरेला बोया जाता है. उस स्थान पर शिव परिवार की प्रतिमा की पूजा की जाती है. मान्यता है कि शिव की अर्धांगिनी सती किसी बात पर रुष्ट होकर अनाज वाले पौधों को अपना रूप दिया और फिर गौरा रूप में जन्म लिया, तबसे हरेला पर्व से एक दिन पूर्व (डिकर) पर्व मनाने का पर्वतीय अंचल में परंपरा चली आ रही है.
ज्योतिषाचार्य डॉ. नवीन चंद्र जोशी ने बताया कि कुमाऊं के लोक पर्व हरेला से एक दिन पूर्व डिकर मनाने की परंपरा है. डिकर पूजा हरेला की पूर्व संध्या पर की जाती है. 15 जुलाई को शाम 6 बजे से लेकर 7:30 बजे तक डिकर पूजा हुई. आज यानी 16 जुलाई को सुबह 7 बजे से हरेला पर्व मनाया जा रहा है. श्रावण मास में पावन पर्व हरेला उत्तराखंड में धूमधाम से मनाया जाता है.
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हरेला प्रकृति से जुड़ा हरियाली का प्रतीक है. हरेला पर्व की तैयारी 10 दिन पहले से शुरू हो जाती है. एक कटोरी में पवित्र जगह की मिट्टी लाकर सात प्रकार के अनाज बोए जाते हैं, जिसमें मुख्य रुप से गेहूं, जौ, मक्का, उड़द, गहथ, सरसों और चना को बोया जाता है. जिसे घर के मंदिर में रखकर सींचा जाता है. नौवें दिन इसकी गुड़ाई की जाती है. दसवें दिन हरेला कटाई के साथ त्योहार मनाए जाने की परंपरा है. इस दिन बड़े बुजुर्ग अपने परिवार की सुख शांति और बच्चों की लंबी उम्र की कामना कर मंदिर में पूजा भी करते हैं.
हरेला के दिन परिवार के बड़े बुजुर्ग सदस्य हरेला काटते हैं. सबसे पहले अपने इष्ट देवता, भगवान गोल्ज्यू ,मां भगवती, सहित सभी देवी देवताओं को हरेला काटकर चढ़ाए जाने की परंपरा है, जिसके बाद परिवार के बुजुर्ग महिलाएं और वरिष्ठ सदस्य हरेला पूजा करते हुए आशीर्वाद देते हैं.